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रोजमर्रा में घर की ठीक ढंग से सफाई न हो
पाने के कारण कई जगह धूल-मिट्टी और जाले लग जाते
हैं, जिससे घर गंदा लगता है और नकारात्मक ऊर्जा घर
में प्रवेश करती है। अत: घर में पूजा का स्थान तय करने से
पहले दीवारों व घर के कोनों को साफ कर लें।
घर में बेकार, टूटा-फूटा या जंग लगा सामान भी
इकट्ठा न होने दें। जिस सामान को आपने कई सालों
से इस्तेमाल नहीं किया है, वह आप आगे भी नहीं
करेंगी। अत: अनावश्यक वस्तुओं को जमा करने की जगह
उन्हें घर से बाहर कर दें या किसी जरूरतमंद को दे दें।
परदे, कुशन, सोफे आदि के कवरों को अच्छी तरह से
धोकर साफ करें।
रसोई हमारे घर का वह अहम हिस्सा है, जिस पर पूरे
परिवार का स्वास्थ्य निर्भर करता है, इसलिए किचन
का हाइजीनिक होना बहुत जरूरी है। नवरात्रों के
दौरान तो भोजन की शुद्धि का खास ध्यान रखना
होता है, अत: रसोई के कोनों से लेकर बर्तन स्टैंड तक
साफ कर लें।
पूरे घर की सफाई करते समय अक्सर हम पंखों और
ट्यूबलाइट पर जमी धूल-मिट्टी को साफ करना भूल
जाते हैं। खासतौर पर कूलर में जमा हुआ पानी
निकालकर साफ कर लें। इससे उनमें मच्छर व धूल जमने
की आशंका कम हो जाएगी।
साफ-सफाई के बाद घर में अच्छा रूम फ्रेशनर छिड़कें।
सुगंधित अगरबत्ती व कपूर घर में आध्यात्मिक तरंगों
का संचार करते हैं।
जानिए कबाड़ का प्रभाव वास्तु की
दिशा के अनुसार—-
पूर्वी कोना – इस कोने पर सूर्य का अधिकार है। अगर
घर के इस कोने में कचरा या कबाड़ जमा रहता है तो
परिवार के मुखिया की घर में ही नहीं चलेगी। इसके
अलावा सरकार, राज्य एवं प्रभुसत्ता से संबंधित
मामलों में नुकसान होने की आशंका हमेशा बनी
रहेगी। सूखे कचरे के अलावा अगर इस क्षेत्र में गंदा
पानी जमा हो रहा हो, सीलन भरी गंदगी हो तो
परिवार के पुरुष सदस्य पीडि़त रहते हैं।
उत्तरी पूर्वी कोना – इस कोने पर बृहस्पति का
अधिकार है। वास्तु के अनुसार इस कोने में घर का
मंदिर होना चाहिए। अगर इस कोण में गंदगी, कचरा
या कबाड़ जमा रहता है और यह घर के अन्य कोनों से
अधिक भारी है तो ऐसे घर में रहने वाले अधिकांश
सदस्य सुस्त होंगे। घर में आलस्य पसरा रहेगा। बात-बात
में झगड़े होंगे। घर के किसी दूसरे हिस्से की तुलना में यह
अधिक साफ सुथरा और सुगंधित कोना होना
चाहिए। इस क्षेत्र में संग्रह का सामान को कदापि
नहीं रखें। अगर रखा है तो उसे दक्षिण पश्चिम के कोने
में स्थानान्तरित कर दें। यहां आमतौर पर ऊर्जा का
अधिक स्तर होता है, ऐसे में यहां बच्चों का कमरा
बनाया जा सकता है।
उत्तरी कोना – इस कोने पर बुध का अधिकार है। यह
क्षेत्र घर का रचनात्मक क्षेत्र है। इस कोने में कचरा या
कबाड़ होने पर सदस्यों में रचनात्मकता का अभाव
देखा गया है। जो लोग सलाहकार व्यवसाय में हैं, हाथ
से काम करने वाले हैं अथवा बैंकिंग अथवा वित्तीय
