क्या भूत प्रेत योनि का अस्तित्व है ?

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 क्या भूत प्रेत योनि का अस्तित्व है  ?
 क्या भूत प्रेत योनि का अस्तित्व है  ?

                           क्या भूत प्रेत योनि का अस्तित्व है  ?

                             जो लोग अकाल मौत से मरते है उन्हे प्रेत योनि में जाना पडता है ऐसा गरुड-पुराण का मत है,इस प्रकार की आत्मायें जब किसी की देह में भरती है तो वह रोता है चीखता है चिल्लाता है,भागता है,कांपता है,सांस बहुत ही तीव्र गति से चलती है,किसी का भी किसी प्रकार से भी कहा नही मानता है,कटु वचनों के बोलने के कारण उसके परिवार या जान पहिचान वाले उससे डरने लगते है। अक्सर लोगों के अन्दर भूत प्रेत घुस जाते है और वे व्यक्ति के जीवन को तबाह कर देते है,| अक्सर सुनने में आता है कि उसके ऊपर भूत आ गया है या उसको प्रेत ने पकड़ लिया है जिसक कारण उसके घर वाले बहुत परेशान हैं। उसको संभाल ही नहीं पाते हैं। तान्त्रिक, मौलवी या ओझा के पास जाकर भी कुछ नहीं हुआ है। समझ नहीं आता है क्या करें..??? केसे जाने की भूत-प्रेत बाधा है या नहीं..?? आप अपनी या किसी की कुण्डली देखें और यदि ये योग उसमें विद्यमान हैं तो समझ लें कि जातक या जातिका भूत-प्रेत बाधा से परेशान है। भूत-प्रेत बाधा के योग इस प्रकार हैं- पहला योग-कुण्डली के पहले भाव में चन्द्र के साथ राहु हो और पांचवे और नौवें भाव में क्रूर ग्रह स्थित हों। इस योग के होने पर जातक या जातिका पर भूत-प्रेत, पिशाच या गन्दी आत्माओं का प्रकोप शीघ्र होता है। यदि गोचर में भी यही स्थिति हो तो अवश्य ऊपरी बाधाएं तंग करती हैं। दूसरा योग-यदि किसी कुण्डली में शनि, राहु, केतु या मंगल में से कोई भी ग्रह सप्तम भाव में हो तो ऐसे लोग भी भूत-प्रेत बाधा या पिशाच या ऊपरी हवा आदि से परेशान रहते हैं। तीसरा योग-यदि किसी की कुण्डली में शनि-मंगल-राहु की युति हो तो उसे भी ऊपरी बाधा, प्रेत, पिशाच या भूत बाधा तंग करती है। उक्त योगों में दशा-अर्न्तदशा में भी ये ग्रह आते हों और गोचर में भी इन योगों की उपस्थिति हो तो समझ लें कि जातक या जातिका इस कष्ट से अवश्य परेशान है। भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। ज्योतिष के अनुसार राहु की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा हो और चंद्र दशापति राहु से भाव ६, ८ या १२ में बलहीन हो, तो व्यक्ति पिशाच दोष से ग्रस्त होता है। वास्तुशास्त्र में भी उल्लेख है कि पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, ज्येष्ठा, अनुराधा, स्वाति या भरणी नक्षत्र में शनि के स्थित होने पर शनिवार को गृह-निर्माण आरंभ नहीं करना चाहिए, अन्यथा वह घर राक्षसों, भूतों और पिशाचों से ग्रस्त हो जाएगा। इस संदर्भ में संस्कृत का यह श्लोक द्रष्टव्य है : ”अजैकपादहिर्बुध्न्यषक्रमित्रानिलान्तकैः। समन्दैर्मन्दवारे स्याद् रक्षोभूतयुंतगद्यहम॥ भूतादि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान उसके स्वभाव एवं क्रिया में आए बदलाव से की जा सकती है। इन विभिन्न आसुरी शक्तियों से पीड़ित होने पर लोगों के स्वभाव एवं कार्यकलापों में आए बदलावों का संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है

भूत लगे व्यक्ति की पहिचान 

                    जब किसी व्यक्ति को भूत लग जाता है तो वह बहुत ही ज्ञान वाली बातें करता है,उस व्यक्ति के अन्दर इतनी शक्ति आजाती है कि दस दस आदमी अगर उसे संभालने की कोशिश करते है तो भी नही संभाल पाते हैं। भूत से पीड़ित व्यक्ति किसी विक्षिप्त की तरह बात करता है। मूर्ख होने पर भी उसकी बातों से लगता है कि वह कोई ज्ञानी पुरुष हो। उसमें गजब की शक्ति आ जाती है। क्रुद्ध होने पर वह कई व्यक्तियों को एक साथ पछाड़ सकता है। उसकी आंखें लाल हो जाती हैं और देह में कंपन होता है।

