मूल एवं शांति के उपाय

शास्त्रों की मान्यता है कि संधि क्षेत्र हमेशानाजुक और अशुभ होते हैं। जैसे मार्ग संधि (चौराहे-
तिराहे), दिन-रात का संधि काल, ऋतु, लग्न औरग्रह के संधि स्थल आदि को शुभ नहीं मानते हैं। इसीप्रकार गंड-मूल नक्षत्र भी संधि क्षेत्र में आने सेनाजुक और दुष्परिणाम देने वाले होते हैं। शास्त्रों केअनुसार इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले बच्चों केसुखमय भविष्य के लिए इन नक्षत्रों की शांतिजरूरी है। मूल शांति कराने से इनके कारण लगने वाले दोष शांत हो जाते हैं।

क्या हैं गंड मूल नक्षत्र

राशि चक्र में ऎसी तीन स्थितियां होती हैं, जबराशि और नक्षत्र दोनों एक साथ समाप्त होते हैं।
यह स्थिति “गंड नक्षत्र” कहलाती है। इन्हींसमाप्ति स्थल से नई राशि और नक्षत्र की शुरूआत
होती है। लिहाजा इन्हें “मूलनक्षत्र” कहते हैं।

इसतरह तीन नक्षत्र गंड और तीन नक्षत्र मूल कहलाते हैं।
गंड और मूल नक्षत्रों को इस प्रकार देखा जा सकताहै।

कर्क राशि व अश्लेषा नक्षत्र एक साथ समाप्त होतेहैं।
यहीं से मघा नक्षत्र और सिंह राशि का उद्गमहोता है।
लिहाजा अश्लेषा गंड और मघा मूलनक्षत्र है।

वृश्चिक राशि व ज्येष्ठा नक्षत्र एक साथ समाप्तहोते हैं, यहीं से मूल नक्षत्र और धनु राशि की शुरूआतहोने के कारण ज्येष्ठा “गंड” और “मूल” मूल कानक्षत्र होगा।
मीन राशि और रेवती नक्षत्र एक साथ समाप्तहोकर यहीं से मेष राशि व अश्विनी नक्षत्र की
शुरूआत होने से रेवती गंड तथा अश्विनी मूल नक्षत्रकहलाते हैं।

उक्त तीन गंड नक्षत्र अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवतीका स्वामी ग्रह बुध है
तथा तीन मूल नक्षत्र मघा,
मूल व अश्विनी का स्वामी ग्रह केतु है।
27 या 10वेंदिन जब गंड-मूल नक्षत्र दोबारा आए उस दिन
संबंधित नक्षत्र और नक्षत्र स्वामी के मंत्र जप, पूजाव शांति करा लेनी चाहिए। इनमें से जिस नक्षत्र मेंशिशु का जन्म हुआ उस नक्षत्र के निर्धारित संख्यामें जप-हवन करवाने चाहिए।
गंड मूल नक्षत्रों में जन्म का फल
मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में उत्पन्न होने वाले शिशु(पुल्लिंग) के पिता को कष्ट, द्वितीय चरण मेंमाता को कष्ट और तृतीय चरण में धन ऎश्वर्य हानिहोती है। चतुर्थ चरण में जन्म हो तो शुभ होता है।

जन्म लेने वाला शिशु (स्त्रीलिंग) हो तो प्रथम चरणमे श्वसुर को, द्वितीय में सास को और तीसरे चरण मेंदोनों कुल के लिए नेष्ट होती है।चतुर्थ चरण में जन्म हो तो शुभ होता है।
अश्लेषाके प्रथम चरण में जन्मे जातक के लिए शुभ, द्वितीय
चरण में धन ऎश्वर्य हानि और तृतीय चरण में माताको कष्ट होता है।
चतुर्थ चरण में जन्म हो तो पिता
को कष्ट होता है। जन्म लेने वाला शिशु स्त्रीलिंगहो तो प्रथम चरण में सुख समृद्धि और अन्य चरणों मेंसास को कष्ट कारक होती है।

