सम्पति खरीदी

 

अपना घर बनाना और उसमें सुख से रहना हर व्यक्ति का सपना होता है, मगर कई बार अथक प्रयत्नों के बावजूद या तो घर ही नहीं बन पाता, यदि बन जाए तो उसमें रहने पर सुख-शांति नहीं मिलती। आपके भाग्य में घर का सुख है या नहीं, इस बारे में कुंडली से स्पष्ट संकेत मिल सकते हैं।

घर का सुख देखने के लिए मुख्यत: चतुर्थ स्थान को देखा जाता है। फिर गुरु, शुक्र और चंद्र के बलाबल का विचार प्रमुखता से किया जाता है। जब-जब मूल राशि स्वामी या चंद्रमा से गुरु, शुक्र या चतुर्थ स्थान के स्वामी का शुभ योग होता है, तब घर खरीदने, नवनिर्माण या मूल्यवान घरेलू वस्तुएँ खरीदने का योग बनता है।

घर सुख संबंधी मुख्य ज्योतिषीय सिद्धांत —

1. चतुर्थ स्थान में शुभ ग्रह हों तो घर का सुख उत्तम रहता है।

2. चंद्रमा से चतुर्थ में शुभ ग्रह होने पर घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं।

3. चतुर्थ स्थान पर गुरु-शुक्र की दृष्टि उच्च कोटि का गृह सुख देती है।

4. चतुर्थ स्थान का स्वामी 6, 8, 12 स्थान में हो तो गृह निर्माण में बाधाएँ आती हैं। उसी तरह 6, 8, 12 भावों में स्वामी चतुर्थ स्थान में हो तो गृह सुख बाधित हो जाता है।

5. चतुर्थ स्थान का मंगल घर में आग से दुर्घटना का संकेत देता है। अशांति रहती है।

6. चतुर्थ में शनि हो, शनि की राशि हो या दृष्टि हो तो घर में सीलन, बीमारी व अशांति रहती है।

7. चतुर्थ स्थान का केतु घर में उदासीनता ‍देता है।

8. चतुर्थ स्थान का राहु मानसिक अशांति, पीड़ा, चोरी आदि का डर देता है।

9. चतुर्थ स्थान का अधिपति यदि नैप्च्यून से अशुभ योग करे तो घर खरीदते समय या बेचते समय धोखा होने के संकेत मिलते हैं।

10. चतुर्थ स्थान में यूरेनस का पापग्रहों से योग घर में दुर्घटना, विस्फोट आदि के योग बनाता है।

11 चतुर्थ स्थान का अधिपति 1, 4, 9 या 10 में होने पर गृह-सौख्य उच्च कोटि का मिलता है।

उपरोक्त संकेतों के आधार पर कुंडली का विवेचन कर घर खरीदने या निर्माण करने की शुरुआत की जाए तो लाभ हो सकता है। इसी तरह पति, पत्नी या घर के जिस सदस्य की कुंडली में गृह-सौख्य के शुभ योग हों, उसके नाम से घर खरीदकर भी कई परेशानियों से बचा जा सकता है।

 

यह भी जाने—-

घर भी रोटी और कपडा की तरह से जरूरी है,मनुष्य अपने लिये रहने और व्यापार आदि के लिये घर बनाता है,पक्षी अपने लिये प्रकृति से अपनी बुद्धि के अनुसार घोंसला बनाते है,जानवर अपने निवास के लिये गुफ़ा और मांद का निर्माण करते है। जलचर अपने लिये जल में हवा मे रहने वाले वृक्ष आदि पर और जमीनी जीव अपने अपने अनुसार जमीन पर अपना निवास करते है। अपने अपने घर बनाने के लिये योग बनते है। गुरु का योग घर बनाने वाले कारकों से होता है तो रहने के लिये घर बनता है शनि का योग जब घर बनाने वाले कारकों से होता है तो कार्य करने के लिये घर बनने का योग होता है जिसे व्यवसायिक स्थान भी कहा जाता है। बुध किराये के लिये बनाये जाने वाले घरों के लिये अपनी सूची बनाता है तो मंगल कारखाने और डाक्टरी स्थान आदि बनाने के लिये अपनी अपनी तरह से बल देता है। लेकिन घर बनाने के लिये मुख्य कारक शुक्र का अपना बल देना भी मुख्य है,अलग अलग राशियों के लोगों को अपने अपने समय में घर बनाने के योग बनते है।

