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मित्रों ,
हमारा उद्देश्य किसी भी विद्वान को आहत करने का नहीं है, अतः अनजाने में भी यदि किसी को कष्ट हो तो बात प्रारंभ करने से पहले ही क्षमा चाहेंगे, अगर हम ज्योतिष को केवल व्यापार बना ले तो आगे आने वाले दिनों में लोगों का बचा हुआ विश्वास भी नहीं रह जाएगा, कालसर्प के अनुष्ठान को संस्थान वर्ष में केवल एक बार नागपंचमी पर ही सामूहिक रूप से कराता है, इस बार एक नया अनुभव देखने को मिला कि जन्म कुंडली में कालसर्प योग न होने पर भी लोगों को भ्रमित करने का प्रयास किया गया, शायद सोच यह रही होगी कि हम ही करेंगे, जब हमारे यहां अनुष्ठान के लिए पंजीकरण के लिए आए तो पंजीकरण के पूर्व अपनी परम्परा के अनुसार कुण्डली देखने पर उन्हें बताया कि कालसर्प योग नहीं है, मानने को तैयार नहीं थे हमसे आग्रह किया कि आप करा दीजिए l
मित्रों मेरा उद्देश्य किसी की आलोचना नहीं है, हमें एक बात अवश्य सोचना चाहिए कि हम उस आदमी को धोखा देने का असफल प्रयास कर रहे हैं, जो देवता तुल्य हमें सम्मान दे रहा है, अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन भी, क्या हमें ऐसा करके हमेशा के लिए उसकी नजरों से गिरने का काम करना चाहिए, केवल पैसे की भूख हमारी छवि को हमेशा के लिए समाप्त करने के साथ ज्योतिष शास्त्र की आस्था को भी राहत न मिलने पर समाप्त कर देती है l
प्रत्येक वैदिक अनुष्ठान के लिए विद्वानों ने ज्योतिष शास्त्र में समय निर्धारित किया है, यदि हम उनका पालन नहीं करेंगे तब भी किसी के कल्याण की बात नहीं सोच सकते हैं, होगा ही नहीं, अनुष्ठान सदैव निर्धारित मुहूर्त में ही करना लाभदायक होता है l
रत्न का निर्धारण करना और विधि विधान से धारण करना अलग अलग दो विषय है, यदि एक के पालन में त्रुटि हुई तो जीवन भर रत्न पहनने के बाद भी कोई लाभ नहीं मिल सकता है, यहां हम केवल एक ही उदाहरण आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहेंगे कि यदि सूर्य के रत्न को रविवार को राहु या केतु के नक्षत्र में धारण करें, जिन ग्रहों से सूर्य देव को ग्रहण लगता है, मेरा मानना है कि जीवन भर इस रत्न को धारण करने वाले को कोई लाभ नहीं मिल सकता है l
हमारा सभी मित्रों से अनुरोध है कि जिस तरह हम बीमारी से ग्रस्त होने पर अच्छे डाक्टर का चुनाव करते हैं, वैसे ही जन्म कुंडली भी विद्वान को ही दिखाए,कुछ समय भी दे उसे उपचार के लिए,ज्योतिष उपाय अंग्रेजी दवा की भांति काम नहीं करते, फ्री सेवा लेने से बचें, तभी कल्याण सम्भव है l