क्षेत्रों से जुड़े हैं, उन्हें इस बात का विशेष तौर पर
ख्याल रखना चाहिए कि उनके घर के उत्तरी क्षेत्र में
कम से कम सामान हो। यहां पुस्तकें अथवा अपने कार्य
से संबंधित औजार रखे जा सकते हैं।
उत्तरी पश्चिमी कोना – इस कोने पर चंद्रमा का
अधिकार है। हालांकि इस कोने को अपेक्षाकृत
भारी रखा जा सकता है, लेकिन यहां द्रव भाग की
बहुलता होनी आवश्यक है। ऐसे में किसी अन्य ठोस
कबाड़ के बजाय ऐसी वस्तुएं जो द्रव अवस्था में हो
यहां संग्रह की जा सकती है। इसके अलावा इस क्षेत्र
में पेयजल का संग्रह भी किया जा सकता है। ऐसे पौधे
रखे जा सकते हैं जिनमें नियमित रूप से पानी डालने
की जरूरत हो।
पश्चिमी कोना – इस क्षेत्र पर शनि का अधिकार
है। शनि से संबंधित वस्तुएं जैसे लोहा, जंग खाया
सामान, तीखे और नुकीले पदार्थ, गैस सिलेण्डर,
मशीनों जैसे सामान यहां रखे जा सकते हैं। इस क्षेत्र में
भी कचरा नहीं होना चाहिए। शनि न्यायप्रिय ग्रह
है। यह अव्यवस्था को अनिर्णय की स्थिति को पसंद
नहीं करता। ऐसे में जिस कबाड़ के बारे में आपकी स्पष्ट
राय नहीं हो कि उसे रख लेना चाहिए या फेंक देना
चाहिए, उसे इस क्षेत्र में नहीं रखना चाहिए।
दक्षिणी पश्चिमी कोना – यह घर का संग्रह का
स्थान है। पूर्व मुखी घरों में तो इसे उपेक्षित ही छोड़
दिया जाता है। क्योंकि यह घर के सबसे पिछले हिस्से
में आता है। वास्तव में इस क्षेत्र पर राहू का स्थान
होने के कारण यहां सर्वाधिक सावधानी रखे जाने
की जरूरत है। इस क्षेत्र में उस सामान को रखा जाता
है, जो कीमती हो, सबसे भारी हो और लंबे समय तक
जिस सामान को सुरक्षित रखना हो। इस क्षेत्र को
अपेक्षाकृत सूखा और अंधेरेवाला रखना फायदेमंद
रहता है। ऐसे में यहां द्रव और सीलन किसी भी सूरत में
नहीं होने चाहिए। यहां गंदगी और कचरा होने पर राहू
अपने खराब प्रभाव देना शुरू कर देता है और परिवार के
सदस्य ऐसी समस्याओं से रूबरू होते हैं जो वास्तविक
होने के बजाय मानसिक अधिक होती हैं।
दक्षिणी कोना – यह मंगल का स्थान है। इस क्षेत्र
की ऊर्जा दाह प्रकार की होती है। यहां ऐसे
सामान को रखा जाना चाहिए जो अपेक्षाकृत कम
काम में आता हो, लेकिन जरूरी हो। अगर इस क्षेत्र में
कचरा हो या नमी हो या गंदा पानी हो तो
परिवार के सदस्यों में साहस का अभाव देखा जाता
है। इलेक्ट्रिक उपकरण, टीवी, फ्रिज, कम्प्यूटर और ऐसे
ही नियमित ऊर्जा उत्सर्जित करने वाले उपकरण इस
क्षेत्र में रखे जाने चाहिए। यहां स्टोर बनाएं तो ऐसे
ही सामान उसमें रखे जाने चाहिए। पानी तो
कदापि नहीं होना चाहिए। कई घरों में यहां
सीढि़यां बनाई गई होती हैं और उन सीढि़यों के नीचे
बंद स्थान बनाकर कचरा भर दिया जाता है। यह
परिवार की संपत्ति और सदस्यों के तेज दोनों के लिए
हानिकारक है।
दक्षिणी पूर्वी कोना – यह शुक्र का स्थान है। यह
