Jyotish & Yog

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क्या योग से सभी लोको पर भ्रमण किया जा सकता है ? 
क्या है योग का वैज्ञानिक आधार ?

योग का विज्ञान हमारे ऋषियों ने बहुत पहले खोज लिया था । योग विज्ञान से भौतिक विज्ञान का जन्म हुआ था । भौतिक विज्ञान हमे दिखाई देता है । इसलिए मनुष्य भौतिक विज्ञान पर बहुत शीघ्र विश्वास कर लेता है । लेकिन योग विज्ञान दिखाई नहीं देता है इसलिए भौतिक वैज्ञानिक उस पर विश्वास नहीं करता है ।

कैसे काम करता है योग विज्ञान ?

आप इसको एक वैज्ञानिक उदाहरण के माध्यम से समझ सकते हो । अभी हमारे वैज्ञानिको ने एक मंगल यान मंगल लोक पर भेजा है । उस यान का एक यंत्र प्रथवि लोक के हरीकोटा मे स्थित है और एक यंत्र यान के साथ लगा हुआ है । जो प्रथवि लोक का यंत्र है उस यंत्र से मंगल लोक के यान का यंत्र संचालित हो रहा है । मंगल लोक के यान को प्रथवि लोक के वैज्ञानिक संचालित कर रहे है । और मंगल लोक की जानकारी प्राप्त कर रहे है । वैज्ञानिक जो निर्देश मंगल यान के यंत्र को दिया देता है वही जानकारी या फोटो वहा से भेज दी जाती है ।

इसी प्रकार हमारे शरीर मे भी तीन यंत्र लगे होते है । एक यंत्र शरीर मे होता है और बाकी के दो यंत्र दिखाई नहीं देते है । जिनको हम सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर कहते है । स्थूल शरीर का यंत्र बाकी के दो यंत्रो को संचालित करता है । हमारी 5 ज्ञानेद्रिओ की भी 5 उपिंद्रियन होती है । जैसे दोनों आंखे बंद हो जाती है तो त्रिनेत्र काम करता है । 
जब हम स्वपन अवस्था मे होते है तो अचेतन मन के अधीन होकर सभी इंद्रियाँ काम करती है । स्वपन अवस्था मे भी हम संभोग करते है सुनते भी है बोलते भी है और खाते भी है और टहलते भी है । यह सब सूक्ष्म शरीर का कार्य होता है । लेकिन यह automatic क्रिया के अधीन होता है । ये सभी कार्य सूक्ष्म शरीर मे भी होते है लेकिन सूक्ष्म मे 5 कर्मेन्द्रि नहीं होती है । इस कारण सूक्ष्म शरीर हमे जानकारी देता है और उसका अभ्यास स्थूल शरीर करता है ।

जब योगी किसी दूसरे लोक पर भ्रमण करने जाता है तो योगी योग से सूक्ष्म शरीर का प्रयोग करता है ।

यह सूक्ष्म शरीर रूपी यंत्र हमारे स्थूल रूपी शरीर के यंत्र के जुड़ा होता है और इसको मन और आत्मा मिलकर बुद्धि के द्वारा संचालित करते है । जब मन और आत्मा द्वारा बुद्धि के माध्यम से सूक्ष्म शरीर को जो निर्देश दिया जाता है तो उस लोक मे स्थित सूक्ष्म शरीर बुद्धि रूपी यंत्र के द्वारा जानकारी भेज देती है । इसी क्रिया को जब योगी अपने योग के द्वारा भिन्न भिन्न लोको पर अपने सूक्ष्म शरीर रूपी यंत्र को भेजता है तो उस लोक की सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी हमे मिल जाती है ।

ज्योतिष विज्ञान की उत्पत्ति ऋषि पाराशर जी ने इस योग विज्ञान के माध्यम से ही की थी तथा आज जो हम ग्रहो की जानकारी ज्योतिष मे पढ़ते है वो सिर्फ योग विज्ञान का चमत्कार है । इस लिए योगी साधक किसी भी लोक पर भ्रमण कर सकता है । और योगी को किसी भी भौतिक विज्ञान के यंत्र की आवश्यकता नहीं होती है ।