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इस बार 1 मार्च को सुबह 8 बजे से पूर्णिमा तिथि लग रही है, लेकिन खास बात ये है कि इस दिन भ्रद्रा भी लग रही है। कहा जाता है कि भद्रा में होलिका दहन नहीं किया जाता है। ऐसे में होलिका दहन फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को भद्रा समय को त्याग करने के बाद किया जायेगा। इस वर्ष गुरुवार को पूर्णिमा रात्रि और प्रातकाल 6:30 तक है, मघा नक्षत्र रात्रि 11:45 तक, अतिगंड योग प्रातः काल 7:45 तक इसके बाद सुकर्मा योग और भद्रा प्रातः काल 9:9 से सायं काल 7:51 तक है।
ये होगा होलिका दहन का शुभ महूर्त
इसलिए 1 तारीख को सांयकाल 7:00 बज कर 51 मिनट के बाद क्षेत्र परंपरा के अनुसार होलिका दहन का कार्य किया जाएगा भारत के विभिन्न अंचलों में अपने अपने क्षेत्र परंपरा के अनुसार यह कार्य किया जाएगा
। ध्यान रखें भद्रा में होलिका दहन करने से जनसमूह का नाश होता है। प्रतिपदा चतुर्दशी भद्रा और दिन में होलिका जलाना सर्वथा त्याग योग्य है। संयोगवश यदि होलिका जला दी जाए तो वहां के राजा राज नगर और मनुष्य अद्भुत उत्पादों से एक ही वर्ष में हीन हो जाते हैं।
होलिका की पूजन विधि
होली की पूजा के लिए रोली, कच्चा सूत, चावल, पुष्प, साबुत हल्दी, बतासे, श्रीफल और बुल्ले आदि इकट्ठा कर ले, और एक थाली में समस्त पूजन सामग्री रख ले। साथ ही एक जल का लोटा भी अवश्य रखें। इसके पश्चात होली पूजन के स्थान पर पहुंच करके मंत्र या पूजन करें। सबसे पहले संकल्प लें अपना नाम, पिता का नाम, गोत्र का नाम और चित्र का नाम लेते हुए अक्षत हाथ में उठायें और भगवान गणेश और अंबिका का ध्यान करें और हालिका पर अक्षत अर्पित कर दें। तत्पश्चात भक्त प्रहलाद का नाम ले और पुष्प चढ़ायें। अब भगवान नरसिंह का ध्यान करते हुए पंचोपचार पूजन करें। होली के सम्मुख खड़े हो जाएं और अपने दोनों हाथ जोड़कर मानसिक रूप से समस्त मनोकामनाएं निवेदित करें तत्पश्चात गंध, अक्षत और पुष्प में हल्दी श्रीफल चढ़ायें। कच्चा सूत हाथ में लेकर होलिका पर लपेटते हुए हाथ जोड़कर परिक्रमा करें। अंत में लोटे में भरा जल रही होली का पर चढ़ा दें।