घर का सबसे समृद्ध दिखाई देने वाला स्थान होना
चाहिए। यहां पड़ा कचरा अथवा कबाड़ आपकी
समृद्धि को घटाता है। यहां पर फूलों वाले पौधे,
मनीप्लांट लगाने चाहिए। रसोई इस क्षेत्र में होनी
चाहिए। अगर किसी कारण से यहां कमरा बनाना पड़
जाए तो कमरा अच्छी तरह सजा हुआ और सुंदर
दिखाई देना चाहिए। सकारात्मक ऊर्जा व तरंगों से परिपूर्ण घर में
वास हर किसी को अच्छा लगता है, साथ ही यह
समृद्धि की निशानी भी है।’
इन उपयों से आएगी खुशहाली और समृद्धि—-
—नए रंगों से घर को पेंट करवायें।
—-घर में कहीं भी जाले न रहने दें। माना जाता है कि
इससे घर से संपन्नता दूर भागती है।
—घर की छत व बालकनी में किसी तरह की गंदगी न
रहने दें। आपके घर की छत आपके मस्तक के समान होती
है, जिसमें कोई भी दाग आपके जीवन में
नकारात्मकता ला सकता है।
—-आजकल बाजार में कई तरह की खूबसूरत सजावट के
लिए लाइट्स मिलती हैं, जिनकी मदद से आप अपने घर
व मंदिर को जगमगा सकती हैं। मंदिर में हर समय
रोशनी देने वाले बल्ब लगा सकती हैं।
—पूजा घर कभी भी बेडरूम में न बनाएं। यदि ऐसा है
तो खासतौर पर नवरात्र के दिनों में यह व्यवस्था
बदलने का प्रयास करें।
—पूजा करते वक्त ध्यान रखें कि आपका मुख पूर्व या
उत्तर दिशा की ओर हो। पूजा के लिए यह दिशाएं
शुभ मानी जाती हैं।
—नवरात्रों के दिनों में घर में हल्के चमकदार व शोख
रंगों का इस्तेमाल करें, जैसे लाल, संतरी, गुलाबी,
हरा, पीला आदि। काला, सलेटी, गहरा नीला
आदि रंगों के प्रयोग से बचें। ये रंग नकारात्मक ऊर्जा
का संचार करते हैं।
—घर के दरवाजों को बंदनवार या आम के पत्तों से
सजाएं। इससे घर में सकारात्मक अच्छी ऊर्जा के साथ-
साथ धन-धान्य में भी बरकत होती है।
—नवरात्रों में घर में कलश स्थापना करें। ये न केवल पूजा
का हिस्सा होता है, बल्कि इसके कई आध्यात्मिक
महत्व भी हैं।
—घर को ताजे और लाल फूलों से सजाएं।
—पूजा घर में प्रतिदिन माला बदलें।
—रोजाना हवन के दौरान गूगल का इस्तेमाल करें।
इससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है।
—हरे रंग के पेड़-पौधों को उत्तर दिशा में रखें।
—प्रवेशद्वार को खूबसूरत रंगोली से सजाएं।
—एक बड़े थाल या बाउल में पानी डालकर फूलों की
पंखुड़ियां डालकर रखें। घर पूरे दिन महकेगा। आमतौर पर काम में नहीं आने वाले सामान,
खराब या नष्ट हो चुके सामान को कबाड़ कहा
जाता है, लेकिन वास्तु के दृष्टिकोण से देखें तो जो
वस्तु अपने स्थान पर नहीं है, वे सभी वस्तुएं कबाड़ की
श्रेणी में मानी जाएगी। घर में वायु, अग्नि, जल और
तेज का अपना अपना स्थान है। घर के उत्तरी, पूर्वी
और उत्तरी पूर्वी कोने अपेक्षाकृत हल्के होते हैं। इसी
क्षेत्र से ऊर्जा का प्रवाह घर के भीतर की ओर आता
है। वहीं घर के दक्षिणी, पश्चिमी और दक्षिणी
पश्चिमी हिस्से अपेक्षाकृत भारी होते हैं। यहां
