Image:
गुरू दीक्षा का महत्व
================
गुरु के पास जो श्रेष्ठ ज्ञान होता है, वह अपने शिष्य को प्रदान करने और उस ज्ञान में उसे पूरी तरह से पारंगत करने की प्रक्रिया की गुरु दीक्षा कहलाती है। गुरु दीक्षा गुरू की असीम कृपा और शिष्य की असीम श्रद्धा के संगम से ही सुलभ होती है। शास्त्रों में लिखा है- जैसे जिस व्यक्ति के मुख में गुरु मंत्र है, उसके सभी कार्य सहज ही सिद्ध हो जाते हैं। गुरु के कारण सर्वकार्य सिद्धि का मंत्र प्राप्त कर लेता है। गुरु दीक्षा मुख से मंत्र आदि बोलकर, दृष्टि के द्वारा अंतर्मन को जगाकर और स्पर्श के द्वारा कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत करके दी जाती है। भारतीय पंरम्परा के अनुसार सभी शिष्यों और साधकों के लिए गुरु दीक्षा एक अनिवार्य कर्म हैं इसके बगैर कोई भी सिद्धि संभव नहीं है।
आध्यात्मिकता में गुरु की आवश्यकता होती है | बिना किसी रास्ते के आप आध्यात्मिकता में सफल नहीं हो सकते हो | बिना गुरु के आप आध्यात्मिकता का रास्ता नहीं जान सकते हो | गुरु सभी आध्यात्मिकता में सफल हुए सभी लोगों के पास थे | गुरु का मतलब होता है :- ग का मतलब ज्ञान | उर का मतलब उर्जा | उ का मतलब उत्पन्न | ज्ञान-उर्जा को उत्पन्न करने वाला होता है गुरु | अगर आप किसी से मिलते हैं और उससे मिलने पर आप को लगता है की आपके अन्दर उर्जा का संचार हो रहा है और आप उसके साथ और समय बिताना चाहते हैं वह गुरु है | हम गुरु से दीक्षा लेते हैं | दीक्षा का मतलब होता है दमन करना इक्षाओं का, क्यूंकि आध्यात्मिकता में इक्षाएं सबसे बड़ी बाधक होती हैं | हम इन इक्षाओं की उपेक्षा करना चाहते हैं परन्तु हम सही रास्ता नहीं जानते हैं यह सब करने का | सेना में जवानों को भी सीखना पड़ता है की बन्दुक को कैसा चलाया जाता है | कंप्यूटर को भी सीखने के लिए टीचर चाहिए | बन्दुक और कंप्यूटर को चलाने के लिए बहुत सी पुस्तकें बाज़ार में उपलब्ध हैं किन्तु किताबों से हम सही विधि नहीं जान सकते हैं | पुस्तकें केवल जिज्ञासा को शांत करने के लिए बनी हैं | उसके लिए हमें टीचर, ट्रेनर, चाहिए | इसी तरह आध्यात्मिकता में बहुत सी पुस्तकें हैं, पथ है, मार्ग हैं, पर हमारे में समझ नहीं है की सही मार्ग कोन सा है ? इसीलिये किस तरह से हम अपने अन्दर उर्जा को उत्पन्न करे यह गुरु से सीखते हैं | हम में यह समझ नहीं है की किसको गुरु बनाये और किसको नहीं ? क्यूंकि हम आध्यात्मिकता की प्रक्रिया को नहीं जानते हैं | केवल मात्र कुछ प्राणायाम, आसन और ध्यान करने से हम यह समझने लगते हैं ही हम आध्यात्मिकता को जानते हैं |
गुरु की सेवा करो तो ही ज्ञान मिलता है | किताबों से ज्ञान नहीं मिलता है | किताबों से तो जानकारी मिलती है | पर बिना गुरु सेवा के ज्ञान कहीं नहीं मिलता है | भगवान् श्रीकृष्ण ने भी तो गुरु संदीपनी की सेवा की थी | भगवान् राम ने भी तो विश्वामित्र की की सेवा की थी | कर्ण ने भी तो परशुराम की सेवा की थी | असली ज्ञान तो सेवा से ही मिलता है | मोक्ष की साधना का पहला रास्ता और आखरी रास्ता गुरु जी के सेवा है | गुरु जी की सेवा ही मोक्ष को