भाग्य बाधा

जन्म कुण्डली हमारे जन्म समय का नक्शा है,जन्म के समय किस राशि में कौन सा ग्रह कितने अंश में है, इसमें अंकित किया जाता है,हम ज्योतिष शास्त्र के द्वारा किसी भी व्यक्ति के जीवन में घटने वाली किसी भी घटना,समय की जानकारी पहले से कर सकते हैं,ज्योतिष के अनुसार अशुभ प्रभाव को रत्न उपचार,जाप एवं अनुष्ठान के द्वारा कम किया जा सकता है।

सूर्य , गुरु , लग्नेश व भाग्येश के शुभ उपाय करने से भाग्य संबंधी बाधाएं दूर हो जाती है।
1. गायत्री मंत्र का जाप करके भगवान सूर्य को जल दें।
2. प्रात: काल उठकर माता-पिता के चरण छूकर आशीर्वाद लें।
3. अपने ज्ञान, सामर्थ और पद प्रतिष्ठा का कभी भी अहंकार न करें।
4. किसी भी निर्बल व असहाय व्यक्ति की बददुआ न ले।
5. वद्धाश्रम और कमजोर वर्ग की यदाशक्ति तन, मन और धन से मदद करें।
6. सप्ताह में एक दिन मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा जाकर ईश्वर से शुभ मंगल की प्रार्थना करें। मंदिर निर्माण में
लोहा, सीमेंट, सरिया इत्यादि का दान देकर मंदिर निर्माण में मदद करें।
7. पांच सोमवार रुद्र अभिषेक का पाठ करने से भाग्य संबंधी अवरोध दूर होते है।
8. ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’। इस द्वादश अक्षर मंत्र का जाप 108 बार रोज करने से बंधा हुआ भाग्य खुलने लगता है।
कुंडली में ग्रह की अशुभ स्थति :
जैसा की हम सभी जानते है की हमारा सारा जीवन कुंडली के नवग्रह और सताईस नक्षत्रो के द्वारा ही संचालित होता है | अगर कुंडली में सारे ग्रह अच्छे और शुभ है तो फिर जीवन में कोई समस्या नहीं होती है और चारो और से खुशियों की ही वर्षा होती है | लेकिन अगर कुंडली में ग्रह अशुभ स्थति में है तो फिर जीवन में संकटो और संघर्षो का विस्तार हो जाता है किसी भी मेहनत का परिणाम फिर वही शून्य ही मिलता है |
सूर्य/ चंद्रमा का राहू/ केतु के साथ होने से ग्रहण योग बनता है - इस योग में अगर सूर्य ग्रहण योग हो तो व्यक्ति में आत्म विश्वास की कमी रहती है और वह किसी के सामने आते ही अपनी पूर्ण योग्यता का परिचय नहीं दे पाता है उल्टा उसके प्रभाव में आ जाता है | कहने का मतलब की सामने वाला व्यक्ति हमेशा ही हावी रहता है |
चन्द्र ग्रहण होने से कितना भी घर में और में सुविधा हो मगर मन में हमेशा अशांति ही बनी रहती है कोई न कोई छोटी छोटी बातो का डर भी सताता है | कोई अज्ञात भय मन में बना रहता है | संतुष्टि का हमेशा आभाव रहता है |
मंगल का राहू के साथ होने से अंगारक योग बनता है - इस योग के कारन जिस काम को दूसरा कोई आसानी से कर लेता है उसी काम को करने में अनेक प्रकार की बाधाएं अड़चन आदि बनी रहती है यानि की कोई काम सुख शांति पूर्वक सम्पन्न नहीं होता है |
गुरु की राहू/केतु के साथ युति हो तो चांडाल योग बनता है - इस योग के कारन व्यक्ति का धन से सम्बंधित कोई काम सफल नहीं होता है | कितना भी धन अच्छे समय में कमा ले लेकिन जैसे ही इन ग्रहों की महादशा- अन्तर्दशा- प्रत्यंतर दशा आएगी तो वो सब कमाया हुवा धन एक दम से ख़त्म हो जाता है और इस योग के कारन व्यक्ति को कर्ज लेने के बाद चुकाने में दिक्कत होती है और एक दिन उसको ऐसी स्थति का सामना करना पड़ता है की कही से कुछ रुपये उधार लेकर के खाना खाना पड़ता है |
शुक्र और राहू की युति से अभोत्व योग का निर्माण होता है - इस योग के कारन जातक का ध्यान पराई स्त्रियों में लगा रहता है और कई कई प्रेम सम्बन्ध बनते है लेकिन ज्यादातर का अंत बहुत बुरा लड़ाई झगडे के साथ और अपमान के साथ ख़त्म होते है | कर्कशा स्त्री जीवन में बनी रहती है |
शनि राहू की युति हो तो नंदी योग बनता है - इस योग के कारन व्यक्ति सचाई के मार्ग पर चलना चाहते हुए भी हमेशा झूठ और फरेब का शिकार होता है और कई बार जेल जाने तक की नौबत आती है | अपराध की दुनिया से सम्बन्ध बनता है और जीवन अनेक संकतो में फस जाता है |
इसके अलावा भी कुछ और अशुभ स्थातिया अगर आपकी कुंडली में है तो वो आप मिलान करे और देखे की क्या ऐसा है आपकी कुंडली में ?
