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आध्यात्मिक एवं भौतिक दृष्टि से गाय का
महत्त्व…….
आध्यात्मिक एवं भौतिक दृष्टि से गाय का
महत्त्व…….
गाय का यूं तो पूरी दुनिया में ही काफी महत्व है,
लेकिन भारत के संदर्भ में बात की जाए तो प्राचीन
काल से यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है।
चाहे वह दूध का मामला हो या फिर खेती के काम में
आने वाले बैलों का। वैदिक काल में गायों की संख्या
व्यक्ति की समृद्धि का मानक हुआ करती थी। दुधारू
पशु होने के कारण यह बहुत उपयोगी घरेलू पशु है।
भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही गोधन को मुख्य धन
मानते थे, और सभी प्रकार से गौ रक्षा और गौ सेवा,
गौ पालन भी करते थे। शास्त्रों, वेदों, आर्ष ग्रथों में
गौरक्षा, गौ महिमा, गौपालन आदि के प्रसंग भी
अधिकाधिक मिलते हैं। रामायण, महाभारत,
भगवतगीता में भी गाय का किसी न किसी रूप में
उल्लेख मिलता है। गाय का जहाँ धार्मिक
आध्यात्मिक महत्व है वहीं कभी प्राचीन काल में
भारतवर्ष में गोधन एक परिवार, समाज के महत्वपूर्ण
धनों में से एक है।
आज के दौर में गायों को पालने और खिलाने पिलाने
की परंपरा में लगातार कमी आ रही है। कभी हमारा
देश पशुपालन में अग्रणी रहा है। देशवासियों की
काफी जरूरतों को यही गौधन ही पूरा किया करता
था। गाय से बछड़ा, बछड़ा से बैल, बैल से खेती की
जरूरतें पूरी होती हैं। कृषि के लिए गाय का गोबर आज
भी वरदान माना गया है। फिर भी गौ पालन, गौ
संरक्षण आदि महत्वपूर्ण क्यों नहीं है? यह एक
विचारणीय प्रश्न है।
गाय को गोमाता के रूप में मानना भी अत्यन्त
वैज्ञानिक है । मां के दूध के बाद सबसे पौष्टिक
आहार देसी गाय का दूध ही है । इसमें जीव के लिये
उपयोगी ऐसे संजीवन तत्व है कि इसका सेवन सभी
विकारों को दूर रखता है । जिस प्रकार मां जीवन
देती है उसी प्रकार गोमाता पूरे समाज का पोषण
करने का सामर्थ्य रखती है । इसमें माता के समान ही
संस्कार देने की भी क्षमता है । देशज वंशों की गाय
स्नेह की प्रतिमूर्ति होती है । गाय जिस प्रकार
अपने बछडे अर्थात वत्स को स्नेह देती है वह अनुपमेय है,
इसलिये उस भाव को वात्सल्य कहा गया है । वत्स के
प्रति जो भाव है वह वत्सलता है ।
भारत में गाय को देवी का दर्जा प्राप्त है। ऐसी
मान्यता है कि गाय के शरीर में 33 करोड़ देवताओं
का निवास है। यही कारण है कि दिवाली के दूसरे
दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर गायों की विशेष
पूजा की जाती है और उनका मोर पंखों आदि से
श्रृंगार किया जाता है।प्राचीन भारत में गाय
समृद्धि का प्रतीक मानी जाती थी। युद्ध के दौरान
स्वर्ण, आभूषणों के साथ गायों को भी लूट लिया
जाता था। जिस राज्य में जितनी गायें होती थीं
उसको उतना ही सम्पन्न माना जाता है। कृष्ण के
गाय प्रेम को भला कौन नहीं जानता। इसी कारण
उनका एक नाम गोपाल भी हें.
