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पितृपक्ष

*"श्राद्ध खाने नहीं आऊंगा कौआ बनकर , जो खिलाना है अभी खिला दे ."*

"अरे! भाई बुढापे का कोई ईलाज नहीं होता . अस्सी पार कर चुके हैं . अब बस सेवा कीजिये ." डाक्टर पिता जी को देखते हुए बोला .

"डाक्टर साहब ! कोई तो तरीका होगा . साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है ."

"शंकर बाबू ! मैं अपनी तरफ से दुआ ही कर सकता हूँ . बस आप इन्हें खुश रखिये . इस से बेहतर और कोई दवा नहीं है और इन्हें लिक्विड पिलाते रहिये जो इन्हें पसंद है ." डाक्टर अपना बैग सम्हालते हुए मुस्कुराया और बाहर निकल गया .

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