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लोहड़ी उत्तर भारत का एक फेमस त्योहार है। यह देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीके, रीति-रिवाज से मनाया जाता है। यह मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है। यह त्योहार पंजाब और जम्मू-कश्मीर में मनाया जाता है। ये भी पढ़े- इस साल का पहला पुष्य नक्षत्र मकर संक्रांति से पहले, खरीददारी के लिए शुभ दिन कई साल बाद विशेष संयोग के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग में मनेगी मकर संक्रांति रामचरितमानस: कभी न करें ऐसे व्यक्तियों से इस तरह की बातें, होगा आपका ही नुकसान राशिफल 2017: एक क्लिक में जानिए कैसा रहेगा आपका नया साल मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर इस त्योहार का उल्लास रहता है। रात में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं। इस समय रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाए जाते हैं। इस बार लोहड़ी 13 जनवरी, शुक्रवार को हैं। इस दिन सब एक-दूसरे से मिलकर इस खुशी को बांटते है। ऐसे मनाते हैं लोहड़ी का उत्सव लोहड़ी के शाम को जब सूरज ढल जाता है तो घरों के बाहर बड़े-बड़े अलाव जलाए जाते हैं। महिला और पुरुष सज-सवर कर अलाव के चारों ओर इकट्ठा होकर भांगड़ा नृत्य करते हैं। क्योंकि अग्नि ही इस पर्व के मुख्य देवता हैं, इसलिए चिवड़ा, तिल, मेवा, गजक आदि की आहुति भी अलाव में चढ़ाई जाती है। इसी के साथ-साथ नगाड़ों की तेज ध्वनि के साथ डांस करते है। सभी एक-दूसरें को लोहड़ी की शुभकामनाएं देते है। इसके बाद सब लोग अलाव के चारों तरफ बैठकर मूंगफली, रेवड़ी आदि प्रसाद के रुप में खाते है। यह पंजाबियों का मुख्य त्योहारों में से एक है। अगली स्लाइड में पढ़े कथा के बारें में लोहड़ी पर्व की कथा द्वापरयुग में जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया, तब कंस सदैव बालकृष्ण को मारने के लिए नित्य नए प्रयास करता रहता था। एक बार जब सभी लोग मकर संक्रांति का पर्व मनाने में व्यस्त थे। कंस ने बालकृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा, जिसे बालकृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था। लोहिता नामक राक्षसी के नाम पर ही लोहड़ी उत्सव का नाम रखा। उसी घटना की स्मृति में लोहड़ी का पावन पर्व मनाया जाता है। सिंधी समाज में भी मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व 'लाल लोही' के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है। पंजाबी समुदाय़ के साथ अन्य समुदाय के लोग भी इस पर्व में बढ चढ़ कर हिस्सा लेते है। इस दिन होली की तरह ही लोहड़ी की शाम को भी लकड़ियां इकट्ठी कर जलाई जाती हैं और तिल से अग्निपूजा की जाती है। इस त्योहार का रोचक तथ्य यह है कि इस त्योहार के लिए बच्चों की टोलियां घर-घर जाकर लकड़ियां इकट्ठा करती हैं और लोहड़ी के गीत गाती हैं। इनमें से एक गीत खूब पसंद किया जाता है। इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है किवदंती के अनुसार, एक ब्राह्मण की बहुत छोटी कुंवारी कन्या को जो बहुत सुंदर थी, को गुंडों ने उठा लिया। दुल्ला भट्टी ने जो मुसलमान था, इस कन्या को उन गुंडों से छुड़ाया और उसका विवाह एक ब्राह्मण के लड़के से कर दिया। इस दुल्ला भट्टी की याद आज भी लोगों के दिलों में है और लोहड़ी के अवसर पर गीत गाकर दुल्ला भट्टी को याद करते हैं। सुंदर मुंदरिए। ...हो तेरा कैन बेचारा, ...हो दुल्ला भट्टी वाला, ...हो दुल्ले धी ब्याही, ...हो सेर शक्कर आई, ...हो कुड़ी दे बोझे पाई, ...हो कुड़ी दा लाल पटारा, ...हो लोहड़ी पर्व क्योंकि मकर-संक्रांति से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है तथा इस त्योहार का सीधा संबंध सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से होता है। सूर्य स्वयं आग व शक्ति के कारक हैं, इसलिए इनके त्योहार पर अग्नि की पूजा तो होनी ही है। किसान इसे रबी की फसल आने पर अपने देवों को प्रसन्न करते हुए मनाते हैं।