स्वास्थ्य बाधा

जन्म कुण्डली हमारे जन्म समय का नक्शा है,जन्म के समय किस राशि में कौन सा ग्रह कितने अंश में है, इसमें अंकित किया जाता है,हम ज्योतिष शास्त्र के द्वारा किसी भी व्यक्ति के जीवन में घटने वाली किसी भी घटना,समय,घटनास्थल की जानकारी पहले से कर सकते हैं,ज्योतिष के अनुसार अशुभ प्रभाव को रत्न उपचार,जाप एवं अनुष्ठान के द्वारा कम किया जा सकता है।

जन्मकुंडली के बारह भावों, बारह राशियों और नवग्रहों में से प्रत्येक, शरीर के किसी न किसी अंग, किसी न किसी शारीरिक क्रिया का प्रतिनिधि, कारक और संकेतक होता है।स्वास्थ्य संबंधी किसी भी सही परिणाम पर पहुचने के लिए इन सभी का अध्ययन किया जाता है।यदि कोई राशि, कोई ग्रह या कोई भाव बुरी तरह से दुष्प्रभावित हो तो ऐसे जातक के शरीर में किसी न किसी अंग या शारीरिक क्रिया में विकार होगा।स्वाश्थ्य और शरीर के विषय में सर्वप्रथम स्थान लग्न का है।कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों से स्वास्थ्य के विषय में संकेत प्राप्त किए जा सकते है:- 1. लग्न, लग्नेश, लग्न में स्थित ग्रह, लग्न पर ग्रहो का दृष्टि प्रभाव, लग्नेश की कुंडली में स्थिति और लग्नेश पर अन्य ग्रहो का दृष्टि आदि के द्वारा शुभ-अशुभ प्रभाव। 2.सूर्य(शरीर), चंद्र(मन) और बुध(मस्तिष्क)की कुंडली में शुभ-अशुभ स्थिति। 3. छठा भाव और छठे भाव का स्वामी ग्रह, छठे भाव में स्थित ग्रह,छठे भाव के स्वामी ग्रह की कुंडली में स्थिति और इन सब पर दृष्टि या युति द्वारा अन्य ग्रहों का शुभ-अशुभ प्रभाव। 4. महादशा-अन्तर्दशा और प्रत्यंतर दशाएं की शुभ-अशुभ स्थिति। 5. गोचर में ग्रहो की स्थिति। कुंडली में लग्न मुख्य रूप से चहरे और सिर का प्रतिनिधि भाव है लेकिन सामान्य रूप से इसे शारीरक स्वास्थ्य के विषय में जानकारी देने वाला माना जाता है।लग्न, लग्नेश और लग्न का कारक सूर्य जातक की शारीरिक शक्ति के विषय में बताता है।इसीलिए इसे शरीर की विभिन्न क्रियाओ का संचालक कहा जाता है। यदि लग्न, लग्नेश व लग्न का कारक सूर्य मजबूत है और उस पर कोई दुष्प्रभाव नही है तो जातक का शरीर स्वस्थ होता है और वह बिना किसी बड़ी कठिनाई के दिन-प्रतिदिन का होने वाला तनाव भी सहन कर लेता है।मौसमी बीमारियो जैसे सर्दी-जुकाम, खांसी, वायरल बुखार, त्वचा के रोग आदि का भी जातक पर अधिक प्रभाव नही पड़ता। इसके विपरीत यदि शनि, राहु केतु लग्न को युति या दृष्टि से या लग्न में स्थित होकर लग्न को दुष्प्रभावित करते हो और लग्नेश 6, 8, 12 भाव में हो तथा सूर्य भी कमजोर या पाप ग्रहो से दुष्प्रभावित हो तो ऐसी कुंडली वाले जातक का सामान्य रूप से स्वास्थ्य ठीक नही रहता और जातक अक्सर मौसमी बीमारियो से पीड़ित हो जाता है। यदि कुंडली में लग्न लग्नेश पाप ग्रहो से पीड़ित हो या दुष्प्रभाव में हो तो पीड़ित करने वाले ग्रहो की शांति मंत्र जप, पीड़ित करने वाले ग्रहो से सम्बंधित वस्तुओ के दान और लग्नेश ग्रह के रत्न, धातु को धारण करके लग्न को बल देना चाहिए।