सप्तम जीवनसाथी के स्थान का स्वामी ग्रह अगर छठे आठवे या बारहवे भाव मै बैठा हो या फिर सूर्य के साथ बैठकर अस्त है तो विवाह सुख का नाश करने वाला योग बन जाता है और अगर पुरुष की कुंडली में शुक्र अस्त हो या पापी ग्रह से युक्त हो तो भी ऐसा योग बनता है , अगर महिला की कुंडली में गुरु अस्त हो या गुरु के साथ कोई अशुभ या पापी ग्रह बैठा हो तो महिला का वैवाहिक जीवन अनेक समस्या से भरा या निराश या सपने जो देखे हो पति को लेकर वह सभी टूटे हुए लगते है |
आपकी कुंडली में अगर लग्नेश कमजोर अवस्था का या अशुभ स्थति में है तो आपका स्वास्थ्य कभी भी सम्पूर्ण अच्छा नहीं रहेगा | धनेश और लाभेश अगर अशुभ स्थति में हो तो धन के कारन सम्पूर्ण जीवन संघर्ष करना पड़ता है | कर्मेश यदि छठे आठवे या बारहवे भाव में हो या फिर अशुभ युति में हो तो अनेक काम बदलने के बाद भी स्थायित्व नहीं रहता है और धन प्राप्ति में बाधा होती है |
सूर्य मंगल शनि राहू और केतु ये पांच पापी ग्रह माने गए है और चन्द्र बुध गुरु और शुक्र ये चार ग्रह बहुत ही शांत और शुभ माने जाते है अगर इन चार ग्रहों के साथ कोई भी पापी ग्रह बैठा हो या ये शुभ ग्रह में से कोई अस्त हो या फिर नीच का हो या फिर कमजोर अवस्था का हो तो जीवन में शुभता की कमी रहती है योग्यता के अनुसार जीवन यापन नहीं होता है |
कुंडली में अनेक प्रकार के अशुभ योग इन अशुभ युतियो के कारन बन जाते है वो भी जीवन में संकट उत्पन्न करते है और रुकावट का कारन बनते है | खासकर के अगर ऐसे कोई अशुभ योग किसी महिला की कुंडली में हो तो और भी वह उस महिला के लिए दुखो का कारन बन जाते है |
आप अपनी कुंडली में देखे की ऊपर वर्णित यदि ऐसा कोई योग आपकी कुंडली में तो नहीं है ? अगर है तो क्या जैसा लिखा है वैसा ही हो रहा है ?.....अगर आपको लगता है की हा समस्या बढ़ रही है तो आप इस नवरात्री में नवग्रह के जाप, पूजन शांति करवा सकते है |
[संतान प्राप्ति में बाधा 
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य-राहु, सूर्य-शनि आदि योग के कारण पितृ दोष बन रहा है तब उसके लिए नारायण बलि, नाग बलि, गया में श्राद्ध, आश्विन कृष्ण पक्ष में पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्राह्मण भोजन तथा दानादि करने से शांति प्राप्त होती है.
संतान प्राप्ति में व्यवधान यदि पंचम भाव में राहु है और उस पर मंगल की दृष्टि हो या मंगल की राशि में राहु हो तब सर्प दोष की बाधा के कारण संतान प्राप्ति में व्यवधान आता है या संतान हानि होती है.
