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गुरु पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
होगा भगवान शिव भी किसी न किसी के ध्यान में लगे रहते हैं यानि उनसे भी बड़ा कोई है जो उन्हें मार्गदर्शन देता है और जिनकी शरण में वे अपना मस्तक झुकाते हैं। गुरु की आवश्यकता सिर्फ मनुष्यों को ही नहीं बल्कि स्वयं भगवान को भी होती है। यह बात गुरु सांदीपनि और कृष्ण जी पर अच्छे से लागू होती है। गुरु सांदीपनि भगवान कृष्ण और बलराम दोनों के गुरु थे। उनके गुरुकुल में कई महान राजाओं के पुत्र पढ़ते थे, लेकिन गुरु सांदीपनि ने कृष्ण जी को पूरी 64 कलाओं की शिक्षा दी थी। भगवान विष्णु के अवतार होने के बाद भी कृष्ण जी ने गुरु सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण की। गुरु-शिष्य के इस अनोखे रिश्ते से यह साबित होता है कि कोई भी चाहे कितना ही ज्ञानी हो, फिर भी उसे एक गुरु की आवश्यकता तो होती ही है। यहां पर एक बात यह भी सामने आती है कि जब कृष्ण जी की शिक्षा पूरी हो गई तो गुरु सांदीपनि ने उनसे गुरु दीक्षा के रूप में यमलोक से अपने पुत्र को वापस लाने को कहा और कृष्ण जी ने भी उनके पुत्र को वापस धरती पर लाकर अपनी गुरु दीक्षा दी। यानि गुरुत्व प्राणियों का आधार है।
कहते हैं- 'हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर'... अर्थात् भगवान के रूठने पर तो गुरु की शरण मिल जाती है लेकिन गुरु के रूठने पर कहीं भी शरण नहीं मिल पाती। एक गुरु आत्मज्ञानी, आत्मनियंत्रित, संयमी और अंतरदृष्टि से युक्त होता है, जो अपने शिष्य की कमजोरी, ताकत, उसकी बुद्धि को भली-भांति पहचानकर ही उसे शिक्षा प्रदान करता है ताकि अपने ज्ञान के क्षेत्र में उसे कोई पराजित न कर सके। कहते हैं कि गुरु पूर्णिमा से लेकर अगले चार महीने अध्ययन के लिये बड़े ही उपयुक्त माने जाते हैं। साधु-संत भी इस दौरान एक स्थान पर रहकर ध्यान लगाते हैं। लिहाजा आज के दिन अपने गुरुओं को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए और हो सके तो उन्हें कुछ भेंट भी अवश्य करें। ऐसा करने से आपके ऊपर गुरु कृपा हमेशा बनी रहेगी।