 

मेष राशि वालों के लिये —–

गुरु जब भी कर्क राशि का वृश्चिक राशि का या मीन राशि का होगा तभी उनके लिये घर बनाने के लिये योग बन जाते है। लेकिन गुरु जब कर्क राशि का होता है तो अपने द्वारा अर्जित आय से घर बनता है,गुरु जब वृश्चिक राशि का होता है तो दूसरे के बनाये गये घर या मृत्यु के बाद की सम्पत्ति पर अपना निवास बनाये जाने या किसी बेकार की पडी सम्पत्ति पर अपना अधिकार जमाकर घर बनाने वाली बात सामने आती है। मंगल के अनुसार घर बनाने की स्थिति भी अपने अपने समय पर बनती है। इस राशि वालों के लिये घर बनाना और घर छोडना बारह साल में तीन बार देखने को मिलता है। जब गुरु कर्क राशि का होता है तो यह घर के अन्दर ही नये प्रकार का निर्माण करते है,वृश्चिक राशि का होता है तो पुराने निर्माण को तुडवाकर अपना निर्माण करते है और जब मीन राशि का होता है तो सामाजिक या किसी अन्य प्रकार से बेदखल जमीन पर अपना निर्माण करते है। गुरु के साथ बुध की युति होती है तो कर्जा लेकर या घर के सामने वाले पोर्सन को सही किया जाता है,अथवा कोई दुश्मनी वाली जमीन पर कब्जा किया जाता है,शनि की साथ वाली स्थिति और केतु के सहयोग से जो घर बनता है वह वकीलो और कब्जा लेने वाली बातों से घर बनता है। सबसे अधिक खतरनाक स्थिति तब बनती है जब राहु किसी तरह से घर बनाने वाले कारकों पर अपना असर देता है।

वृष राशि वालों के लिये ——

गुरु जब सिंह राशि का हो धनु राशि का हो या मेष राशि का हो तभी घर बनाने वाली बाते सामने आती है। सिंह राशि के गुरु के सानिध्य में घर बनता है लेकिन घर के अन्दर कई तरह की राजनीति बन जाती है,लेकिन घर बनता जरूर है और धनु राशि में बनाये जाने वाले घर के अन्दर या किसी प्रकार के बंटवारे को लेकर पुरानी सम्पत्ति को लेकर या बाप दादा की सम्पत्ति के बारे मे फ़ैसला लेकर घर बनवाया जाता है,लेकिन मेष राशि में गुरु के होने पर बनवाये जाने वाले घर में दिक्कत ही पैदा होती है। इस राशि वालों के लिये अक्सर घर और जमीनी कारणों में अदालती कारण भी सामने आते है और उन कारणों से वे अपने घर में चैन से नही रह पाते है। मिथुन और मेष राशि का दखल होने से भी घर के अन्दर की सभी बाते गुप्त नही रह पाती है और उस घर को एक धर्मशाला के रूप में भी माना जाये तो अन्यथा नही है। इस राशि के घर बनाने के बाद अक्सर दाहिनी तरफ़ वाला पडौसी अपने घर में रहने वाली व्यापारिक क्रिया को ही रखता है और वृष राशि वालों से किसी न किसी प्रकार का पंगा लेने के लिये ही तैयार रहता है जबकि बायीं ओर का पडौसी शांत भी होता है और घर की बातों को भी धीरे धीरे अपने उपक्रमो से सुनकर समझ कर और दूसरों के अन्दर अफ़वाह फ़ैलाकर बदनाम करने की कोशिश करता है।