मघा के प्रथम चरणमें जन्मे जातक/जातिका की माता को कष्ट,
द्वितीय चरण में पिता को कष्टकारक, तृतीय चरण
में सुख समृद्धि और चतुर्थ चरण में जन्म हो तो धन
लाभ।
ज्येष्ठा के प्रथम चरण में बडे भाई को नेष्ट, द्वितीय
चरण में छोटे भाई को कष्ट, तीसरे में माता को
तथा चतुर्थ चरण में जन्म होने पर स्वयं के लिए
कष्टकारक होता है। स्त्री जातक का जन्म हो तो
प्रथम चरण में जेठ को, द्वितीय में छोटी बहिन/देवर
को तथा तृतीय में सास/माता के लिए कष्ट। चतुर्थ
चरण में जन्म हो तो देवर के लिए श्रेष्ठ। रेवती के
प्रथम तीन चरणों में स्त्री/पुरूष जातक का जन्म हो
तो अत्यन्त शुभ, राज कार्य से लाभ तथा धन ऎश्वर्य
में वृद्धि होती है। लेकिन चतुर्थ चरण में जन्म हो तो
स्वयं के लिए कष्टकारक होता है। अश्विनी के
प्रथम चरण में पिता को कष्ट शेष तीन चरणों में धन-
ऎश्वर्य वृद्धि, राज से लाभ तथा मान सम्मान
मिलता है।

गंड मूल नक्षत्र के शांति उपाय

मूल शांति की सामग्री
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घडा एक,करवा एक,सरवा एक,पांच प्रकार के
रंग,नारियल एक,५०सुपारी,दूब,कुशा,बतासे,इन्द्र
जौ,भोजपत्र,धूप,कपूर आटा चावल २ गमछे, दो गज
लाल कपडा चंदोवे के लिये, मेवा ५० ग्राम, पेडा ५०
ग्राम, बूरा ५० ग्राम,केला चार,माला दो,२७ खेडों
की लकडी, २७ वृक्षों के अलग अलग पत्ते,२७ कुंओ का
पानी,गंगाजल यमुना जल,हरनन्द का जल,समुद्र का
जल अथवा समुद्र फ़ेन,आम के पत्ते,पांच रत्न,पंच गव्य
वन्दनवार,हल,२ बांस की टोकरी,१०१ छेद वाला
कच्चा घडा,१ घंटी २ टोकरी छायादान के लिये,१
मूल की मूर्ति स्वनिर्मित,बैल गाय २७ सेर सतनजा,७
प्रकार की मिट्टी, हाथी के नीचे की घोडे के नीचे
की गाय के नीचे की तालाब की सांप की बांबी
की नदी की और राजद्वार की वेदी के लिये पीली
मिट्टी।

हवन सामग्री
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चावल एक भाग,घी दो भाग बूरा दो भाग, जौ तीन
भाग, तिल चार भाग,इसके अतिरिक्त मेवा अष्टगंध
इन्द्र जौ,भोजपत्र मधु कपूर आदि। एक लाख मंत्र के
एक सेर हवन सामग्री की जरूरत होती है,यदि कम
मात्रा में जपना हो तो कम मात्रा में प्रयोग करना
चाहिये।

शांति मंत्र

अश्विनी नक्षत्र (स्वामित्व अश्विनी कुमार):

“ॐ
अश्विनातेजसाचक्षु: प्राणेन सरस्वतीवीर्यम।
वाचेन्द्रोबलेनेंद्राय दधुरिन्द्रियम्। ॐ अश्विनी
कुमाराभ्यां नम:।।” (जप संख्या 5,000)।

अश्लेषा (स्वामित्व सर्प):

“ॐ नमोस्तु सप्र्पेभ्यो ये के
च पृथिवी मनु: ये अन्तरिक्षे ये दिवितेभ्य:
सप्र्पेभ्यो नम:।। ॐ सप्र्पेभ्यो नम:।।’ (जप संख्या
10,000)

मघा (स्वामित्व पितर):

“ॐ पितृभ्य: स्वधायिभ्य:
स्वधानम: पितामहेभ्य स्वधायिभ्य: स्वधा नम:।
प्रपितामहेभ्य स्वधायिभ्य: स्वधा नम:
अक्षन्नापित्रोमीमदन्त पितरोùतीतृपन्तपितर:
पितर: शुन्धध्वम्।। ॐ पितृभ्यो नम:/पितराय नम:।।”
(जप संख्या 10,000)

ज्येष्ठा (इन्द्र):

“ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र
हवे हवे सुह्न शूरमिन्द्रम् ह्वयामि शक्रं पुरूहूंतमिन्द्र
स्वस्तिनो मधवा धात्विंद्र:।। ॐ शक्राय नम:।।”
(जप संख्या 5,000)

मूल (राक्षस):

