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सूर्य से लेकर शनि तक सातो ग्रह कुंडली के केंद्र स्थानों में दिग्बल प्राप्त करते है राहु केतु को दिग्बल की प्राप्ति नही होती।दिग्बली ग्रह को दिशा बल प्राप्त ग्रह भी कहतेहै।दिग्बली ग्रह राशिस्थ बल से अतिरिक्त बल प्राप्त करता है।
प्रथम भाव(लग्न)में गुरु और बुध दिग्बल प्राप्त करते है,प्रथम भाव(लग्न)कुंडलीका प्रातः कालीन भाव होता है गुरु बुध प्रातःकाल का प्रतिनिधित्व करने वाले ग्रह है इस कारण प्रथम भाव(लग्न)में गुरु बुध को दिग्बल की प्राप्ति होती है।
चतुर्थ भाव में चंद्र और शुक्र दिग्बल प्राप्त करते है, चतुर्थ भाव काल समय के अनुसार मध्य रात्रि का भाव है चंद्र शुक्र दोनों रात्रि में बल प्राप्त करने वाले ग्रह है कारण चंद्र और शुक्र रात्रि का प्रतिनिधित्व करते है।
सप्तम भाव में शनि दिग्बल प्राप्त करता है, कारण सप्तमभाव कुंडली का संध्याकालीन भाव है दिन ढलने के बाद संध्या के बाद अँधेरा होना प्रारम्भ हो जाता है।
शनि अँधेरे का प्रतिनिधित्व करता है जिस कारण काल समय के अनुसार शनि को सप्तम भाव में दिग्बल की प्राप्ति होती है।
दशम भाव में सूर्य और मंगल दिग्बल प्राप्त करते है।दशम भाव और सूर्य मंगल काल समय के अनुसार कुंडली में मध्यदिन का प्रतिनिधित्व करते है जिस कारण सूर्य मंगल को दशम भाव में दिग्बल की प्राप्ति होती है।