महाकालेश्वर की दो अत्युत्कृष्ट साधनायें

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महाकालेश्वर की दो अत्युत्कृष्ट साधनायें
महाकालेश्वर की दो अत्युत्कृष्ट साधनायें

महाकालेश्वर की दो अत्युत्कृष्ट साधनायें
श्री खड्गरावण महातन्त्र समस्त तन्त्र शक्ति के नाश
के लिए मारण प्रयोगों को नष्ट करने के लिए कृत्याद्रोह नाम के तन्त्र
उन्मूलन के लिए इस प्रयोग को किया जाता है I इससे तन्त्र के छ:
प्रकार के अभिचार कर्मों का नाश होकर
रक्षा की प्राप्ति होती है I
मन्त्र :
ॐ नमो भगवते पशुपतये ॐ नमो भूताधिपतये
ॐ नमो खड्गरावण लं लं विहर विहर सर सर नृत्य नृत्य
व्यसनं भस्मार्चित शरीराय घण्टा कपाल- मालाधराय
व्याघ्रचर्मपरिधानाय शशांककृतशेखराय कृष्णसर्प
यज्ञोपवीतिने चल चल बल बल अतिवर्तिकपालिने
जहि जहि भुतान् नाशय नाशय मण्डलाय फट् फट् रुद्राद्कुशें शमय
शमय प्रवेशय प्रवेशय आवेणय आवेणय
रक्षांसि धराधिपति रुद्रो ज्ञापयति स्वाहा I
शत्रुओं के प्रयोगों के द्वारा जो लम्बे समय से तरह- तरह के कष्ट
झेलते आ रहे हैं और किसी प्रकार
भी इससे मुक्ति नहीं मिल
पा रही हो तो इस प्रयोग को अवश्य सम्पन्न करें I
त्रिलोक विजयी रावण इसी मन्त्र के बल पर
ही महारूद्र को प्रसन्न करके उस युग के तन्त्र-
मन्त्र वेत्ता, ऋषि- मुनियों का भी सम्राट बना I
श्री शरभमहातन्त्रराज
समस्त तंत्रों में सर्वाधिक घातक तन्त्र शरभ तन्त्र कहलाता है I
जब हिरण्यकश्यप का वध करने के उपरान्त भी भगवान
नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ और
तीनों लोकों को खाने को उद्यत हुए तब समस्त देवों के
द्वारा प्रार्थना किये जाने पर भगवान शिव नें एक विचित्र
पक्षी का रूप धारण किया जिसका मुह उल्लू
की तरह, नेत्र में अग्नि, सूर्य एवं चन्द्र का वास था I
दो पंखों में जिनके दुर्गा और काली का वास था I कमर के
बाद का हिस्सा हिरण की तरह एवं पूंछ शेर
की तरह थी I जिनके पेट में व्याधि एवं
मृत्यु का वास था ऐसे शरभ रूप पक्षी राज नें नृसिंह
भगवान को चोंच मारकर मूर्छित कर दिया I अपने हाथों से
उनको पकड़कर आकाश की तरफ उड़ चले I
इनको शास्त्रों में आकाश भैरव भी कहा गया है I इस
गारुडी विद्या को गुप्त रखना चाहिए I
इस साधना की विशेष विधियां आकाश भैरव कल्प,
शरभार्चापारिजात, आशुगरुड़ इत्यादि तन्त्र ग्रंथों में
दी गयी हैं I कृष्णपक्ष
की अष्टमी से लेकर
चतुर्दशी तक इसकी साधना श्रेष्ठ
मानी गयी है I
विनियोग :
ॐ अस्य मन्त्रस्य श्रीवासुदेव ऋषि:
जगतीछन्द:, कालाग्निरूद्र शरभ देवता, खं
बीजं, स्वाहा शक्ति:, मम सर्वशत्रु क्षयार्थे सर्वोपद्रव
शमनार्थे जपे विनियोग: I
II ध्यानम् II
विद्युज्जिह्वं वज्र नखं वडवाग्न्युदरं तथा
व्याधिमृत्युरिपुघ्नं चण्डवाताति वेगिनम् I
हृद् भैरव स्वरूपं च वैरिवृन्द निषूदनं
मृगेन्द्रत्वक्- छरीरेSस्य पक्षाभ्यां चञ्चुनारव: I
अघोवक्त्रश्चतुष्पाद उर्ध्व दृष्टिश्चतुर्भुज:
कालान्त- दहन- प्रख्यो नीलजीमूत-
नि:स्वन: I
अरिर्यद् दर्शनादेव विनष्टबलविक्रम:
सटाक्षिप्त गृहर्क्षाय पक्षविक्षिप्त- भूभृते I
अष्टपादाय रुद्राय नमः शरभमूर्तये II
मन्त्र :
ॐ खें खां खं फट् प्राणग्रहासि प्राणग्रहासि हुं फट्
सर्वशत्रु संहारणाय शरभशालुवाय पक्षिराजाय हुं फट् स्वाहा I
इस मन्त्र को छ: महीने तक प्रतिदिन दस मालाओं
का जाप करके एक माला के द्वारा अर्थात 108 आहुतियों से
नित्यप्रति हवन करें, इससे इस मन्त्र का एक पुरश्चरण
हो जाता है और इस प्रकार के 18 पुरश्चरण करने पर मन्त्र
सिद्ध होने लगता है I
इस शरभ तन्त्र के अनेक मन्त्र हैं, अनेक प्रयोग हैं I संसार में
रोग निवारण से लेकर शत्रु को नष्ट करने तक, समृद्धिवान बनने तक
सभी कार्य इसके द्वारा संभव हैं I वास्तव में यह
स्वयं में महातंत्र है I
जैसे शत्रु नाश के लिए शत्रु के
पैरों की मिट्टी से पुतला बनाकर,
प्राणप्रतिष्ठा करके आँक या धतूरे की जड़ में दबा करके
उसके सामने बैठकर यदि इस मन्त्र का 125000 जाप किया जाए
तो उस पुतले के साथ जो किया जाए शत्रु को वैसे
ही पीड़ा प्राप्त होती है I
यदि उस पुतले को शमशान के अंगारे से तपा दिया जाएं तो शत्रु
को कभी न ठीक होने वाला बुखार
हो जाता है और यदि पिघले हुए लाख से उसको लपेटकर यदि उसे
आँक की लकड़ियों में जला दिया जाए तो तीन
दिन में शत्रु नष्ट हो जाता है I
आकर्षण के लिए क्लीं बीज से संपुटित
करके इस मन्त्र का जाप करना चाहिए I
शत्रुओं के मध्य झगडे कराने के लिए मन्त्र के दोनों तरफ रूद्र
बीज "क्षौं" या "हौं" लगा करके जाप करना चाहिए I
शत्रुओं के उच्चाटन के लिए मन्त्र के दोनों तरफ वायु
बीज "यं" या "हं" लगा करके जाप करना चाहिए I
मोक्ष प्राप्ति के लिए "ऐं" बीज व
"चिंतामणि बीजमन्त्र" से पुटित करके जाप करें I