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'हीरा’
कैसे खोलता है विनाश के द्वार?
जब से हीरे के बारे में दुनिया्ँ ने जाना है तभी से इसका आकर्षण हर किसी को अपनी ओर खींचता है। महिलाएं तो इसकी खास तौर से चाहत रखती हैं। हर किसी के लिए ये ज्योतिषीय रत्न की अपेक्षा फ़ैशन और स्टेटस सिंबल अधिक होता है। इसका बहुमूल्यवान होना ही इसकी खासियत नहीं है वरन् इसकी किरण रश्मियों की गुणवत्ता और प्रभावशीलता ही इसे कहीं अधिक महत्वपूर्ण बनाती है। दुनिया के इस अति मूल्यवान रत्न की कुछ ऐसी विशेषताएं हैं, जो इसे एस्ट्रोलॉजी के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण बनाती हैं।
खास बात ये है कि इसकी पॉजिटिव एनर्जी जितनी तेजी से अपना असर छोड़ती है, उससे कहीं अधिक तेजी से इसकी निगेटिव ऊर्जा प्रभाव दिखलाती है। यही कारण है कि हीरा अथवा डायमंड ही ऐसा रत्न है, जिसे केवल आभूषण के रूप में पहनने की गलती नहीं करनी चाहिए। खासतौर से ऐसी स्त्रियां जिन्हें पुत्र की चाह हो उन्हें तो स्वप्न में भी हीरे का ख्वाब नहीं पालना चाहिए अन्यथा उन्हें सिर्फ पुत्रियां ही प्राप्त होंगी।
डायमंड की सबसे खास बात है इससे निकलने वाली ऊर्जा किरण शरीर पर रिफ्लेक्शन के द्वारा ही प्रभाव कर जाती है। इसीलिए इसको अंगूठी के रूप में पहनने के लिए हीरे का अंगुली से स्पर्श करना बिल्कुल जरूरी नहीं है। ये ऊपर से ही अपना प्रभाव दिखला जाएगा। इसके अलावा यदि हीरे को बहुत अधिक तराश दिया गया है, तो ऐसे में उसका असर न्यूनतम हो जाता है। वस्तुतः एस्ट्रोलॉजी के लिहाज़ से हीरे को कम तराशा गया हो और उसमें किसी भी तरह के विकार न हों, ऐसा ही रत्न उपयुक्त होता है। सामान्य रूप से एक कैरेट से दो कैरेट के बीच का हीरा एस्ट्रोलॉजिकल रेमेडी के लिए कारगर सिद्ध होता है। यदि कोई व्यक्ति एक कैरेट से कम वजन का हीरा धारण करे तो सामान्यतया वह व्यर्थ सिद्ध हो जाता है। इसलिए इस बात की सावधानी जरूर बरतनी चाहिए कि कोई भी डायमंड पहनने के लिए उसका वजन रिकमंडेड सीमा में हो साथ ही उस पर किसी भी तरह के निशान या स्क्रेच भी नहीं हों। जितना ही कम तराशा हुआ हीरा ग्रहीय उपाय के लिए पहना जाएगा, उसका प्रभाव भी उतना ही अधिक होगा। अब बात करते हैं कि हीरा विनाशकारी कैसे सिद्ध हो सकता है?
तो ध्यान रहे हीरे का प्रतिनिधि ग्रह है शुक्र, जो ऐश्वर्य, विलासिता, सुखभोग, वाहन, राजसुख, स्त्री व इंद्रिय सुख आदि का प्रतिनिधित्व करता है। यानि समस्त संसार के समस्त भौतिक सुख शुक्र से प्रभावित होते हैं।
जिस भी जातक की जन्म कुण्डली में शुक्र की पोजीशन स्ट्रॉंग होती है, उसे ऐसे सुखों का बाहुल्य होता है। उम्र ऐसा जातक भांति-भांति की लक्जरी भोगता रहता है। किंतु विपरीत व नकारात्मक शुक्र की दशा में ठीक इससे विपरीत हालात होते हैं। यानि यदि किसी जातक की कुण्डली में शुक्र की दशा खराब है, पीड़ित है, तो ऐसा जातक जीवनभर कष्ट भोगता रहता है, उसे लक्जरी यानि भोग के सुख-साधन प्राप्त होने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
अब यदि खराब शुक्र की दशा मौज़ूद हो तो उस शुक्र का पॉवर बढ़ाने से जीवन में गड़बड़ी इतनी बढ़ जाएगी कि उसे संभालना मुश्किल हो जाएगा। यानि नीच, अस्त, शत्रु गृही अथवा कुण्डली के छः, आठ व बारहवें भाव में बैठे शुक्र का पॉवर बढ़ाने की भूल नहीं की जानी चाहिए। अब ऐसी अवस्था में किसी ने भी भूलवश हीरा पहन लिया तो उसके लिए यह विनाशकारी साबित हो जाता है।
यही शुक्र यदि सप्तमेश, अष्टमेश अथवा द्वितीयेश होकर किसी मारक स्थान पर बैठ भी गया हो तो हीरा उसकी मारकता को आशातीत ढंग से कई गुणा बढ़ा देने की शक्ति रखता है।
इस अवस्था में यदि कोई जातक अज्ञानतावश हीरे को आभूषण के रूप में पहन लेता है तो उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है तथा गलत संगत और शौक तथा व्यभिचार उसे कलंकित करके रख देते हैं