प्रेत लगे की पहचान

प्रेत से पीड़ित व्यक्ति चीखता-चिल्लाता है, रोता है और इधर-उधर भागता रहता है। वह किसी का कहा नहीं सुनता। उसकी वाणी कटु हो जाती है। वह खाता-पीता नही हैं और तीव्र स्वर के साथ सांसें लेता है।

देवता लगे व्यक्ति की पहिचान

जब लोगों के अन्दर देवता लग जाते है तो वह व्यक्ति सदा पवित्र रहने की कोशिश करता है,उसे किसी से छू तक जाने में दिक्कत हो जाती है वह बार बार नहाता है,पूजा करता है आरती भजन में मन लगाता रहता है,भोजन भी कम हो जाता है नींद भी नही आती है,खुशी होता है तो लोगों को वरदान देने लगता है गुस्सा होता है तो चुपचाप हो जाता है,धूपबत्ती आदि जलाकर रखना और दीपक आदि जलाकर रखना उसकी आदत होती है,संस्कृत का उच्चारण बहुत अच्छी तरह से करता है चाहे उसने कभी संस्कृत पढी भी नही होती है।

देवशत्रु लगना 

देव शत्रु लगने पर व्यक्ति को पसीना बहुत आता है,वह देवताओं की पूजा पाठ में विरोध करता है,किसी भी धर्म की आलोचना करना और अपने द्वारा किये गये काम का बखान करना उसकी आदत होती है,इस प्रकार के व्यक्ति को भूख बहुत लगती है। उसकी भूख कम नही होती है,चाहे उसे कितना ही खिला दिया जाये,देव गुरु शास्त्र धर्म परमात्मा में वह दोष ही निकाला करता है। कसाई वाले काम करने के बाद ऐसा व्यक्ति बहुत खुश होता है।

  गंधर्व लगना 

 जब व्यक्ति के अन्दर गन्धर्व लगते है तो उसके अन्दर गाने बजाने की चाहत होती है,वह हंसी मजाक वाली बातें अचानक करने लगता है,सजने संवरने में उसकी रुचिया बढ जाती है,अक्सर इस प्रकार के लोग बहुत ही मोहक हंसी हंसते है और भोजन तथा रहन सहन में खुशबू को मान्यता देने लगते है,हल्की आवाज मे बोलने लगते है बोलने से अधिक इशारे करने की आदत हो जाती है.

यक्ष लगना 

यक्ष लगने पर व्यक्ति शरीर से कमजोर होने लगता है,लाल रंग की तरफ़ अधिक ध्यान जाने लगता है,चाल में तेजी आजाती है,बात करने में हकलाने लगता है,आदि बातें देखी जाती है, यक्ष प्रभावित व्यक्ति लाल वस्त्र में रुचि लेने लगता है। उसकी आवाज धीमीहो जाती है। इसकी आंखें तांबे जैसी दिखने लगती हैं। वह ज्यादातर आंखों से इशारा करता है।

पित्र दोष

पितर दोष लगता है तो घर का बडा बूडा या जिम्मेदार व्यक्ति एक दम शांत हो जाता है |,उसका दिमाग भारी हो जाता है, |उसे किसी जडी बूटी वाले या अन्य प्रकार के नशे की लग लग जाती है, |इस प्रकार के व्यक्ति की एक पहिचान और की जाती है कि वह जब भी कोई कपडा पहिनेगा तो पहले बायां हिस्सा ही अपने शरीर में डालेगा,| अक्सर इस प्रकार के व्यक्ति के भोजन का प्रभाव बदल जाता है |वह गुड या तिल अथवा नानवेज की तरफ़ अधिक ध्यान देने लगता है। अक्सर ऐसे लोगों को खीर खाने की भी आदत हो जाती है,और खीर को बहुत ही पसंद करने लगते हैं।

नाग दोष

नाग दोष लगने पर लोग पेट के बल सोना शुरु कर देते है, |अक्सर वह किसी भी चीज को खाते समय सूंघ कर खाना शुरु भी करता है, |दूध पीने की आदत अधिक होती है, |एकान्त जगह में पडे रहना और सोने में अधिक मन लगता है, |आंख के पलक को झपकाने में देरी करता है, |सांस के अन्दर गर्मी अधिक बढ जाती है, |बार बार जीभ से होंठों को चाटने लगता है |,होंठ अधिक फ़टने लगते है।

