जीविकोपार्जन बाधा

जन्म कुण्डली हमारे जन्म समय का नक्शा है,जन्म के समय किस राशि में कौन सा ग्रह कितने अंश में है, इसमें अंकित किया जाता है,हम ज्योतिष शास्त्र के द्वारा किसी भी व्यक्ति के जीवन में घटने वाली किसी भी घटना,समय,घटनास्थल की जानकारी पहले से कर सकते हैं,ज्योतिष के अनुसार अशुभ प्रभाव को रत्न उपचार,जाप एवं अनुष्ठान के द्वारा कम किया जा सकता है।

व्यवसाय या कारोवार का मतलब
घरवार चलाने के लिये मनुष्य को कर्म करना जरूरी होता है। बिना कर्म किये कोई भी इस जगत में नहीं रह सकता है,तो हम मनुष्य की बिसात ही क्या ,इसलिये मनुष्य को कर्म करना जरूरी है। मनुष्य अपने पिछले जीवन के कर्मों के अनुसार उन कर्म फ़ल का भुगतान लेने के लिये इस जन्म में आता है,और जो कर्म इस जीवन में किये जाते है उनको आगे के जीवन में प्राप्त करना होता है। कर्म की श्रेणियां भूतकाल के कर्मों के अनुसार ही बनती है,जैसे पिछले समय में अगर किसी से फ़ालतू में दासता का कर्म करवा कर जातक आया है तो उसे इस जीवन में जिससे दासता करवायी थी उसके प्रति दासता तो करनी ही पडेगी। उस दासता का रूप कुछ भी हो सकता है। अक्सर जब एक धनी व्यक्ति का पुत्र अपने कर्मों के अनुसार धन कमाने के बजाय धन को बेकार के कामों के अन्दर खर्च करने लगता है तो उसका मतलब यही होता है कि धनी व्यक्ति के परिवार में जन्म लेने के बावजूद भी दासता वाले काम करने है। लोग कहने लगते है कि बेचारा कितने धनी परिवार में पैदा हुआ था और भाग्य की बिडम्बना के कारण दासता के काम करने पड रहे है। यह भाग्य का लेख है कि काम तो करना ही पडेगा। कार्य के तीन रूप हैं,नौकरी करना व्यवसाय करवाना,और व्यवसाय के साथ नौकरी करना। व्यवसाय करने के साथ नौकरी करना भी एक साथ नही होता है। ग्रह और भाव नौकरी व्यवसाय और व्यक्ति के द्वारा जीवन मे किये जाने वाले जीविकोपार्जन के लिये प्रयासों का लेखा जोखा बतलाते है। ग्रहों के प्रभाव से अच्छे अच्छे व्यवसायी पलक झपकते धराशायी हो जाते और ग्रहों के ही प्रभाव से गरीब से गरीब कहां से कहां पहुंच जाते है। ग्रहों के बारे में ज्ञान हर किसी को नही होता है,और जो ग्रह और अपने जन्म के भाव को साथ लेकर चलता है और अपने ग्रह और भाव को पहिचान कर चलता है वह जीवन मे आने वाली समस्या को तुरत फ़ुरत मे समाधान कर लेता है,वह बुरे दिनों मे अपने व्यवसाय को स्थिर करने के बाद दूसरे कामों को निपटा लेता है,जबकि ग्रहों और भावों को नही जानने वाला समस्याओं के अन्दर फ़ंस कर और अधिक फ़ंसता चला जाता है। समझदार लोग वही होते है जो कल की सोच कर चलते है,और जो लोग आज मौज करो कल का क्या भरोसा के हिसाब से चलते है उनके लिये कोई चांस नही होता है कि वे आगे बढेंगे भी। आपको बताते है कि ग्रह किस राशि पर अपना प्रभाव कब गलत और कब सही डालते है।
व्यवसाय के लिये कौन सी राशि "नाम राशि या जन्म राशि"?
