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सूर्य को अर्घ्य
प्राचीन काल से ही भारतीय ऋषि-मुनि सूर्योदय से पूर्व ब्रह्म बेला में या ठीक सूर्योदय के समय नदी में स्नान करते थे और स्नान के उपरान्त सूर्य को जल अर्पित करते थे। सूर्य देव को जल अपने दोनों हाथो से अथवा ताम्बे के जल पात्र से देते थे। सूर्य सभी ग्रहों के राजा हैं। ज्योतिष में जिस प्रकार माता और मन के कारक चन्द्रमा है उसी प्रकार पिता और आत्मा का कारक सूर्य हैं। वेदों और उपनिषदों से लेकर हिन्दू-धर्म से संबंधित सभी धार्मिक ग्रंथों में भगवान सूर्य के महिमा का का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद में कहा गया है — सूर्यात्मा जगत स्तस्थुषश्च ऋग्वेद 1/११५।
सूर्योपासना से क्या लाभ मिलता है।
महाभारत में कथा है कि कर्ण नियमित सूर्य की पूजा करते थे और सूर्य को जल का अर्घ्य देते थे। सूर्य की पूजा के बारे में भगवान राम की भी कथा मिलती है कि वह भी हर दिन सूर्य की पूजा और अर्घ्य दिया करते थे। शास्त्रों में भी कहा गया है कि हर दिन सूर्य का जल देना चाहिए और बहुत से लोग इस नियम का पालन भी करते हैं। लेकिन इसके भी नियम हैं जिन्हें जानकर सूर्य को जल दें तो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में इसका लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
सूर्यदेव को अर्घ्य देने की परम्परा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। छठ ब्रत में उगते हुए सूर्य को तथा अस्तांचल सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यदि आपके जन्मकुंडली में सूर्य ग्रह नीच के राशि तुला में है तो अशुभ फल से बचने के लिए प्रतिदिन सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। वही यदि सूर्य किसी अशुभ भाव का स्वामी होकर सुबह स्थान में बैठा है तो सूर्योपासना करनी चाहिए। साथ ही जिनकी कुंडली में सूर्यदेव अशुभ ग्रहो यथा शनि, राहु-केतु, के प्रभाव में है तो वैसे व्यक्ति को अवश्य ही प्रतिदिन नियमपूर्वक सूर्य को जल अर्पण करना चाहिए।
यही नहीं यदि कारोबार में परेशानी हो रही हो या नौकरी में सरकार की ओर से परेशानी हो रही हो तो सूर्य की उपासना का लाभ मिलता है। स्वास्थ्य लाभ के लिए भी सूर्य की उपासना करनी चाहिए। किसी भी प्रकार के चर्म रोग हो तो आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करे शीघ्र ही लाभ होता है। सूर्य देव को जल अर्पण करने से सूर्यदेव की असीम कृपा की प्राप्ति होती है सूर्य भगवान प्रसन्न होकर आपको दीर्घायु , उत्तम स्वास्थ्य, धन, उत्कृष्ट संतान, मित्र, मान-सम्मान, यश, सौभाग्य और विद्या प्रदान करते हैं।
सूर्य अर्घ्य देने की विधि
सूर्योदय के प्रथम किरण में अर्घ्य देना सबसे उत्तम माना गया है।
सर्वप्रथम प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व नित्य-क्रिया से निवृत्त्य होकर स्नान करें।
उसके बाद उगते हुए सूर्य के सामने आसन लगाए।
पुनः आसन पर खड़े होकर तांबे के पात्र में पवित्र जल लें।
रक्तचंदन आदि से युक्त लाल पुष्प, चावल आदि तांबे के पात्र में रखे जल या हाथ की अंजुलि से तीन बार जल में ही मंत्र पढ़ते हुए जल अर्पण करना चाहिए।
जैसे ही पूर्व दिशा में सूर्योदय दिखाई दे आप दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़कर इस तरह जल अर्पण करे की सूर्य तथा सूर्य की किरण जल की धार से दिखाई दें।
