जन्म कुण्डली हमारे जन्म समय का नक्शा है,जन्म के समय किस राशि में कौन सा ग्रह कितने अंश में है, इसमें अंकित किया जाता है,हम ज्योतिष शास्त्र के द्वारा किसी भी व्यक्ति के जीवन में घटने वाली किसी भी घटना,समय,घटनास्थल की जानकारी पहले से कर सकते हैं,ज्योतिष के अनुसार अशुभ प्रभाव को रत्न उपचार,जाप एवं अनुष्ठान के द्वारा कम किया जा सकता है।
ज्योतिष के दृष्टिकोण से विजय को लाभ और आत्मोन्नति से जोड़कर देखा जाता है। कुण्डली का छठा भाव शत्रुओं का और बारहवां भाव हानि का बताया गया है। किसी कार्य में विजय के लिए हमारे भीतर की ताकत पर्याप्त होनी चाहिए, यह लग्न से देखी जाएगी।
हमारे भीतर का साहस तीसरे भाव से देखा जाएगा और हमारी प्राप्त करने की इच्छाशक्ति ग्यारहवें भाव से देखी जाएगी। इसके साथ ही कुण्डली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होनी चाहिए। किसी कार्य को शुरू करने में हमें पहले उसका सपना देखना होगा। इसके लिए चंद्रमा हमारा सहयोग करता है। इसके बाद कार्य को शुरू करने का निश्चय करने के लिए लग्न हमारी मदद करता है।
तीसरा भाव में हमें आगे बढ़ने का साहस देता है और ग्यारहवां भाव हमारे इच्छित साधन की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। ये सभी कार्यों में सफलता या विफलता हमारे दसवें भाव यानी कर्म पर आधारित होती है। इनमें से किसी भी एक भाव के पर्याप्त सुदृढ़ नहीं होने की स्थिति में हमें कई बार विफलता भी झेलनी पड़ती है।
चंद्रमा कमजोर होने पर हमारी कल्पना और सोचने की शक्ति हमारा साथ नहीं देती, लग्न कमजोर होने पर कार्य शुरू करने का निर्णय नहीं जुटा पाते, तीसरा भाव कमजोर होने पर हम निर्णय लेने के बाद भी कार्य संपादन शुरू नहीं कर पाते, दसवां भाव कमजोर होने पर हमारे प्रयासों में कमी रहती है और ग्यारहवां भाव कमजोर होने पर हम इच्छित फल प्राप्त करने से वंचित रह सकते हैं।
हालांकि लाभ-हानि, यश-अपयश और जय-पराजय छह ऐसे विषय हैं जिनका अंतिम निर्णय ईश्वर ने अपने पास सुरक्षित रखा है, लेकिन लग्न से दसवें भाव तक के कार्य हमारे हाथ में है। इस बीच हमारी समस्याएं, चिंताएं और शत्रु हमारे कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं।
छठे भाव से आती है समस्याएं
कार्य को संपादित करने के दौरान हमारे समक्ष कई बार समस्याएं भी आती हैं। इन समस्याओं को कुण्डली के छठे भाव से देखा जाता है। कुंडली के छठे घर के बलवान होने से तथा किसी विशेष शुभ ग्रह के प्रभाव में होने से कुंडली धारक अपने जीवन में अधिकतर समय अपने शत्रुओं तथा प्रतिद्वंदियों पर आसानी से विजय प्राप्त कर लेता है।
उसके शत्रु अथवा प्रतिद्वंदी उसे कोई विशेष नुकसान पहुंचाने में आम तौर पर सक्षम नहीं होते। कुंडली के छठे घर के बलहीन होने से अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में होने से कुंडली धारक अपने जीवन में बार-बार शत्रुओं तथा प्रतिद्वंदियों के द्वारा नुकसान उठाता है तथा ऐसे व्यक्ति के शत्रु आम तौर पर बहुत ताकतवर होते हैं।
कुल मिलाकर हमारी जो कमजोरियां हैं, वे सभी छठे भाव से देखी जाएंगी और इसी घर से आठवें भाव यानी लग्न से हम अपनी क्षमताओं, विशेषताओं, अंदरूनी ताकत के बारे में जानकारी हासिल करते हैं। अगर किसी जातक का लग्न बहुत अधिक शक्तिशाली हो तो हम किसी भी स्तर के शत्रुओं से मुकाबला कर सकते हैं।
लग्न के अनुसार शत्रु
हर लग्न की अपनी खासियत और कमियां होती हैं। मेष लग्न के जातक उग्र होते हैं और एक ही बार में कार्य का संपादन पूर्ण करने का प्रयास करते हैं। एक ही कार्य को बार बार नहीं कर पाने की बाध्यता उनकी कमजोरी है। इसे हम कुण्डली में भी देख सकते हैं कि मेष लग्न में रिपु भाव का अधिपति बुध है। इसी प्रकार वृष लग्न के जातक कुछ विलासी और आरामपसंद होते हैं।
यही उनके लग्न की विशेषता है और यही उनकी कमजोरी भी। हम देखते हैं कि वृष लग्न में शुक्र ही शत्रु भाव का अधिपति है। मिथुन लग्न के जातकों की खासियत समस्या को हल्के में लेने और जिंदगी को सामान्य ढंग से लेने में है। मेष लग्न में कठिन परिस्थितियों से लड़ना सिखाने वाला मंगल शत्रु भाव का अधिपति है।
कर्क राशि जलतत्वीय राशि है और एक विचार पर अधिक देर तक काम नहीं कर सकने वालों की है। कर्क लग्न के लिए गुरु जो कतिपय अधिक स्थिर और दुनिया को साथ लेकर चलने वाला ग्रह है शत्रु भाव का अधिपति बनता है। सिंह राशि के जातक स्वभाव से तेज और गर्वीले होते हैं। सिंह के शत्रु भाव का अधिपति शनि है जो धीमा चलता है और बहुत अधिक सोच विचार कर अपना निर्णय करता है।
कन्या राशि के लोग बहुत अधिक बोलने वाले और आवश्यकता से अधिक विश्लेषण करने वाले होते हैं। इस लग्न के अधिपति को भी शनि जैसा न्यायप्रिय शत्रु मिलता है। धनु लग्न के जातक सौम्य और पढ़े लिखे दिखाई देते हैं और सादगी से जिंदगी जीने का प्रयास करते हैं। इनके शत्रुओं के रूप में हम शुक्र से चलित लोगों को देख सकते हैं।
मकर राशि के लोग अपेक्षाकृत दढ़ और धीमे होते हैं। अपनी जबान पर कायम नहीं रह सकने वाले बुध के लोग इस लग्न के शत्रु होते हैं। कुंभ राशि के जातक एक ही काम में दीर्ध अवधि तक लगे रहने वाले और दृढ़ होते हैं, इनका शत्रु चंद्रमा होता है जो किसी एक काम में अधिक लंबे समय तक नहीं टिकता।
मीन राशि को जातक अपेक्षाकृत सादी जिंदगी जीने वाले होते हैं, इनके शत्रु भाव का स्वामी सूर्य है। इस तरह हम देखते हैं कि हर लग्न की अपनी खासियत होती है, इसी के संदर्भ में उनके शत्रुओं की भी अपनी प्रकृति होती है। अगर एक जातक अपनी नैसर्गिक प्रकृति को मजबूत करता रहे तो शत्रु की प्रकृति अपने आप कमजोर होती जाएगी।