कालभैरव मंदिर उज्जैन

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कालभैरव मंदिर उज्जैन(मदिरा पान वाले बाबा काल
भैरव)
कालभैरव का यह मंदिर लगभग छह हजार साल
पुराना माना जाता है। यह एक वाम मार्गी तांत्रिक
मंदिर है। वाम मार्ग के मंदिरों में माँस, मदिरा, बलि,
मुद्रा जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। प्राचीन समय में
यहाँ सिर्फ तांत्रिको को ही आने की अनुमति थी। वे
ही यहाँ तांत्रिक क्रियाएँ करते थे और कुछ विशेष
अवसरों पर काल भैरव को मदिरा का भोग
भी चढ़ाया जाता था। कालान्तर में ये मंदिर आम
लोगों के लिए खोल दिया गया, लेकिन बाबा ने भोग
स्वीकारना यूँ ही जारी रखा।अब यहाँ जितने
भी दर्शनार्थी आते हैं, बाबा को भोग जरूर लगाते हैं।
यहाँ विशिष्ट मंत्रों के द्वारा बाबा को अभिमंत्रित
कर उन्हें मदिरा का पान कराया जाता है, जिसे वे
बहुत खुशी के साथ स्वीकार भी करते हैं और अपने
भक्तों की मुराद पूरी करते हैं। रविवार
की पूजा का यहां विशेष महत्व होता है।
काल भैरव मंदिर के पुजारी भक्तों के द्वारा चढ़ाए गए
प्रसाद को एक तश्तरी में उड़ेल कर भगवान के मुख से
लगा देते हैं और देखते -देखते ही भक्तों की आंखों के
सामने घटता है वो चमत्कार जिसे देखकर भी यकीन
करना एक बार को मुश्किल हो जाता है.
क्योंकि मदिरा से भरी हुई तश्तरी पलभर में
खाली हो जाती है। क्या राज है, इसे लेकर लंबी-
चौड़ी बहस हो चुकी है। एक अँग्रेज अधिकारी ने मंदिर
की खासी जाँच करवाई थी। लेकिन कुछ भी उसके
हाथ नहीं लगा... उसने प्रतिमा के आसपास की जगह
की खुदाई भी करवाई, लेकिन नतीजा सिफर। उसके
बाद वे भी काल भैरव के भक्त बन गए। उनके बाद से
ही यहाँ देसी मदिरा को वाइन उच्चारित किया जाने
लगा, जो आज तक जारी है।काल भैरव
को मदिरा पिलाने का सिलसिला सदियों से
चला आ रहा है। यह कब, कैसे और क्यों शुरू हुआ, यह कोई
नहीं जानता।इस मंदिर की महत्ता को प्रशासन
की भी मंजूरी मिली हुई है। खास अवसरों पर प्रशासन
की ओर से भी बाबा को मदिरा चढ़ाई जाती है।इसके
अलावा जब भी किसी भक्त को मुकदमे में विजय
हासिल होती है तो बाबा के दरबार में आकर मावे के
लड्डू का प्रसाद चढ़ाते हैं तो वहीं जिन
भक्तों की सूनी गोद भर जाती है
वो यहां बाबा को बेसन के लड्डू और चूरमे का भोग
लगाते हैं प्रसाद चाहे कोई भी क्यों न हो बाबा के
दरबार में आने वाले हर भक्त सवाली होता है और
बाबा काल भैरव अपने आशीर्वाद से उसके
कष्टों को हरने वाले देवता।
बाबा काल भैरव के इस धाम एक और बड़ी दिलचस्प
चीज है जो भक्तों का ध्यान बरबस अपनी ओर
खींचती है और वो है मंदिर परिसर में मौजूद ये दीपस्तंभ
श्रद्धालुओं द्वारा दीपस्तंभ की इन दीपमालिकाओं
को प्रज्जवलित करने से सभी मनोकामनाऐं
पूरी होती हैं।भक्तों द्वारा शीघ्र विवाह के लिए
भी दीपस्तंभ का पूजन किया जाता है।
जिनकी भी मनोकामना पूरी होती है वे दीपस्तंभ के
दीप जरूर रोशन करवाते हैं. इसके अलावा मंदिर के अंदर
भक्त अपनी मनोकामना के अनुसार दीये जलाते हैं
जहां एक तरफ शत्रु बाधा से मुक्ति व अच्छे स्वास्थ्य के
लिए सरसों के तेल का दीया जलाने की पंरपरा है
तो वहीं अपने मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि की इच्छा करने
वाले चमेली के तेल का दीया जलाते हैं।कालभैरव के इस
मंदिर में दिन में दो बार आरती होती है एक सुबह साढ़े
आठ बजे आरती की जाती है. दूसरी आरती रात में साढ़े
आठ बजे की जाती है. महाकाल की नगरी होने से
भगवान काल भैरव को उज्जैन नगर
का सेनापति भी कहा जाता है।
इस मंदिर की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। स्कंद
पुराण के मुताबिक चारों वेदों के रचियता ब्रह्मा ने जब
पांचवें वेद की रचना करने
का फैसला किया तो परेशान देवता उन्हें रोकने के
लिए महादेव की शरण में गए।
उनका मानना था कि सृष्टि के लिए पांचवे वेद
की रचना ठीक नहीं है लेकिन ब्रह्मा जी ने महादेव
की भी बात नहीं मानी।कहते हैं इस बात पर शिव
क्रोधित हो गए. गुस्से के कारण उनके तीसरे नेत्र से एक
ज्वाला प्रकट हुई. इस ज्योति ने कालभैरव का रौद्ररूप
धारण किया, और ब्रह्माजी के पांचवे सिर को धड़ से
अलग कर दिया। कालभैरव ने ब्रह्माजी का घमंड तो दूर
कर दिया लेकिन उन पर ब्रह्महत्या का दोष लग गया.
इस दोष से मुक्ति पाने के लिए भैरव दर दर भटके लेकिन
उन्हें मुक्ति नहीं मिली. फिर उन्होंने अपने आराध्य
शिव की आराधना की. शिव ने उन्हें शिप्रा नदी में
स्नान कर तपस्या करने को कहा।ऐसा करने पर कालभैरव
को दोष से मुक्ति मिली और वो सदा के लिए उज्जैन में
ही विराजमान हो गए।