राक्षस लगना

राक्षस लगने पर भी व्यक्ति को नानवेज खाने की अधिक इच्छा होती है, | उसे नानवेज खाने के पहले मदिरा की भी जरूरत पडती है, |अक्सर इस प्रकार के लोग जानवर का खून भी पी सकते है, | जितना अधिक किसी भी काम को रोकने की कोशिश की जाती है उतना ही अधिक वह गुस्सा होकर काम को करने की कोशिश करता है, | अगर इस प्रकार के व्यक्ति को जंजीर से भी बांध दिया जाये तो वह जंजीरों को तोडने की कोशिश भी करता है | अपने शरीर को लोहू लुहान करने में उसे जरा भी देर नही लगती है। वह निर्लज्ज हो जाता है, | उसे ध्यान नही रहता है कि वह अपने को माता बहिन या किस प्रकार की स्त्री के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिये. | अक्सर इस प्रकार के लोग अचानक बार करते है और अपने कपडे तक फ़ाडने में उनको कोई दिक्कत नही होती है, | आंखे जरा सी देर में लाल हो जाती है अथवा हमेशा आंखे लाल ही रहती है, | हूँ हूँ की आवाज निकालती रहती है।

पिशाच लगना

पिशाच लगने के समय भी व्यक्ति नंगा हो जाता है | अपने मल को लोगों पर फ़ेंकना चालू कर देता है, | उसे मल को खाते तक देखा गया है, | वह अधिकतर एकान्त मे रहना पसंद करता है, | शरीर से बहुत ही बुरी दुर्गंध आने लगती है, | स्वभाव में काफ़ी चंचलता आजाती है, | एकान्त में घूमने में उसे अच्छा लगता है, | अक्सर इस प्रकार के लोग घर से भाग जाते है और बियावान स्थानों में पडे रहते है, | वे लोग अपने साथ पता नही कितने कपडे लाद कर चलते है | ,सोने का रहने का स्थान कोई पता नही होता है। इस प्रकार के व्यक्ति को भी भूख बहुत लगती है, | खाने से कभी मना नही करता है।

सती लगना

सती लगने वाला व्यक्ति अक्सर स्त्री जातक ही होता है, | उसे श्रंगार करने में बहुत आनन्द आता है | ,मेंहदी लगाना,पैरों को सजाना,आदि काम उसे बहुत भाते है, | सती लगने के समय अगर पेट में गर्भ होता है तो गिर जाता है,और सन्तान उत्पत्ति में हमेशा बाधा आती रहती है, | आग और आग वाले कारणों से उसे डर नही लगता है, | अक्सर इस प्रकार की महिलायें जल कर मर जाती है।

कामण लगना

कामण लगने पर उस स्त्री का कंधा माथा और सिर भारी हो जाता है, | मन भी स्थिर नही रहता है, | शरीर दुर्बल हो जाता है, | गाल धंस जाते है, | स्तन और नितम्ब भी बिलकुल समाप्त से हो जाते है, | नाक हाथ तथा आंखों में हमेशा जलन हुआ करती है।

शाकिनी लगना

डाकिनी या शाकिनी लगने पर उस स्त्री के पूरे शरीर में दर्द रहता है, | आंखो में भारी दर्द रहता है, | कभी कभी बेहोसी के दौरे भी पडने लगते है, | खडे होने पर शरीर कंपने लगता है, | रोना और चिल्लाना अधिकतर सुना जा सकता है, | भोजन से बिलकुल जी हट जाता है।

क्षेत्रपाल दोष

क्षेत्रपाल दोष लगने पर व्यक्ति को राख का तिलक लगाने की आदत हो जाती है, | उसे बेकार से स्वपन आने लगते है, | पेट में दर्द होता रहता है, | जोडों के दर्द की दवाइयां चलती रहती है लेकिन वह ठीक नही होता है।

ब्रह्म राक्षस लगना

ब्रह्मराक्षस का प्रभाव भी व्यक्ति को अथाह पीडा देता है,| जो लोग पवित्र कार्य को करते है उनके बारे में गलत बोला करता है, | अपने को बहुत ऊंचा समझता है, | उसे टोने टोटके करने बहुत अच्छे लगते है, | अक्सर इस प्रकार के लोग अपनी संतान के भी भले नही होते है, | रोजाना मरने की कहते है लेकिन कई उपाय करने के बावजूद भी नही मरते है, | डाक्टरों की कोई दवाई उनके लिये बेकार ही साबित होती है।