जन्म नाम को कई प्रकार से रखा जाता है,भारत में जन्म नाम को चन्द्र राशि से रखने का रिवाज है,चन्द्र राशि को महत्वपूर्ण इसलिये माना जाता है कि शरीर मन के अनुसार चलने वाला होता है,बिना मन के कोई काम नही किया जा सकता है यह अटल है,बिना मन के किया जाने वाला काम या तो दासता में किया जाता है या फ़िर परिस्थिति में किया जाता है। दासता को ही नौकरी कहते है और परिस्थिति में जभी काम किया जाता है जब कहीं किसी के दबाब में आकर या प्रकृति के द्वारा प्रकोप के कारण काम किया जाये। जन्म राशि के अनुसार चन्द्रमा का स्थान जिस राशि में होता है,उस राशि का नाम जातक का रखा जाता है,नामाक्षर को रखने के लिये नक्षत्र को देखा जाता है और नक्षत्र में उसके पाये को देखा जाता है,पाये के अनुसार एक ही राशि में कई अक्षरों से शुरु होने वाले नामाक्षर होते है। राशि का नाम तो जातक के घर वाले या पंडितों से रखवाया जाता है,लेकिन नामाक्षर को प्रकृति रखती है,कई बार देखा जाता है कि जातक का जो नामकरण हुआ है उसे कोई नही जानता है,और घर के अन्दर या बाहर का व्यक्ति किसी अटपटे नाम से पुकारने लग जाये तो उस नाम से व्यक्ति प्रसिद्ध हो जाता है। यह नाम जो प्रकृति के द्वारा रखा जाता है,ज्योतिष में अपनी अच्छी भूमिका प्रदान करता है। अक्सर देखा जाता है कि कन्या राशि वालों का नाम कन्या राशि के त्रिकोण में या लगन के त्रिकोण में से ही होता है,वह जातक के घर वालों या किसी प्रकार से जानबूझ कर भी नही रखा गया हो लेकिन वह नाम कुंडली बनाने के समय त्रिकोण में या नवांश में जरूर अपना स्थान रखता है। मैने कभी कभी किसी व्यक्ति की कुंडली को उसकी पचास साल की उम्र में बनाया है और पाया कि उसका नाम राशि या लगन से अथवा नवांश के त्रिकोण से अपने आप प्रकृति ने रख दिया है। कोई भी व्यवसाय करने के लिये नामाक्षर को देखना पडता है,और नामाक्षर की राशि का लाभ भाव का दूसरा अक्षर अगर सामने होता है तो लाभ वाली स्थिति होती है,अगर वही दूसरा अक्षर अगर त्रिक भावों का होता है तो किसी प्रकार से भी लाभ की गुंजायस नही रहती है। उदाहरण के लिये अगर देखा जाये तो नाम "अमेरिका" में पहला नामाक्षर मेष राशि का है और दूसरा अक्षर सिंह राशि का होने के कारण पूरा नाम ही लाभ भाव का है,और मित्र बनाने और लाभ कमाने के अलावा और कोई उदाहरण नही मिलता है,उसी प्रकार से "चीन" शब्द के नामाक्षर में पहला अक्षर मीन राशि का है और दूसरा अक्षर वृश्चिक राशि का होने से नामानुसार कबाड से जुगाड बनाने के लिये इस देश को समझा जा सकता है,वृश्चिक राशि का भाव पंचमकारों की श्रेणी में आने से चीन में जनसंख्या बढने का कारण मैथुन से,चीन में अधिक से अधिक मांस का प्रयोग,चीन में अधिक से अधिक फ़ेंकने वाली वस्तुओं को उपयोगी बनाने और जब सात्विकता में देखा जाये तो वृश्चिक राशि के प्रभाव से ध्यान समाधि और पितरों पर अधिक विश्वास के लिये मानने से कोई मना नही कर सकता है। उसी प्रकार से भारत के नाम का पहला नामाक्षर धनु राशि का और दूसरा नामाक्षर तुला राशि का होने से धर्म और भाग्य जो धनु राशि का प्रभाव है,और तुला राशि का भाव अच्छा या बुरा सोचने के बाद अच्छे और बुरे के बीच में मिलने वाले भेद को प्राप्त करने के बाद किये जाने वाले कार्यों से भारत का नाम सिरमौर रहा है। इसी तरह से अगर किसी व्यक्ति का नाम "अमर" अटल आदि है तो वह किसी ना किसी प्रकार से अपने लिये लाभ का रास्ता कहीं ना कहीं से प्राप्त कर लेगा यह भी एक ज्योतिष का चमत्कार ही माना जा सकता है।उदाहरणता"एयरटेल" यह नाम अपने मे विशेषता लेकर चलता है,और इस नाम को भारतीय ज्योतिष के अनुसार प्रयोग करने के लिये जो भाव सामने आते है उनके आनुसार अक्षर "ए" वृष राशि का है और "य" वृश्चिक राशि का है,वृष से वृश्चिक एक-सात की भावना देती है,जो साझेदारी के लिये माना जाता है,इस नाम के अनुसार कोई भी काम बिना साझेदारी के नही किया जा सकता है,लेकिन साझेदारी के अन्दर भी लाभ का भाव होना जरूरी है,इसलिये दूसरा शब्द "टेल" में सिंह राशि का "ट" प्रयोग में लिया गया है,एक व्यक्ति साझेदारी करता है और लाभ कमाता है,अधिक गहरे में जाने से वृष से सिंह राशि एक चार का भाव देती है,लाभ कमाने के लिये इस राशि को जनता मे जाना पडेगा,कारण वृष से सिंह जनता के चौथे भाव में विराजमान है।Astrologer