जन्म कुंडली और स्वयं के मकान बनाने के योग

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किसी भी व्यक्ति के जीवन में अपना मकान होना बहुत बड़ा सपना होता है जिसके लिए वह रात-दिन मेहनत करता है। मकान अथवा भवन जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक माना जाता रहा है। जन्म लेने से मरण तक व्यक्ति की तीन मूलभूत आवश्यकताएं कही गई हैं जिनमें रोटी, कपड़ा व मकान प्रमुख है। एक अच्छा घर बनाने की इच्छा हर व्यक्ति के जीवन की चाह होती है. व्यक्ति किसी ना किसी तरह से जोड़-तोड़ कर के घर बनाने के लिए प्रयास करता ही है. कुछ ऎसे व्यक्ति भी होते हैं जो जीवन भर प्रयास करते हैं लेकिन किन्हीं कारणो से अपना घर फिर भी नहीं बना पाते हैं. कुछ ऎसे भी होते हैं जिन्हें संपत्ति विरासत में मिलती है जन्मपत्री में चतुर्थ भाव भूमि, गृह, वाहन आदि का होता है जबकि मंगल ग्रह को भूमि का कारक कहा गया है जिससे स्पष्ट होता है कि चतुर्थ भाव, चतुर्थेश व मंगल यदि शुभता लिए हुए हों तो व्यक्ति अवश्य ही मकान अथवा भूमि का स्वामी होता है या हो सकता है। चतुर्थ भाव, चतुर्थेश व मंगल यदि अशुभावस्था में हों तो भी व्यक्ति किसी अन्य कारणवश मकान व भूमि का स्वामी तो बन जाता है परंतु उनका सुख नहीं भोग पाता। ज्योतिष शास्त्र में अपना घर होने के कुछ महत्वपूर्ण ज्योतिषीय योग। अगर चतुर्थ भाव का स्वामी किसी भी केंद्र या त्रिकोण स्थान में स्थित है तो जातक को घर का स्वामी बनाता है। —– यदि चतुर्थ भाव में पंचम भाव का स्वामी मित्र क्षेत्री हो या उच्च का हो तो उसे पुत्रों द्वारा बनाए मकान का सुख मिलता है।

चतुर्थ स्थान का स्वामी 6, 8, 12 स्थान में हो तो गृह निर्माण में बाधाएँ आती हैं। उसी तरह 6, 8, 12 भावों में स्वामी चतुर्थ स्थान में हो तो गृह सुख बाधित हो जाता है। चतुर्थ का संबंध नवम से बन रहा हो तब व्यक्ति को अपने पिता से भूमि लाभ हो सकता है. यदि चौथे भाव का स्वामी ग्रह अपनी उच्च, मूल त्रिकोण राशि या स्वगृही, उच्चाभिलाशि, मित्रक्षेत्री, शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को जमीं, जायदाद, मकान आदि का सुख मिलता है। अगर जन्म कुंडली में मंगल बलवान हो, अपनी उच्च राशि का होकर लग्न, पंचम या नवम भाव में हो और चतुर्थ भाव में कोई भी पापी ग्रह नहीं बैठा हो तो जातक के पास विपुल भू-सम्पदा होती है | अगर भूमि और जायदाद के योग में दशमेश, नवमेश और लाभेश ग्रहो का संयोग हो तो व्यक्ति उच्च स्तर का भूस्वामी तथा जमीन-जायदाद के धंधे से लाभ उठाने वाला होता है। यदि द्वितीय भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में स्वग्रही या उच्च का या मित्र क्षेत्री होकर बैठ जाए तो उसे परिवार के सहयोग से या कौटुम्बिक मकान मिलेगा। नवमेश केन्द्र में हो, चतुर्थेश सर्वोच्च राशि में या स्वक्षेत्री हो, चतुर्थ भाव में भी स्थित ग्रह अपनी उच्च राशि में हो - धनेश, लग्नेश व चतुर्थेश का संबंध एक से अधिक मकान दिलाता है।

यदि भवन कारक भाव-चतुर्थ में निर्बल ग्रह हो, तो जातक को मकान का सुख नही मिल पाता । इन कारकों पर जितना पाप प्रभाव बढ़ता जाएगा या कारक ग्रह निर्बल होते जाएंगे उतना ही मकान सुख कमजोर रहेगा। जितने ग्रह और योग पॉजिटिव होगें उतना अच्छा घर और योग जितने कमजोर होंगे घर बनाने में उतनी ही अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.| परिवार के अन्य सदस्यो के शुभ ग्रहो से भी मकान की प्राप्ति के योग बनते है . | सम्पूर्ण परिवार की कुंडली में किसी न किसी का भाग्य का फल मिलता ही है | शास्त्र अनुसार कन्याये काफी भाग्यशाली होती है उनका हमेशा आदर करे | ज्योतिषीय उपाय के द्वारा नवमेश , धनेश एवेम चतुर्थ भाव , भावेश कारक को मजबूत और अनुकूल बनाये और स्वयं का उत्तम घर बनाने का सपना ज्यादा से ज्यादा मेहनत करके कम समय में पूरा करे |