चुड़ैल लगना

चुडैल अधिकतर स्त्री जातकों को ही लगती है, | नानवेज खाने की आदत लग जाती है, | अधिक से अधिक सम्भोग करने की आदत पड जाती है | ,गर्भ को टिकने नही देती है, | उसे दवाइयों या बेकार के कार्यों से गिरा देती है।चुडैल प्रभावित व्यक्ति की देह पुष्ट हो जाती है। वह हमेशा मुस्कराता रहता है और मांस खाना चाहता है।

कच्चे कलवे

कच्चे कलवे भी व्यक्तियों को परेशान करते हैं |,अक्सर भूत प्रेत पिशाच योनि में जाने वाली आत्मायें अपना परिवार बसाने के लिये किसी जिन्दा व्यक्ति की स्त्री और और पुरुष देह को चुनती है,फ़िर उन देहों में जाकर सम्भोगात्मक तरीके से नये जीव की उत्पत्ति करती है,उस व्यक्ति से जो सन्तान पैदा होती है उसे किसी न किसी प्रकार के रोग या कारण को पैदा करने के बाद खत्म कर देती है और अपने पास आत्मा के रूप में ले जाकर पालती है,जो बच्चे अकाल मौत मरते है और उनकी मौत अचानक या बिना किसी कारण के होती है अक्सर वे ही कच्चे कलवे कहलाते है। उपरोक्त अधिकतर पीडाएं खुद व्यक्ति अथवा सामान्य परिवारों द्वारा नहीं हटाई जा सकती ,यहाँ तक की सामान्य पूजा पाठ का भी प्रभाव नहीं होता |इस हेतु तांत्रिक से संपर्क ही बेहतर होता है ,कुछ मामलों में तो अच्छा तांत्रिक भी मुश्किल से सफल हो पाता है |आपसी शक्ति संतुलन पर सबकुछ निर्भर करता है |इसलिए बहार हो जब भी कुंडली में कोई ऐसी संभावना दिखे सुरक्षा का पहले से उअपाय किये रहें ,कवच आदि व्यक्ति को धारण कराये रखें जिससे वह प्रभावित ही न हो पाए ,अन्यथा प्रभावित होने पर निदान कठिन ,श्रमसाध्य और खर्चीला हो जाता है |कभी कभी तो जान भी चली जाती है अथवा स्थायी शारीरिक मानसिक क्षति हो जाती है जो कभी ठीक नहीं होगा

 

                       भूत -प्रेतों के निवास स्थान

भूत-प्रेतों का निवास नीचे दिए गए कुछ वृक्षों एवं स्थानों पर माना गया है। इन वृक्षों के नीचे एवं स्थानों पर किसी प्रकार की तेज खुशबू का प्रयोग एवं गंदगी नहीं करनी चाहिए, नहीं तो भूत-प्रेत का असर हो जाने की संभावना रहती है।यद्यपि भूत प्रेत कहीं भी आ जा सकते हैं किन्तु अक्सर वहां रहना पसंद करते हैं जहाँ का वातावरण सीलन युक्त ,अन्धकार पूर्ण ,नकारात्मक उर्जा संपन्न ,बीरान ,निर्जन हो |कुछ वृक्ष ,स्थान इन्हें विशेष प्रिय होते हैं ,अतः यहाँ विशेष सावधानी की जरुरत होती है |

पीपल वृक्ष:

शास्त्रों में इस वृक्ष पर देवताओं एवं भूत-प्रेतों, दोनों का निवास माना गया है। अतः कभी भी पीपल के पेड़ नहीं काटने चाहिए। इसी कारण हर प्रकार के कष्ट एवं दुख को दूर करने हेतु इसकी पूजा अर्चना करने का विधान है।अक्सर ब्रह्म राक्षस आदि उच्च शक्तिशाली आत्माए पीपल पर निवास करती हैं ,,पितरों को भी पीपल अति प्रिय होता है |

मौलसिरी:-

इस वृक्ष पर भी भूत-प्रेतों का निवास माना गया है।

कीकर वृक्ष:-

इस वृक्ष पर भी भूत-प्रेत रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास ने इस वृक्ष में रोज पानी डालकर इस वृक्ष पर रहने वाले प्रेत को प्रसन्न कर उसकी मदद से हनुमान जी के दर्शन प्राप्त कर प्रभु श्री राम से मिलने का सूत्र पाया था। यह भूत प्राणियों को लाभ पहुंचाने वाली श्रेणी का था। तन्त्र में कीकर से भूत सिद्धि के प्रयोग भी हैं |