प्रदान करने वाली होती है | क्यूंकि गुरु जी के साथ-साथ जब हम तारतम्यता रखते हैं और उनके सेवा का हर तरह से ध्यान रखते हैं और गुरु जी के लिए उपयोगी जो है वह गुरु जी के मन में आते ही उसी समय हमारे मन में भी आ जाती है वह गुरु सेवा होती है | जब गुरु जी के साथ हम टीयुनिंग कर लेंगे तो गुरु जी का ज्ञान हमारे अन्दर अपने आप उतर आएगा और हमको बस उनके सेवा ही करनी चाहिए | क्यूंकि गुरु के आगे अपने आप को भूल जाना ही सबसे बड़ा ज्ञान है | गुरु के स्पंदन के साथ अपने स्पंदन को एक कर देना ही तो ज्ञान है | जैसे आप एक प्रयोग करना आप अपने कान में मोबाइल लगा कर एक गाना बजाना और वही एक बड़े स्पीकर पर लगाना और स्पीकर वाला जोर से बजाना देखना आपका गाना और स्पीकर का गाना दोनों मिला कर आप सुनोगे तो कितना आनंद आता है | गुरु तो उस परम तत्त्व को जानते हैं और वही परम तत्त्व को जो जानता है वही परम तत्त्व हो जाता है | इसलिए गुरु और परमात्मा एक है दोनों में कोई भेद नहीं है | गुरु ही परमात्मा है और परमात्मा ही गुरु है | गुरु के साथ रहने से गुरु की सेवा करने से ही हम उस परमात्मा के पास होते हैं | गुरु का व्याख्यान मौन होता है | और शिष्य उसको समझ लेता है | गुरु के साथ-साथ रहने से वह भी दिन गुरु हो जाता है | यही तो गुरु परम्परा है | किताबों के जानकारी लेकर और फिर उस पर गुमान करना कहाँ तक उचित है | वह तो किसी और का ज्ञान है हमारा ज्ञान तो नहीं है | और उसने वह ज्ञान कैसे पाया पता नहीं | तो फिर उसके ज्ञान को हम किस तरह प्रयोग कर रहे हैं | और जरूरी नहीं की किताबों में जो ज्ञान है वह पूरा है | किताब से अगर सीखेंगे तो कभी भी मैंदान में नहीं उतरेंगे | जबकि आध्यात्मिकता की शुरुवात है मैंदान में उतरने से शुरू होती है | जब गुरु अपने शिष्य को भिक्षा लेने की लिए भेजता है | तभी शिष्य का अहंकार चूर-चूर हो जाता है | की मैं तो बड़े घर की औलाद हूँ मैं और भिक्षा मांगू और दीक्षा के समय दूसरी बात होती है की उसका सिर मुंडा जाता है, उसके बाल काट दिए जाते हैं | अब बाल जो हैं वह सबसे बड़े मोह के कारण हैं | आदमी का सबसे मोह दूर हो जाता है, पर बालों से मोह दूर नहीं होता है, सीलिए तो वह बालों पर बहुत नाज़ करता है, तो सबसे पहले गुरु उसके बाल कटवा देता दीक्षा के समय | अब वह मुंडन दे साथ किस तरह रहेगा | यह वही जानता है जिसने मुंडन करवाया है | आध्यात्मिकता बड़ी ही उल्टी होती है, इसमें किताबी ज्ञान नहीं इसमें तो शास्वत ज्ञान चाहिए |
गुरु दक्षिणा - जो दक्ष होता है उसी को दक्षिणा दी जाती है | दक्ष वह होता है जिसके पास अक्ष होता है | अक्ष वह होता है जो कभी क्षय नहीं होता है | क्षय जो नहीं होता है वह भगवान् है | भगवान् वह है जो ज्ञान वाला है | ज्ञान वाला केवल गुरु होता है | गुरु ही दक्ष होता है और उसी के पास अक्ष यानी आखें भी होती हैं | गुरु एक तरफ परमात्मा होता है और दूसरी तरफ शिष्य पर अक्ष यानी नज़र रखता है की शिष्य क्या कर रहा है ? क्यूंकि गुरु को उस शिष्य को भी तो दक्ष बनाना है | इस कार्य में गुरु दक्ष है इसलिए गुरु को शिष्य गुरु दक्षिणा देता है |