मानव को स्वयं में परिपूर्ण होने के लिये आत्मीयता के
इस संस्कार की बडी आवश्यकता है । परिवार, समाज,
राष्ट्र व पूरी मानवता को ही धारण करने के लिये यह
त्याग का संस्कार अत्यन्त आवश्यक है । पूरे विश्व का
पोषण करने में सक्षम व्यवस्था के निर्माण के लिये
अनिवार्य तत्व का संस्कार गोमाता मानव को देती
है । शोषण मानव को दानव बनाता है ।
गोमाता संस्कार देती है दोहन का । दोहन अर्थात
अपनी आवश्यकता के अनुरूप ही संसाधनों का प्रयोग
। जिस प्रकार गाय का दूध निकालते समय बछडे की
आवश्यकता को संवेदना के साथ देखा जाता है उसी
प्रकार जीवन के सभी क्रिया-कलापों में भोग को
नियंत्रित करने का संस्कार दोहन देता है । आज सारी
व्यवस्था ही शोषण पर आधारित हो गई है । इस कारण
सम्पन्न व विपन्न के बीच की खाई बढती जा रही है ।
गोमाता के मातृत्व को केन्द्र में रखकर बनी व्यवस्था
से ही “सर्वे भवन्तु सुखिन:” को साकार करना सम्भव
हो सकेगा । इसी आदर्श को प्रस्थापित करने हमारे
ज्ञानी ॠषी पूर्वजों ने गाय की पूजा की ।
गायों की प्रचूरता के कारण ही भारतभूमि यज्ञभूमि
बनी है । पर आज हमने गायों को दुर्लक्षित कर दिया
है इसी कारण देश के प्राणों पर बन पडी है । गाय के
सान्निध्य मात्र से ही मनुष्य प्राणवान बन जाता है
। आज हमारे शहरी जीवन से हमने गाय को कोसों दूर
कर दिया है । परिणाम स्पष्ट है मानवता त्राही-
त्राही कर रही है और दानवता सर्वत्र हावी है ।
तपोभूमि भारत ॠषियों की भूमि है । तपस्या के
द्वारा यहाँ ज्ञान व विज्ञान दोनों का ही
परमोच्च विकास हुआ । अपने गहन अंतरतम में प्रसुप्त
सत्य को प्रकाशित करना ज्ञानयज्ञ है । वहीं सत्य
जब जीवन के व्यवहार में उतारा जाता है तब ज्ञान के
इस विशेष प्रयोग को विज्ञान कहते हैं । हिन्दू जीवन
पद्धति के हर अंग की वैज्ञानिकता का यही रहस्य है
। आधुनिक भौतिक विज्ञान की प्रगति के साथ
जहाँ अन्य मतों को अपने धर्मग्रंथों को बदलना पड
रहा है, वहीं दूसरी ओर जैसे-जैसे अणु से भी सूक्ष्म कणों
पर प्रयोग के द्वारा सृष्टि के सुक्ष्मतम रहस्यों की
खोज होती जा रही है वैसे-वैसे वेदोक्त हिन्दू
सिद्धान्तों की पुष्टि होती जा रही है ।
वेद तो सत्य है ही उनके निकट आने से आधुनिक
विज्ञान की सत्यता स्पष्ट होती है । यदि हमारे
ॠषियों की बातें आज हमें वैज्ञानिक आधार पर
स्पष्ट नहीं हो पा रही है तो शंका उनकी सत्यता पर
नहीं विज्ञान के अधूरेपन पर करनी होगी ।”
भारतीय विज्ञान की दिशा अंदर से बाहर की ओर
है । आधुनिक विज्ञान बाह्य घटनाओं के निरीक्षण व
प्रयोग के द्वारा उसमें छिपे सत्य को पहचानने का
प्रयत्न करता है । हिन्दू विज्ञान सूक्ष्म से स्थूल की
ओर ले जाता है तो आधुनिक विज्ञान ठोस स्थूल के
माध्यम से विश्लेषण व निष्कर्ष की विधि द्वारा
सूक्ष्म को पकडने का प्रयास कर रहा है । इस मूलभूत
भेद को समझने से हम भारतीय वैज्ञानिक दृष्टि का
सही विकास कर सकते हैं । फिर हम अपने अज्ञान के
कारण ॠषियों द्वारा स्थापित परम्पराओं को
अन्धविश्वास के रूप में नकारने के स्थान पर उनमें छिपे
गूढ तत्व को समझने का प्रयत्न करेंगे । गाय को
