ज्योतिषीय विश्लेषण के लिए हमारे शास्त्रों मे कई सूत्र दिए हैं।
कुछ प्रमुख सूत्र इस प्रकार से हैं। ज्योतिष में रोग विचार में विचारणीय सूत्र( फॉर्मूला )।
ज्योतिष में रोग विचार :
षष्ठ स्थान
ग्रहों,
राशियों,
कारकग्रह , .
छः भावों का विश्लेषण:प्रथम भाव या लग्न, षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश भावों ,मारक भाव द्वितीय एवं सप्तम का रोग,स्वास्थ्य से संबंध है।
प्रथम भाव : के द्वारा शारीरिक कष्ट, स्वास्थ्य का विचार।
षष्ठ भाव: स्वास्थ्य , रोग के लिए । षष्ठ भाव का कारक मंगल, बुध । अष्टम भाव: आयु एवं मृत्यु । मृत्यु के कारक रोग । अष्टम स्थान का कारक शनि मंगल ।
द्वादश भाव: रोग शारीरिक शक्ति की हानि। रोगों का उपचार स्थल ।
तृतीय भाव से आयु का विचार होता है।
सप्तम एवं द्वितीय ‘मारक भाव’ :आयु के व्ययसूचक हैं।
कौन से अंग पीड़ित होगे उसके अनुसार : षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश भाव के स्वामी जिस भाव में होते है उससे संबद्ध अंग में पीड़ा हो सकती है।
जिस भाव का स्वामी छठे, आठवें या 12वें में स्थित हो उनसे संबद्ध अंगों में भी पीड़ा होती है।
रोगों के कारण :
लग्न एवं लग्नेश का अशुभ स्थिति ।
चंद्रमा का क्षीर्ण अथवा निर्बल होना ,चन्द्रलग्न में पाप ग्रहों का होना।
लग्न, चन्द्रमा एवं सूर्य तीनों पर ही पाप अथवा अशुभ ग्रहों का प्रभाव ।
शनि, मंगल आदि पाप ग्रहों का गुरु, शुक्र आदि शुभ ग्रहों की अपेक्षा अधिक बलवान होना।
ग्रहों और बीमारी :-1. बृहस्पति : लीवर, किडनी, तिल्ली , कर्ण सम्बन्धी रोग, मधुमेह, पीलिया, याददाश्त में कमी, जीभ एवं पिण्डलियों से सम्बन्धित रोग, मज्जा दोष, यकृत पीलिया, स्थूलता, दंत रोग, मस्तिष्क विकार ,पेट की गैस और फेफड़े की ।
2. सूर्य : सूर्यः पित्त, वर्ण, जलन, उदर, न्यूरोलॉजी , नेत्र रोग, ह्रदय रोग, अस्थियों रोग, कुष्ठ रोग, सिर के रोग, ज्वर, मूर्च्छा, रक्तस्त्राव, मिर्गी ,धड़कन का अनियंत्रित होना, रक्त चाप।
3. चंद्र :ह्रदय एवं फेफड़े , बायें नेत्र , अनिद्रा, अस्थमा, डायरिया, रक्ताल्पता, रक्तविकार, उल्टी ,किडनी , मधुमेह, ड्रॉप्सी, अपेन्डिक्स, कफ रोग,मूत्रविकार, मुख , नासिका , पीलिया, मानसिक , दिल और आँख की ।
4. शुक्र :दृष्टि , जननेन्द्रिय , मूत्र, गुप्त रोग, मिर्गी, अपच, गले के रोग, नपुंसकता, अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों , पीलिया रोग ,त्वचा, दाद, खुजली ।
5. मंगल : गर्मी , विषजनित रोग, व्रण, कुष्ठ, खुजली, रक्त सम्बन्धी , गर्दन एवं कण्ठ से रोग, रक्तचाप, मूत्र सम्बन्धी रोग, ट्यूमर, कैंसर, पाइल्स, अल्सर, दस्त, दुर्घटना में रक्तस्त्राव, कटना, फोड़े-फुन्सी, ज्वर, अग्निदाह, चोट ,,रक्त और पेट संबंधी बीमारी, नासूर, जिगर, पित्त आमाशय, फोड़े ।
6. बुध : छाती रोग, नसों , नाक , ज्वर, विषमय, खुजली, अस्थिभंग, टायफाइड, पागलपन, लकवा, मिर्गी, अल्सर, अजीर्ण, मुख के रोग, चर्मरोग, हिस्टीरिया, चक्कर आना, निमोनिया, विषम ज्वर, पीलिया, वाणी दोष, कण्ठ रोग, स्नायु रोग, ,चेचक, नाड़ियों की कमजोरी, जीभ और दाँत का रोग।
7. शनि : शारीरिक कमजोरी, दर्द, पेट दर्द, घुटनों या पैरों में होने वाला दर्द, दांतों ,त्वचा सम्बन्धित रोग, अस्थिभ्रंश, मांसपेशियों से सम्बन्धित रोग, लकवा, बहरापन, खांसी, दमा, अपच, स्नायुविकार ,नेत्र रोग और खाँसी ।
8. राहु :मस्तिष्क सम्बन्धी विकार, यकृत सम्बन्धी विकार, निर्बलता, चेचक, पेट में कीड़े, ऊंचाई से गिरना, पागलपन, तेज दर्द, विषजनित परेशानियां, पशुओं या जानवरों से शारीरिक कष्ट, कुष्ठ रोग, कैंसर । बुखार, दिमागी की खराबियाँ, अचानक चोट, दुर्घटना ।
9. केतु : वातजनित बीमारियां, रक्तदोष, चर्म रोग, सुस्ती, अकर्मण्यता, शरीर में चोट, घाव, एलर्जी, आकस्मिक रोग ,परेशानी, कुत्ते का काटना ,रीढ़, जोड़ों का दर्द, शुगर, कान, स्वप्न दोष, हार्निया, गुप्तांग संबंधी ।
कब रोग ठीक होगा : रोगकारक ग्रह की दशा अन्तर्दशा की समाप्ति के बाद रोग ठीक होगा । लग्नेश , योगकारक ग्रह की दशा अन्तर्दशा प्रत्यन्तर्दशा प्रारम्भ हो जाए, तो रोग से छुटकारा प्राप्त हो सकता हैं। शनि :रोग से जातक को लम्बे समय तक पीड़ित रहता है। राहु :किसी रोग का कारक होता है, तो बहुत समय तक उस रोग की पता नही हो पाता है। ऐसे में रोग अधिक अवधि तक चलता है।
रोग का निवारण के लिए मन्त्र का जाप करे :
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनानमृत्योमुरक्षीय मामृतात्।।
प्रतिदिन इस मन्त्र को भोजन करते समय, ओषधि लेते
समय तीन बार इस मन्त्र का जप
करने से शरीर स्वस्थ रहता हे और रोगों को नष्ट करता हे।
मंत्रों और हनुमान चालीसा के पाठ।
गायत्री मंत्र का पाठ।
उपाय: ग्रहों के द्वारा उत्पन्न रोग के समय अपने सम्बंधित चिकित्सक की सलाह पर दवा का सेवन करना चाहिए। अपने ज्योतिषी की सलाह पर सम्बंधित भावः जिस से बीमारी उत्पन्न है के स्वामी की तथा कारक ग्रह से सम्बंधित उपाय करना चाहिए।