ऊर्जा का जमाव होता है। ऊर्जा आने के क्षेत्रों में
किसी प्रकार की बाधा होने पर घर की समृद्धि और
विकास में भी बाधा आती है। अगर कोई सामान
अपने निर्धारित स्थान के बजाय किसी दूसरे स्थान
पर हैं तो हम उन्हें कबाड़ की श्रेणी में रख सकते हैं।
क्योंकि वे घर में उपलब्ध होने के बावजूद फायदा के
बजाय नुकसान पहुंचा रहे होते हैं।घरों से लेकर
कार्यालयों तक में ई- कचरे की भरमार है। जब से
अधिकांश काम बिजली पर निर्भर हो गए हैं तब से
नए-नए गैजेट्स बाजार में आ रहे हैं। नई चीजें आने के
कारण पुरानी चीजें कबाड़ में जा रही हैं।
इलेक्ट्रॉनिक्स की न जाने कितनी चीजें कुछ दिनों
बाद ही आउटडेटेड हो जाती हैं। ये सभी चीजें
आखिरकार कबाड़ बन जाती हैं। इन सबसे देश में
इलेक्ट्रॉनिक्स कचरों की भरमार हो रही है। पहले यह
समस्या नहीं के बराबर थी पर जब से लोग
इलेक्ट्रॉनिक्स चीजों पर निर्भर होने लगे हैं तब से ई-
कचरे की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है।
पश्चिमी देशों में जहां इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का
अधिक इस्तेमाल होता है, वहां उनके रिसाइकिलिंग
की भी व्यवस्था है। इसके लिए विशेष रूप से योजना
बनाई जाती है और उपकरण भी तैयार किए जाते हैं।
जैसे कागज का कचरा, भोजन का कचरा और
इलेक्ट्रॉनिक कचरा। इसमें मेडिकल कचरे के निकास के
लिए विशेष प्रकार की व्यवस्था की गई है। ई-कचरा
से खराब होने वाली जमीन को ठीक नहीं किया
जा सकता, क्योंकि इससे जमीनें बंजर हो जाती हैं।ये
चीजें वैसे तो सेकंडहैंड चीजों के रूप में बेचने के लिए
इस्तेमाल में लाई जाती हैं, लेकिन ये अंतत: कबाड़ में
ही जाती हैं। दिल्ली में पुरानी
चीजों या कम उपयोग में लाई गई चीजों का अलग
बाजार है, जहां आधी कीमत पर कंप्यूटर और दूसरे
इलेक्ट्रॉनिक सामान आसानी से मिलते हैं। जब से
भारत में इलेक्ट्रॉनिक प्रतिस्पर्धा बढ़ा है और बिना
ब्याज के किस्तों में चीजें मिलने लगी हैं तब से सेकंडहैंड
चीजें कोई इस्तेमाल नहीं करना चाहता। दूसरी तरफ
नई तकनीक की चीजें और नए गैजेट्स के आने से सेकंडहेंड
चीजों का बाजार की खत्म होने लगा है। अतएव
विदेशी जहाजों से आने वाली चीजें कुछ समय बाद ही
कबाड़ का रूप ले लेती हें। वैसे भी हमारे देश में यह
कहावत प्रचलित है कि सस्ती चीजें कबाड़ के भाव में
बेची जाती हैं। गांवों में आज भी कचरे को गड्ढे में
डालने का रिवाज है। इससे खाद बनता है, जो खेतों में
काम आती है पर इस कचरे में प्लास्टिक नहीं होता।
जब से गांवों में इलेक्ट्रॉनिक की चीजें आने लगी हैं तब
से कचरे में यह भी शामिल हो गई हैं जिससे गांवों में ई-
कचरे का खतरा बढ़ रहा है। यदि कचरे में प्लास्टिक,
बिजली के तार आदि शामिल कर दिए जाएं तो वह
खाद के रूप में नहीं बदलता। इस तरह की चीजों से बनने
वाली खाद फसल के लिए भी हानिकारक साबित
होती है।