भारतीय जीवन में दिये जाने वाले महत्व को भी इसी
श्रद्धात्मिका दृष्टि से समझा जा सकता है ।
गाय का आध्यात्मिक महत्वः-
गाय का विश्व स्तर पर आध्यात्मिक महत्व है, ”गावो
विश्वस्य मातरः”। नवग्रहों सूर्य, चंद्रमा, मंगल, राहु,
बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, केतु के साथ साथ वरूण, वायु
आदि देवताओं को यज्ञ में दी हुई प्रत्येक आहुति गाय
के घी से देने की परंपरा है, जिससे सूर्य की किरणों
को विशेष ऊर्जा मिलती है। यही विशेष ऊर्जा
वर्षा का कारण बनती है, और वर्षा से ही अन्न, पेड़-
पौधों आदि को जीवन प्राप्त होता है। हिंदू धर्म में
जितने धार्मिक कार्य, धार्मिक संस्कार होते हैं जैसे
नामकरण, गर्भाधान, जन्म आदि सभी में गाय का दूध,
गोबर, घी, आदि का ही प्रयोग किया जाता है
जहां विवाह संस्कार आदि होते हैं वहां भी गोबर के
लेप से शुद्धिकरण की क्रिया करते हैं। विवाह के समय
गोदान का भी बहुत महत्व माना गया है। जनना शौच
और मरणाशौच मिटाने के लिए भी गाय का गोबर
और गौमूत्र का प्रयोग किया जाता है। इसकी
धार्मिक वजह यह भी है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी
जी का और गोमूत्र में गंगा जी का निवास है।
वैतरणी पार करने के लिए गोदान की प्रथा आज भी
हमारे समाज में मौजूद है, श्राद्ध कर्म में भी गाय के दूध
की खीर का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसी
खीर से पितरों की ज्यादा से ज्यादा तृप्ति होती
है। पितर, देवता, मनुष्य आदि सभी को शारीरिक बल
गाय के दूध और घी से ही मिलता है। गाय के
शारीरिक अंगों में सभी देवताओं का निवास माना
जाता है। गाय की छाया भी बेहद शुभ प्रद मानी
गयी है। गाय के दर्शन मात्र से ही यात्रा की
सफलता स्वतः सिद्ध हो जाती है। दूध पिलाती
गाय का दर्शन तो बेहद शुभ माना जाता है।
गाय का ज्योतिषीय महत्वः-
1. नवग्रहों की शांति के संदर्भ में गाय की विशेष
भूमिका होती है कहा तो यह भी जाता है कि
गोदान से ही सभी अरिष्ट कट जाते हैं। शनि की
दशा, अंतरदशा, और साढेसाती के समय काली गाय
का दान मनुष्य को कष्ट मुक्त कर देता है।
2. मंगल के अरिष्ट होने पर लाल वर्ण की गाय की
सेवा और निर्धन ब्राम्हण को गोदान मंगल के प्रभाव
को क्षीण करता है।
3. बुध ग्रह की अशुभता निवारण हेतु गौवों को हरा
चारा खिलाने से बुध की अशुभता नष्ट होती है।
4. गाय की सेवा, पूजा, आराधना, आदि से लक्ष्मी
जी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को सुखमय होने का
वरदान भी देती हैं।
5. गाय की सेवा मानसिक शांति प्रदान करती है।
गाय से संबंधित धार्मिक वृत व उपवासः-
1. गोपद्वमव्रतः- सुख, सौभाग्य, संपत्ति, पुत्र, पौत्र,
आदि के सुखों को देने वाला है।
2. गोवत्सद्वादशी व्रतः- इस व्रत से समस्त
मनोकामनाऐं पूर्ण होती हैं।
3. गोवर्धन पूजाः- इस लोक के समस्त सुखों में वृद्धि
के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4. गोत्रि-रात्र व्रतः- पुत्र प्राप्ति, सुख भोग, और
गोलोक की प्राप्ति होती है।