“ॐ मातेव पुत्र पृथिवी पुरीष्यमणि
स्वेयोनावभारूषा। तां विश्वेदेवर्ऋतुभि: संवदान:
प्रजापतिविश्वकर्मा विमुच्चतु।। ॐ निर्ऋतये नम:।।”
(जप संख्या 5,000)

रेवती (पूषा):

“ॐ पूषन् तवव्रते वयं नरिष्येम कदाचन
स्तोतारस्त इहस्मसि।। ॐ पूष्णे नम:।” (जप संख्या 5,000)

गंड नक्षत्र स्वामी बुध के मंत्र-:

“ॐ उदबुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्ठापूर्ते
संसृजेथामयं च अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्
विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत।।” ( नौ हजार जप
कराएं। दशमांश संख्या में हवन कराएं। हवन में
अपामार्ग (ओंगा) और पीपल की समिधा काम में
लें।)

मूल नक्षत्र स्वामी केतु के मंत्र

“ॐ केतुं कृण्वन्न केतवे पेशो मय्र्याअपेशसे
समुषाभ्दिजायथा:।।” (सत्रह हजार जप कराएं और
इसके दशमांश मंत्रों के साथ दूब और पीपल की
समिधा काम में ले)

मूल शांति के उपाय- ज्येष्ठा के अन्तिम दो चरण तथा मूल के प्रथम दो चरण अभुक्त मूल कहलाते हैं। इन नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक के लिये नीचे लिखे मंत्रों का २८००० जप करवाने चाहिये,और २८वें दिन जब वही नक्षत्र आये तो मूल शान्ति का प्रयोजन करना चाहिये,जिस मन्त्र का जाप किया जावे उसका दशांश हवन करवाना चाहिये,और २८ ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिये,बिना मूल शांति करवाये मूल नक्षत्रों का प्रभाव दूर नही होता है। मंत्र- मूल नक्षत्र का बडा मंत्र यह है। ऊँ मातवे पुत्र पृथ्वी पुरीत्यमग्नि पूवेतो नावं मासवातां विश्वे र्देवेर ऋतुभिरू सं विद्वान प्रजापति विश्वकर्मा विमन्चतु॥ इसके बाद छोटा मंत्र इस प्रकार से है। ऊँ एष ते निऋते। भागस्तं जुषुस्व। ज्येष्ठा नक्षत्र का मंत्र इस प्रकार से है। ऊँ सं इषहस्तरू सनिषांगिर्भिर्क्वशीस सृष्टा सयुयऽइन्द्रोगणेन। सं सृष्टजित्सोमया शुद्धर्युध धन्वाप्रतिहिताभिरस्ता।आश्लेषा मंत्र- ऊँ नमोऽर्स्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनु। ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यरू सर्पेभ्यो नमरू॥ मूल शांति की सामग्री- घड़ा एक,करवा चार,सरवा एक,पांच रंग,नारियल एक,11 सुपारी,पान के पत्ते 11,दूर्वा,कुशा,बतासे 500 ग्राम ,इन्द्र जौ, भोजपत्र, धूप, कपूर, आटा चावल,  गमछे 2, दो मी लाल कपड़ा , मेवा 250 ग्राम, पेड़ा 250 ग्राम, बूरा 250 ग्राम,माला दो, 27 खेडों की लकडी, 27 वृक्षों के अलग अलग पत्ते,27 कुंओ का पानी,गंगाजल, समुद्र फेन,आम के पत्ते,पंच रत्न,पंच गव्य वन्दनवार,बांस की टोकरी,101 छेद वाला कच्चा घडा,1घंटी 2 टोकरी छायादान के लिये,1 मूल की मूर्ति स्वनिर्मित, 27 किलो सतनजा, सप्तमृतिका, 3 सुवर्ण प्रतिमा, गोले 5, ब्राहमणों हेतु वस्त्र, पीला कपड़ा सवा मी, सफेद कपड़ा सवा मी, फल फूल मिठाई आदि  । हवन सामग्री- चावल एक भाग,घी दो भाग बूरा दो भाग, जौ तीन भाग, तिल चार भाग,इसके अतिरिक्त मेवा अष्टगंध इन्द्र जौ,भोजपत्र मधु कपूर आदि। जितने जप किए जाँए उतनी मात्रा में हवन सामग्री बनानी चाहिए। पूजन जितना अच्छा होगा उसका प्रभाव भी उतना ही अच्छा होगा।पूजा सामग्री यथाशक्ति लानी चाहिए।