कुण्डली में नौ ग्रह अपना समय

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है। जातक की कुण्डली में उस दौरान भले ही किसी
अन्य ग्रह की दशा चल रही हो लेकिन उम्र के अनुसार
ग्रह का भी अपना प्रभाव जारी रहता है।25 से 28
वर्ष – यह शुक्र का काल है। इस काल में जातक में
कामुकता बढती है। शुक्र चलित लोगों के लिए
स्वर्णिम काल होता है और गुरू और मंगल चलित लोगों
के लिए कष्टकारी। मंगल प्रभावी लोग काम से
पीडित होते हैं और शुक्र वाले लोगों को अपनी
वासनाएं बढाने का अवसर मिलता है। इस दौरान जो
लव मैरिज होती है उसे टिके रहने की संभावना अन्य
कालों की तुलना में अधिक होती है। शादी के
लिहाज से भी इसे उत्तम काल माना जा सकता है।
शुक्र का रथ एवम गति —-
श्री गरुड़ पुराण के अनुसार शुक्र का रथ सैन्य बल से
युक्त,अनुकर्ष,ऊँचे शिखर वाला ,तरकश व ऊँची पताका
से युक्त है |
वैज्ञानिक परिचय——-
शुक्र पृथ्वी का निकटतम ग्रह, सूर्य से दूसरा और
सौरमण्डल का छठवाँ सबसे बड़ा ग्रह है। शुक्र पर कोई
चुम्बकीय क्षेत्र नहीं है। इसका कोई उपग्रह भी नहीं
है | यह आकाश में सबसे चमकीला पिंड है जिसे नंगी
आँखों से भी देखा जा सकता है | शुक्र भी बुध की
तरह एक आंतरिक ग्रह है, यह भी चन्द्रमा की तरह
कलाये प्रदर्शित करता है। यह सूर्य की परिक्रमा 224
दिन में करता है और सूर्य से इसका परिक्रमा पथ
108200000 किलोमीटर लम्बा है। शुक्र ग्रह व्यास
121036 किलोमीटर और इसकी कक्षा लगभग
वृत्ताकार है। यह अन्य ग्रहों के विपरीत दक्षिणावर्त
( Anticlockwise ) चक्रण करता है। ग्रीक मिथको के
अनुसार शुक्र ग्रह प्रेम और सुंदरता की देवी है। 1962 में
शुक्र ग्रह की यात्रा करने वाला पहला अंतरिक्ष
यान मैरीनर 2 था। उसके बाद 20 से ज़्यादा शुक्र ग्रह
की यात्रा पर जा चुके हैं; जिसमे पायोनियर, वीनस
और सोवियत यान वेनेरा 7 है जो कि किसी दूसरे ग्रह
पर उतरने वाला पहला यान था।
ज्योतिष शास्त्र में शुक्र———
ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को शुभ ग्रह माना गया है
| ग्रह मंडल में शुक्र को मंत्री पद प्राप्त है| यह वृष और
तुला राशियों का स्वामी है |यह मीन राशि में उच्च
का तथा कन्या राशि में नीच का माना जाता है |
तुला 20 अंश तक इसकी मूल त्रिकोण राशि भी है |
शुक्र अपने स्थान से सातवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से
देखता है और इसकी दृष्टि को शुभकारक कहा गया है
|जनम कुंडली में शुक्र सप्तम भाव का कारक होता है |
शुक्र की सूर्य -चन्द्र से शत्रुता , शनि – बुध से मैत्री
और गुरु – मंगल से समता है | यह स्व ,मूल त्रिकोण व
उच्च,मित्र राशि –नवांश में ,शुक्रवार में , राशि के
मध्य में ,चन्द्र के साथ रहने पर , वक्री होने पर ,सूर्य के
आगे रहने पर ,वर्गोत्तम नवमांश में , अपरान्ह काल में
,जन्मकुंडली के तीसरे ,चौथे, छटे ( वैद्यनाथ छटे भाव में
शुक्र को निष्फल मानते हैं ) व बारहवें भाव में बलवान
व शुभकारक होता है |