5. गोपाअष्टमीः- सुख सौभाग्य में वृद्धि होती है।
6. पयोव्रतः- पुत्र की प्राप्ति की इच्छा रखने वाले
दम्पत्तियों को संतान प्राप्ति होती है।
आज भी गाय की उत्पादकता व उपयोगिता में कोई
कमी नहीं आई है । केवल हमने अपनी जीवनशैली को
प्राकृतिक आधार से हटाकर यन्त्राधारित बना
लिया है । विदेशियों के अंधानुकरण से हमने कृषि को
यन्त्र पर निर्भर कर दिया । यन्त्र तो बनने के समय से
ही ऊर्जा को ग्रहण करने लगता है और प्रतिफल में
यन्त्रशक्ति के अलावा कुछ भी नहीं देता । बैलों से
हल चलाने के स्थान पर ट्रेक्टर के प्रयोग ने जहाँ एक ओर
भूमि की उत्पादकता को प्रभावित किया है वहीं
दूसरी ओर गोवंश को अनुपयोगी मानकर उसके महत्व
को भी हमारी दृष्टि में कम कर दिया है । फिर यन्त्र
तो ईंधन भी मांगते हैं ।
सारी सृष्टि में केवल दो ही प्राणियों के देह ऐसे हैं
जिनमे पूरे तैंतीस कोटी प्राण निवास करते हैं- गाय
और मानव । मानव को कर्म स्वातंत्र्य होने के कारण
वह उन प्राणों का साक्षात्कार कर अपनी
आध्यात्मिक उन्नति के लिये उनका प्रयोग कर सकता
है । इसी के लिये गोमाता का पूजन व सान्निध्य
अत्यन्त उपयोगी है । इस विज्ञान के कारण ही गाय
को समस्त देवताओं के निवास के रूप में पूजा जाता है ।
सभी धार्मिक अनुष्ठानों में गाय के पंचगव्यों का
महत्व होता है । गोबर से लिपी भूमि, दूध, दही, घी से
बना प्रसाद, गोमूत्र का सिंचन तथा गोमाता का
पूजन पूरे तैंतीस करोड प्राणों को जागृत कर पूजास्थल
को मानव के सर्वोच्च आध्यात्मिक उत्थान की
प्रयोगशाला बना देता है । गायों की प्रचूरता के
कारण ही भारतभूमि यज्ञभूमि बनी है । आज हमने
गायों को दुर्लक्षित कर दिया है इसी कारण देश के
प्राणों पर बन पडी है । गाय के सान्निध्य मात्र से
ही मनुष्य प्राणवान बन जाता है । आज हमारे शहरी
जीवन से हमने गाय को कोसों दूर कर दिया है ।
परिणाम स्पष्ट है मानवता त्राही-त्राही कर रही है
और दानवता सर्वत्र हावी है ।
आज मानव के स्वयं के कल्याण हेतु, विश्व की रक्षा
हेतु, पर्यावरण के बचाव के लिये तथा समग्र, अक्षय
विकास के लिये गाय के संवर्धन की नितान्त
आवश्यकता है । गो-विज्ञान को पुन: जागृत कर जन -
जन में प्रचारित करने की अनिवार्यता है ।
गोशालाओं के माध्यम से कटती गायों को बचाने के
उपक्रम तो आपात्कालीन उपाय के रूप में करने ही होंगे
किन्तु गो आधारित संस्कृति के विकास के लिये गो-
केन्द्रित जीवन पद्धति को विकसित करना होगा ।
प्रत्येक घर में गाय का पालन करने के लिए
प्रोत्साहित करना आवश्यक है । गाय के सान्निध्य
मात्र से ही जीवन शरीर, मन, बुद्धि के साथ ही
आध्यात्मिक स्तर पर पवित्र व शुद्ध हो जायेगा ।
प्रतिदिन कटती लाखों गायों के अभिशाप से बचने
के लिये शासन पर दबाव डालकर गो-हत्या बंदी
करवाने का प्रयास तो आवश्यक है ही किन्तु उससे भी
बडी आवश्यकता है प्रत्येक के दैनंदिन जीवन में गाय
प्रमुख अंग हो ।
गाय के दूध का महत्त्व एवं प्रभाव—–
गाय का दूध बहुत ही पौष्टिक होता है। यह बीमारों
और बच्चों के लिए बेहद उपयोगी आहार माना जाता
है। इसके अलावा दूध से कई तरह के पकवान बनते हैं। दूध