मिथुन राशि वाले के लिए—-

अपने घर को कन्या के गुरु में मकर के गुरु में और वृष राशि के गुरु में अपना घर बनाते है। कन्या राशि के अन्दर गुरु के रहने पर बनाये जाने वाले घर अक्सर कर्जा और किस्त आदि से बनाये जाते है और घर को बनाते समय पानी या किसी प्रकार की जनता की लडाई से भी जूझना पडता है। इस राशि वालों के घर के पडौसी भी बायीं तरफ़ वाले कोई राजनीतिक लोग या सरकारी सेवा वाले लोग होते है और दाहिनी तरफ़ वाले कोई व्यापारी या कानूनी जानकार रहते है। इस राशि वाले जब मकर के गुरु में अपना घर बनाते है तो उनके लिये यह भी देखना जरूरी होता है कि पहले उस स्थान पर या तो घर बन चुका होता है या उन्हे तोडकर घर बनाया जाता है। इसके साथ ही इस भाव में गुरु होने पर जो घर बनाया जाता है तो घर का बायां पडौसी किसी धार्मिक संस्था से जुडा होता है और दायां पडौसी किसी न किसी प्रकार के लगातार लाभ या कमन्यूकेशन के कारणों से जुडा होता है लेकिन दाहिना पडौसी हमेशा इस राशि वाले के लिये भाई जैसा व्यवहार ही करता है। लेकिन इस राशि का जीवन साथी अपनी गतिविधियों से उस पडौसी पर अपना वर्चस्व कायम रखने की कोशिश करता है। इस राशि के द्वारा जो भी घर वृष राशि के गुरु में बनाये जाते है वे केवल धन की कमाई या ऊपरी इन्कम को ध्यान में रखकर बनाये जात्गे है।

कर्क राशि वाले के लिए—-

अपने घर को तुला के गुरु में कुम्भ के गुरु में और मिथुन के गुरु में ही बनाने की कोशिश करते है,इस राशि वाले जब भी अपना घर तुला के गुरु में बनाते है तो इन्हे सौगात में दाहिनी तरफ़ या तो सन्तान हीन लोग मिलते है और बायीं तरफ़ नौकरी पेशा और अपने घर को किराये पर चलाने वाले लोग मिलते है,दाहिनी तरफ़ वाला घर हमेशा तुला राशि वाले से मानसिक शत्रुता रखता है और दाहिनी तरफ़ वाला पडौसी केवल मतलब से ही मतलब रखने वाला होता है। इस राशि वालों का मकान अक्सर पूर्व मुखी ही मिलता है। जब इस राशि वाले कुम्भ राशि के गुरु में अपना मकान बनाते है तो मित्र इनकी सहायता में बहुत जल्दी आते है और इस राशि के बायीं तरफ़ एक मकान को दुबारा तोड कर बनाया जाता है और उसका दरवाजा पहले जो रहा होता है वह बदल कर लगाया जाता है,इसके अलावा जो मकान दाहिनी तरफ़ का होता है वह कई हिस्सेदारों का होता है और अक्सर उसके तीन ही हिस्सेदार मिलते है,लेकिन वह मकान किसी धर्म स्थान या सामाजिक जमीन को कब्जे में लेकर अनैतिक रूप से भी बनाया गया होता है। मिथुन राशि के गुरु में जब इस राशि वालों का मकान बनता है तो वह तीसरी सम्पत्ति के रूप में भी माना जाता है और तीन मन्जिल के आकार का भी बनता है। उस मकान से इस राशि वालों की पहिचान होती है। उस मकान के दाहिने साइड में कोई धन से सम्बन्धित या खाने पीने के सामान को बेचने से सम्बन्धित व्यक्ति का मकान होता है तथा बायीं तरफ़ जनता से जुडे व्यक्ति का या पब्लिक के लिये कार्य करने वाले व्यक्ति का मकान होता है।

