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कुण्डली में नौ ग्रह अपना समय

है। जातक की कुण्डली में उस दौरान भले ही किसी
अन्य ग्रह की दशा चल रही हो लेकिन उम्र के अनुसार
ग्रह का भी अपना प्रभाव जारी रहता है।25 से 28
वर्ष – यह शुक्र का काल है। इस काल में जातक में
कामुकता बढती है। शुक्र चलित लोगों के लिए
स्वर्णिम काल होता है और गुरू और मंगल चलित लोगों
के लिए कष्टकारी। मंगल प्रभावी लोग काम से
पीडित होते हैं और शुक्र वाले लोगों को अपनी
वासनाएं बढाने का अवसर मिलता है। इस दौरान जो
लव मैरिज होती है उसे टिके रहने की संभावना अन्य
कालों की तुलना में अधिक होती है। शादी के

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संतान दोष : जानिए ज्योतिषीय कारण

अधिकांश महिलाएं भाग्यशाली होती हैं जिन्हें यह
सुख प्राप्त हो जाता है।
फिर भी काफी महिलाएं ऐसी हैं जो मां बनने के सुख
से वंचित हैं। यदि पति-पत्नी दोनों ही स्वास्थ्य की
दृष्टि से उत्तम हैं फिर भी उनके यहां संतान उत्पन्न
नहीं हो रही है। ऐसे में संभव है कि ज्योतिष संबंधी
कोई अशुभ फल देने वाला ग्रह उन्हें इस सुख से वंचित
रखे हुए है। यदि पति स्वास्थ्य और ज्योतिष के दोषों
से दूर है तो स्त्री की कुंडली में संतान संबंधी कोई
रुकावट हो सकती है।
ज्योतिष के अनुसार संतान उत्पत्ति में रुकावट पैदा
करने वाले योग——

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शुक्र कन्या राशि में

प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन अथवा प्रेम संबंधों में
समस्याएं पैदा कर सकता है। महिलाओं की कुंडली में
शुक्र पर बुरे ग्रहों का प्रबल प्रभाव उनकी प्रजनन
प्रणाली को कमजोर कर सकता है तथा उनके
ॠतुस्राव, गर्भाशय अथवा अंडाशय पर भी
नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है जिसके कारण उन्हें
संतान पैदा करनें में परेशानियां आ सकतीं हैं। शुक्र
शारीरिक सुखों के भी कारक होते हैं तथा संभोग से
लेकर हार्दिक प्रेम तक सब विषयों को जानने के लिए
कुंडली में शुक्र की स्थिति महत्त्वपूर्ण मानी जाती
है।

 

 

 

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