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बेटी या बेटे के विवाह वर कन्या के गुण मिलान की औपचारिकता मात्र पर क्यों नहीं करना चाहिए....
कैसे बनता है विषकन्या योग?
स्त्री की कुण्डली में विषकन्या योग वनने के लिए निम्नलिखित छः परिस्थितियां नक्षत्र, तिथी और वार ज़िम्मेदार है:
ज्योतिष रहस्य
1- अश्लेषा तथा शतभिषा नक्षत्र, दिन रविवार, द्वितीया तिथि |
2- कृतिका अथवा विशाख़ा अथवा शतभिषा नक्षत्र दिन रविवार, द्वादशी तिथि |
3- अश्लेषा अथवा विशाखा अथवा शतभिषा नक्षत्र, दिन मंगलवार, सप्तमी तिथि |
4- अश्लेषा नक्षत्र, दिन शनिवार, द्वितीया तिथि |
5- शतभिषा नक्षत्र, दिन मंगलवार, द्वादशी तिथि|
6- कृतिका नक्षत्र, दिन शनिवार, सप्तमी या द्वादशी तिथि,
इसके अलावा यदि स्त्री की कुण्डली में सप्तम स्थान में पापी व क्रूर ग्रह हों और क्रूर अथवा पापी ग्रहों की उन पर दृष्टि भी पड़ रही हो, तो ऐसे में विषकन्या योग जैसा प्रभाव ही दिखाई देता है।
वस्तुतः विषकन्या योग इसे नाम ही इसलिए दिया गया कि ऐसी कन्या के सम्पर्क में आने वाले लोगों को दुर्भाग्य समेट लेता है। जन्म लेते ही पिता का सर्वनाश, उसके पिता-माता-भाई को कष्ट, शादी के बाद उसके ससुराल वालों को समस्याएं घेर लेती हैं। जैसे ही वह विवाह बंधन में बंधती है, तो सर्वप्रथम वह दाम्पत्य में खटपट की शिकार होती है, तत्पश्चात पति और फिर संतान से हाथ धोती है। इसके साथ ही इस कुयोग का एक परिणाम अप्रत्याशित लांक्षन के रूप में भी सामने आता है। यानि ऐसी स्त्री को समय-समय पर कलंक का भी सामना करना पड़ता है।