ध्यान रखें जल अर्पण करते समय जो जल सूर्यदेव को अर्पण कर रहें है वह जल पैरों को स्पर्श न करे।
सम्भव हो तो आप एक पात्र रख लीजिये ताकि जो जल आप अर्पण कर रहे है उसका स्पर्श आपके पैर से न हो पात्र में जमा जल को पुनः किसी पौधे में डाल दे।
यदि सूर्य भगवान दिखाई नहीं दे रहे है तो कोई बात नहीं आप प्रतीक रूप में पूर्वाभिमुख होकर किसी ऐसे स्थान पर ही जल दे जो स्थान शुद्ध और पवित्र हो।
जो रास्ता आने जाने का हो भूलकर भी वैसे स्थान पर अर्घ्य (जल अर्पण) नहीं करना चाहिए।
पुनः उसके बाद दोनों हाथो से जल और भूमि को स्पर्श करे और ललाट, आँख कान तथा गला छुकर भगवान सूर्य देव को एकबार प्रणाम करें।
सूर्योपासना के समय किस मन्त्र का जप करना चाहिए
अर्घ्य देते समय सूर्य देव के मन्त्र का अवश्य ही जप करना चाहिए। आप जल अर्पण करते समय स्वयं ही या अपने गुरु के आदेशानुसार मन्त्र का चयन कर सकते है। सूर्यदेव के लिए निम्न मन्त्र है —
सामान्यतः जल अर्पण के समय निम्न मंत्रो का जप करना चाहिए।
‘ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय। मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा :।।
ऊँ सूर्याय नमः।
ऊँ घृणि सूर्याय नमः।
‘ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात।
इसके बाद सीधे हाथ की अँजूरी में जल लेकर अपने चारों ओर छिड़कना चाहिए। पुनः अपने स्थान पर ही तीन बार घुमकर परिक्रमा करना चाहिए ततपश्चात आसन उठाकर उस स्थान को नमन करें।
सूर्य देव के अन्य मन्त्र निम्न प्रकार से है।
सूर्य मंत्र – ऊँ सूर्याय नमः ।
तंत्रोक्त मंत्र – ऊँ ह्यं हृीं हृौं सः सूर्याय नमः । ऊँ जुं सः सूर्याय नमः ।
सूर्य का पौराणिक मंत्र –
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम ।
तमोडरि सर्वपापघ्नं प्रणतोडस्मि दिवाकरम् ।
सूर्य गायत्री मंत्र
ऊँ आदित्याय विदमहे प्रभाकराय धीमहितन्नः सूर्य प्रचोदयात् ।
ऊँ सप्ततुरंगाय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि तन्नो रविः प्रचोदयात् ।
अर्थ मंत्र – ऊँ एहि सूर्य ! सहस्त्रांशो तेजोराशि जगत्पते । करूणाकर में देव गृहाणाध्र्य नमोस्तु ते।सूर्य का वेदोक्त मंत्र-विनियोग –
ऊँ आकृष्णेनेति मंत्रस्य हिरण्यस्तूपऋषि, त्रिष्टुप छनदः
सविता देवता, श्री सूर्य प्रीत्यर्थ जपे विनियोगः ।
मंत्र – ऊँ आ कृष्णेन राजसा वत्र्तमानों निवेशयन्नमृतं मत्र्य च ।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ।
पारिवारिक क्लेश निवारण हेतु तुलसी माँ को अर्घ्य
यदि किसी परिवार में बहुत जादा ही कलह क्लेश का वातावरण हो तो ऐसी स्थिती में घर के मध्य भाग (ब्रह्म स्थान) या इशान कोण में एक तुलसी का पौधा लगाकर उसमे नियमित दूध का अर्घ्य देना और देसी घी के दीपक से आरती करना कितने भी कठिन से कठिन वातावरण को तत्काल नियंत्रित कर उर्जा को शुद्ध करता है तथा घर के सभी सदस्यों में उच्च संस्कार को संचारित करता है |
चंद्रमा को पूर्णिमा को दिन दूध का अर्घ्य दें
यदि मन में बहुत जादा चंचलता हो...कही मन न लगे...बार बार उल्टे सीधे विचार आये तो चांदी के पात्र में थोड़ा सा दूध लेकर के चंद्र उदय होने के बाद संध्याकाल में अर्घ्य दें, विशेषकर पूर्णिमा के दिन तो अवश्य दे । चंद्र को अर्घ्य देना मन में आ रहे समस्त बुरे विचार, दुर्भावना, असुरक्षा की भावना व माता के ख़राब स्वास्थ्य को तत्काल नियंत्रित कर लेता तथा आपके मन को संतुष्टि देता है |