से दही, पनीर, मक्खन और घी भी बनाता है। गाय
का घी और गोमूत्र अनेक आयुर्वेदिक औषधियां बनाने
के काम भी काम आता है। गाय का गोबर फसलों के
लिए सबसे उत्तम खाद है। गाय के मरने के बाद उसका
चमड़ा, हड्डियां व सींग सहित सभी अंग किसी न
किसी काम आते हैं।
अन्य पशुओं की तुलना में गाय का दूध बहुत उपयोगी
होता है। बच्चों को विशेष तौर पर गाय का दूध
पिलाने की सलाह दी जाती है क्योंकि भैंस का दूध
जहां सुस्ती लाता है, वहीं गाय का दूध बच्चों में
चंचलता बनाए रखता है। माना जाता है कि भैंस का
बच्चा (पाड़ा) दूध पीने के बाद सो जाता है, जबकि
गाय का बछड़ा अपनी मां का दूध पीने के बाद उछल-
कूद करता है।
गाय न सिर्फ अपने जीवन में लोगों के लिए उपयोगी
होती है वरन मरने के बाद भी उसके शरीर का हर अंग
काम आता है। गाय का चमड़ा, सींग, खुर से दैनिक
जीवनोपयोगी सामान तैयार होता है। गाय की
हड्डियों से तैयार खाद खेती के काम आती है।
घर घर में गोपालन हो । अपने हाथ से गोसेवा करने का
सौभाग्य हर परिवार को प्राप्त हो । प्रत्यक्ष
जिनके भाग्य में यह गोसेवा नहीं वे रोज गोमाता
का दर्शन तो करें । मन ही मन पूजन, प्रार्थना करें व
प्रतिदिन अपनी आय का कुछ भाग इस हेतु दान करें ।
किसी ना किसी रूप में गाय हमारे प्रतिदिन के
चिंतन, मनन व कार्य का हिस्सा बनें । यही मानवता
की रक्षा का एकमात्र उपाय है ।
गायों की यूं तो कई नस्लें होती हैं, लेकिन भारत में
मुख्यत: सहिवाल (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली,
उत्तरप्रदेश, बिहार), गीर (दक्षिण काठियावाड़),
थारपारकर (जोधपुर, जैसलमेर, कच्छ), करन फ्राइ
(राजस्थान) आदि हैं। विदेशी नस्ल में जर्सी गाय
सर्वाधिक लोकप्रिय है। यह गाय दूध भी अधिक देती
है। गाय कई रंगों जैसे सफेद, काला, लाल, बादामी
तथा चितकबरी होती है। भारतीय गाय छोटी
होती है, जबकि विदेशी गाय का शरीर थोड़ा भारी
होता है।
इस्लाम धर्म में गाय का महत्व——-
देश में विद्वेषपूर्ण और भ्रमक प्रचार किया जाता हैं
कि इस्लाम गौवध कि इजाजत देता हैं | किन्तु ऐसा
नहीं हैं निम्नलिखित उदाहरणों व तथ्यों के आधार पर
यह स्पष्ट होता हैं कि इस्लाम व पैगम्बर साहब सदा
गाय को आदर की नजर से देखते थे |
——( बेगम हजरत आयशा में ) हजरत मों. साहब लिखते हैं
कि गाय का दूध बदन की ख़ूबसूरती और तंदुरुस्ती
बढाने का बड़ा जरिया हैं |
—–(नासिहते हाद्रो) हजरत मों. साहब लिखते हैं कि
गाय का दूध और घी तंदुरुस्ती के लिए बहुत जरूरी हैं |
और उसका मांस बीमारी पैदा करता हैं | जबकि
उसका दूध भी दवा हैं |
——( कुरान शरीफ 16 – 66 ) में लिखा हैं कि
बिलासक तुम्हारे लिए चौपायों में भी सीख हैं | गाय
के पेट की चीजों से गोबर और खून के बीच में से साफ़
दूध पीने वालों के लिए स्वाद वाला हैं | हजरत मों
साहब ने कहा हैं कि गाय दौलत कि रानी हैं | जब
भारत में इस्लाम का प्रचार शुरू हुआ, तब गौ रक्षा का
प्रश्न भी सामने आया, इसे सभी मुस्लिम शासको ने
समझा और उन्होंने फरमान जारी करके गाय बैल का
क़त्ल बंद किया था |