श्मशान या कब्रिस्तान:-

इन स्थानों पर भी भूत-प्रेत निवास करते है।श्मशान -कब्रिस्तान भूतों प्रेतों के सबसे प्रिय स्थान होते हैं |यहाँ उनका भौतिक शरीर नष्ट होता है ,अतः इस स्थान के आसपास वे अधिकतर विचरण करते हैं ,एक कारण और होता है ,उनके अंग जिस स्थान पर होते हैं वहां उनका आना जाना होता है |कब्रिस्तानों में तो पूरा शरीर ही होता है जिसकी हड्डियाँ बहुत सालों तक नष्ट नहीं होती |अगर भूत-प्रेत की मुक्ति न हो पाए तो अक्सर वह अपने शरीर अंग के पास आता है |शरीर जलने पर भी कुछ हिस्से अक्सर बचते हैं जो इन्हें आकृष्ट करते हैं और जोड़े रखते हैं |श्मशान कब्रिस्तान में इनको साथ और सहयोग भी मिलता है |उच्च शक्तियाँ यहाँ शासन करती हैं |

मृत्यु स्थान

-जहाँ व्यक्ति की आकस्मिक मृयु हुई होती है ,अकसर वह वहां भी रहने का प्रयास करता है ,क्योकि उसे अपने स्थान से लगाव होता है |पुराने मकानों ,घरों में आकस्मिक मरने वाले अथवा दुर्घटना के शिकार परिजन घर के आसपास अथवा घर में रहने का प्रयत्न करते हैं |जले हुए अथवा कष्ट दायक मृत्यु को प्राप्त लोग अक्सर उसी स्थान के इर्द गिर्द घुमते हैं |सड़कों पर दुर्घटना ग्रस्त व्यक्तियों की आत्माएं उस स्थान के आसपास चक्रमण करती हैं ,कभी कभी ये बदला भी लेती हैं और दुर्घटनाएं करवाकर |कभी कभी कोई कोई पूजा लेता है ,न देने वालों के दुर्घटना भी होते हैं ,अकसर सडक किनारे ऐसे मंदिर मिलते हैं | वीरान खँडहर

वीरान खंडहरों में प्रेतात्माओं को शान्ति मिलती है ,अंधेरों अथवा सीलन भरी स्थानों पर इन्हें सुकून मिलता है ,अतः यह निर्जन खंडहरों के आसपास रहते हैं |इन स्थानों के बारे में विदेशों तक में भूतों प्रेतों के प्रमाण पाए जाते हैं |

नदी किनारा -

कुछ आत्माए शांत नदी किनारों पर भी चक्रमण करती पायी जाती हैं |अक्सर यह शुद्ध आत्माएं होती हैं ,किन्तु इनमे किसी भी प्रकार की तामसिक आत्मा भी हो सकती है |शुद्ध आत्माएं कोलाहल और विपरीत सथियों से बचने के लिए ,शान्ति के लिए यहाँ रहती हैं |जल में डूबने वाले अक्सर नदी में और किनारों पर ही निवास करते हैं |

तालाब -नाले -

तालाबों में मरने वाले अथवा डूबकर मृत्यु को प्राप्त अधिकतर आत्माएं उस स्थान के आसपास घूमती हैं |नालों अथवा खोहों के आसपास भी इनका चक्रमण होता है |अक्सर यह यहाँ लोगों को प्रभावित करते पाए जाते हैं |

बांस की झुरमुट

चुड़ैल आदि अधिकतर बांसों की झुरमुटों अथवा वृक्षों के आसपास या बगीचों आदि में रहने का प्रयास करती हैं | जंगल -आत्माए जंगलों का चुनाव शांति के उद्देश्य से करती हैं जिससे इन्हें कोई परेशानी अथवा ध्वनि आदि न हो | यद्यपि भूतो -प्रेतों के लिए स्थान का बंधन नहीं होता किन्तु यह अपने लिए अनुकूल स्थानों के रूप में उपरोक्त का अधिकतर चुनाव करते हैं ,वैसे आ जा कहीं भी सकते हैं |शक्तिशाली आत्माएं तो मंदिरों तक में प्रवेश कर जाती हैं |उच्च शक्तियाँ जो खुद साधक अथवा पुजारी रही हों किन्तु किसी कारणवश दुर्घटनाग्रस्त हो मृत्यु को प्राप्त हुए हों अक्सर मंदिरों -मस्जिदों में भी प्रवेश करते हैं ,पीरों ,दरगाहों में तो इनका आना जाना आम होता है |अगर ये किसी से रुष्ट हों तो उसके साथ मंदिरों-मस्जिदों ,दरगाहों में भी प्रवेश कर अपनी शक्ति का अहसास कराते हैं |