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प्रेम-विवाह और ज्योतिषीय योग

प्रेम-विवाह और ज्योतिषीय योग

प्रेम-विवाह और ज्योतिषीय योग

प्रेम हृदय की एक ऐसी अनुभूति है जो हमें जन्म से ही ईश्वर की ओर से उपहार स्वरूप प्राप्त होती है। आगे चलकर यही प्रेम अपने वृहद स्वरूप में प्रकट होता है। प्रेम किसी के लिए भी प्रकट हो सकता है। वह ईश्वर, माता-पिता, गुरु, मित्र, किसी के लिए भी उत्पन्न हो सकता है। 

लेकिन आज के समाज में सिर्फ विपरीत लिंगी के लिए प्रकट अनुभूतियों को ही प्रेम समझा जाता है। सारा संसार जानता है कि मीरा का प्रेम कृष्ण के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रेम था। यूं तो ढेरों भक्त कवियों ने भी कृष्ण से अपने प्रेम का वर्णन किया है। जैसे- सुरदास इत्यादि। 

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आर्थिक तंगी देता है कुंडली का पंचमस्थ शनि

आर्थिक तंगी देता है कुंडली का पंचमस्थ शनि

आर्थिक तंगी देता है कुंडली का पंचमस्थ शनि

ज्योतिषशास्त्र में कुंडली का काफी महत्व है. किसी भी व्यक्ति का कुंडली में विराजमान ग्रह-नक्षत्रों के अनुसार ही उसके जीवन में सुख और दुख आते-जाते हैं.

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धार्मिक साहित्य अनुसार हिंदू धर्म

हिंदू और जैन धर्म की उत्पत्ति पूर्व आर्यों की अवधारणा में है जो ४५०० ई.पू. मध्य एशिया से हिमालय ऋग्वेद का भूगोलीय क्षितिज (जिसमें नदियों के नाम एवं सीमेटरी एच दिये हैं। ये हिन्दूकुश और पंजाब क्षेत्र से ऊपरी गांगेय क्षेत्र तक फैला हुआ था।
तक फैले थे। आर्यों की ही एक शाखा ने पारसी धर्म की स्थापना भी की। इसके बाद क्रमश: यहूदी धर्म दो हजार ई.पू., बौद्ध धर्म पाँच सौ ई.पू., ईसाई धर्म सिर्फ दो हजार वर्ष पूर्व, इस्लाम धर्म आज से १४०० वर्ष पूर्व हुआ।

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