—–जम्मू एंड कश्मीर में लगभग पांच सौ वर्षों से गाय
का क़त्ल बंद हैं |
——” मौलाना फारुखी लिखित ” खेर का बरकत से
पता चलता हैं कि सरीफ मक्काने में भी गौ हत्या बंद
करवाई गई थी |
——मुसलमानों को गाय नहीं मारना चाहिए ऐसा
करना हदीस के खिलाफ हैं | यह बात मौलाना हयात
सा व खानखाना हाली समद सा. ने कही थी |
—–तफसीर हर मंसूर ने कहा कि गाय कि बुजुर्गी
इहतराम किया करो, क्योंकि वह तमाम चोपायों
कि सरदार हैं |
——बाबर, हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ जैसे
शाशकों ने सौ से ज्यादा उलेमा, अहले सुप्त्के फ़तवा
के मुताबिक गाय की क़ुरबानी बंद करवाई थी |
—–भारतीय स्वतंत्र संग्राम के प्रसिद्द सेनानी
हाकिम अजमल खान का कहना हैं कि ना तो कुरान
और न अरब कि प्रथा हैं की गाय कि क़ुरबानी हो |
—— जब सन 1922 में मौलाना अब्दुल बीरा सा. ने
गाय कि क़ुरबानी बंद करवाई तो महात्मा गांधी ने
उसका स्वागत किया था | किन्तु दुर्भाग्य से अंग्रेजी
शासन में गाय बैल का क़त्ल प्रारंभ हो गया, अंग्रेजो
कि फ़ौज गाय बैल का मांस बड़े शोक से खाती थी |
इसलिए उन्होंने इस धंधे पर मुस्लिम कसाइयों को
लगाया था ताकि हिन्दू और मुस्लिम भाइयों के बीच
गहरे मतभेद हो जाये, यही प्रमुख कारण था, और आज
भी हैं |
—–“गाय चौपायों की सरदार है” – कुरान
—–” गाय का दूध-घी शिफा (दवा) है और गौमांस
बीमारी है” मोहम्मद साहब
—-“खुदा के पास खून और गोश्त नहीं पहुँचता – त्याग
की भावना पहुँचती है”
—–एक धार्मिक महिला को बिल्ली को मारने के
कारण दोजख मिला, एक बदनाम महिला को कुत्ते
को पानी पिलाने के कारण जन्नत मिली.
—–जिस देश में रहते हो उसके कानून का पालन करो.
——पडोसी को दुःख पहुँचाना पाप है.
—–बाबर से बहादुर शाह जफ़र तक के शासन काल में
गोहत्या प्रतिबंधित थी.
——बहादुर शाह जफर ने स्वयं मुनादी फिरवाई थी कि
बकरीद पर गाय की कुर्बानी करने वाले को तोप से
उड़ा दिया जायेगा
—- “गो हत्या करने वाले aके विरुद्ध, क़यामत के दिन,
मोहम्मद साहब गवाही देंगे” – देव बंद के फतवे का
सार….
आज खनिज तेल के आयात के कारण देश की
अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर हो रहा है । और बढती
महंगाई का एक महत्वपूर्ण कारण यह तेल निर्भर
व्यापार ही है । अप्राकृतिक, पर्यावरण के लिये
विनाशकारी इस जीवनशैली को छोड गो आधारित
उत्पादक अर्थनीति को अपनाना ही अक्षय विकास
का माध्यम हो सकता है । आधुनिक तकनीकि उन्नति
का प्रयोग कर गो-ऊर्जा पर आधारित कृषि यन्त्रों
को विकसित करने की आवश्यकता है ताकि
प्राकृतिक विधि से उत्पादकता भी बढे और गोमाता
का आशीर्वाद भी बना रहे।
कुल मिलाकर गाय का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व है।
गाय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तो आज भी रीढ़ है।
दुर्भाग्य से शहरों में जिस तरह पॉलिथिन का उपयोग
किया जाता है और उसे फेंक दिया जाता है, उसे
खाकर गायों की असमय मौत हो जाती है। इस
दिशा में सभी को गंभीरता से विचार करना होगा
ताकि हमारी ‘आस्था’ और ‘अर्थव्यवस्था’ के प्रतीक
गोवंश को बचाया जा सके।