जन्म कुंडली का संतान भाव निर्बल सूर्य से पीड़ित होने के कारण संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो हरिवंश पुराण का विधिवत श्रवण करके उसे दान करें 
जन्म कुंडली का संतान भाव निर्बल चन्द्र से पीड़ित होने के कारण संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो रामेश्वर तीर्थ में स्नान करें ,एक लक्ष गायत्री मन्त्र का जाप कराएं तथा चांदी के पात्र में दूध भर कर दान दें 
जन्म कुंडली का संतान भाव निर्बल मंगल से पीड़ित होने के कारण संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो भूमि दान करें ,प्रदोष व्रत करें 
जन्म कुंडली का संतान भाव निर्बल बुध से पीड़ित होने के कारण संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो विष्णु सहस्रनाम का जाप करें 
जन्म कुंडली का संतान भाव निर्बल गुरु से पीड़ित होने के कारण संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो गुरूवार को फलदार वृक्ष लगवाएं ,ब्राह्मण को स्वर्ण तथा वस्त्र का दान दें 
जन्म कुंडली का संतान भाव निर्बल शुक्र से पीड़ित होने के कारण संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो गौ दान करें , आभूषणों से सज्जित लक्ष्मी -नारायण की मूर्ति दान करें
जन्म कुंडली का संतान भाव निर्बल शनि से पीड़ित होने के कारण संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो पीपल का वृक्ष लगाएं तथा उसकी पूजा करें ,रुद्राभिषेक करें और ब्रह्मा की मूर्ति दान करें 
संतान गोपाल स्तोत्र ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि में तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम गतः | उपरोक्त मन्त्र की १००० संख्या का जाप प्रतिदिन १०० दिन तक करें | तत्पश्चात १०००० मन्त्रों से हवन,१००० से तर्पण ,१०० से मार्जन तथा १० ब्राह्मणों को भोजन कराएं 
श्री गणपति की दूर्वा से पूजा करें तथा संतान गणपति स्तोत्र का प्रति दिन ११ या २१ की संख्या में पाठ करें 
यह आवश्यक है कि कोई भी उपाए करने से पूर्व जन्म-पत्रिका का विश्लेषण अवश्य कराएं, तथा जन्म-पत्रिका में उपस्तिथ ग्रहो कि स्तिथि के अनुसार ही उपाए कर
[ विवाह योग के लिये मुख्य कारक -
सप्तम भाव का स्वामी खराब है या सही है वह अपने भाव में बैठ कर या किसी अन्य स्थान पर बैठ कर अपने भाव को देख रहा है।
सप्तम भाव पर किसी अन्य पाप ग्रह की द्रिष्टि नही है।
कोई पाप ग्रह सप्तम में बैठा नही है।
यदि सप्तम भाव में सम राशि है।
सप्तमेश और शुक्र सम राशि में है।
सप्तमेश बली है।
सप्तम में कोई ग्रह नही है।
किसी पाप ग्रह की द्रिष्टि सप्तम भाव और सप्तमेश पर नही है।
दूसरे सातवें बारहवें भाव के स्वामी केन्द्र या त्रिकोण में हैं,और गुरु से द्रिष्ट है।
सप्तमेश की स्थिति के आगे के भाव में या सातवें भाव में कोई क्रूर ग्रह नही है।
विवाह नही होगा अगर
सप्तमेश शुभ स्थान पर नही है।
सप्तमेश छ: आठ या बारहवें स्थान पर अस्त होकर बैठा है।
सप्तमेश नीच राशि में है।
सप्तमेश बारहवें भाव में है,और लगनेश या राशिपति सप्तम में बैठा है।
चन्द्र शुक्र साथ हों,उनसे सप्तम में मंगल और शनि विराजमान हों।
शुक्र और मंगल दोनों सप्तम में हों।
शुक्र मंगल दोनो पंचम या नवें भाव में हों।
शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ हो और पंचम या नवें भाव में हो।
शुक्र बुध शनि तीनो ही नीच हों।
पंचम में चन्द्र हो,सातवें या बारहवें भाव में दो या दो से अधिक पापग्रह हों।
सूर्य स्पष्ट और सप्तम स्पष्ट बराबर का है ।