सिंह राशि के लिये —-

मकान बनाने के लिये वृश्चिक राशि के गुरु में मीन राशि के गुरु में और कर्क राशि के गुरु में मकान बनाने की बारी आती है,इस राशि वालों का मकान पहले तो उसी स्थान पर बनाया जाता है जहां पहले कोई रहता ही नही हो और बंजर जमीन पर बनाये जाने वाले मकानों की श्रेणी में आता है। अक्सर इस प्रकार के लोग इस गुरु की उपस्थिति में उस जमीन को सरसब्ज करने की कोशिश करते है जिसका पहले कोई मूल्य नही रहा होता है। मीन राशि में गुरु के होने पर भी इस राशि वाले किसी प्रकार की मौत के बाद की सम्पत्ति को अपने आधीन करने के बाद अपना घर बनाने की कोशिश करते है,और इसके दाहिने तरफ़ वाला पडौसी या तो रक्षा सेवा में होता है या डाक्टरी या इन्जीनियरिंग वाले कामों के अन्दर अपना स्थान रखता है,बायीं तरफ़ वाला व्यक्ति पहले उस मकान मालिक का कोई बनाया गया रिस्तेदार होता है लेकिन जैसे ही इस राशि वाला मकान का निर्माण करता है उससे पहले ही वह अपना मकान जो पहले होता है उसे तोड कर बनाने की कोशिश करता है। कर्क राशि के गुरु में मकान की बनाने की क्रिया जनता के बीच में या बाजार में बनाने की होती है और अक्सर पानी वाले स्थानों नदियों या समुद्र के किनारे तालाबों या नालों के किनारे मकान बनाने की क्रिया होती है।

आइये जाने कब बनेगा आपका मकान/ घर/ आशियाना ?

मकान शनि की चीज है वही मकान बनवाता है और गिरवाता है जब शनि उच्च को होगा तो खूब मकान बनेगे औ जब नीच का या किसी अन्य ग्रह के योग से नीच हो रहा हो तो मकान गिरते है भूचाल आते है।

शनि न. 1 जातक यदि मकान बनाये तो निर्धन (सब कुछ बर्बाद) हो जाये परन्तु यदि शनि शुभ (न. 7, 10 खाली) तो ठीक।

शनि न. 2 मकान जब और जैसा बने बन जाने दे, उत्तम ही होगा।

शनि न. 3 तीन कुत्तों को घर में पाले तो मकान बनेगा, नहीं तो गरीबी का कुत्ता भौकता रहेगा।

शनि न. 4 अपने बनाये मकान, नानको या ससुराल के लिये अच्छे नहीं होते, मकान की नींव खोदते ही, नानकों में या ससुराल में, गड़बड़ शुरू हो जावे दोनों बर्बादी की ओर चल पड़ेंगे। इसलिए शनि न. 4 वाले को अपना मकान नहीं बनवाना चाहिए।

शनि न. 5 आप बनाये मकान सन्तान की बलि लेंगे परन्तु सन्तान के बनाये मकान जातक के लिये शुभ होंगे। यदि मकान ही बनाना घड़ जाए तो 48 वष्र की आयु के बाद बनवाएं। और भैंसा घर में ला उस की पूजा कर के खिला पिला कर दाग दिलवा कर छोड़े, फिर बनाए।

शनि न. 6 शनि की अवधि 36 बल्कि 39 वर्ष की आयु के बाद ही मकान बनाना उचित होगा, यदि पहिले बना ले तो अपनी लड़की के रिश्तेदारों को बर्बाद कर देगा।

शनि न. 7 बने बनाये मकान अधिक मिलेंगे जो शुभ होगा, यदि बिकने लगे तो सबसे पुराने मकान की दहलीज (चौखट) संभालकर रखे तो, फिर उतने ही मकान बन जायेगें।

शनि न. 8 ज्यों ही मकान बनाना शुरू करेगा, मृत्यु सिर पर मंडराने लगेगी, यहां शनि का असर, राहु व केतु का स्थिति के अनुसार होगा।

शनि न. 9 जातक की अपनी स्त्री या माता के गर्भ में बच्चा हो और वह मकान बनाना शुरू कर दे (अपनी कमाई से) तो पिता पर बुरा असर पड़ता है जब जातक के तीन मकान बन जाए तो पिता की मृत्यु निश्चित ।

शनि न. 10 जब तक मकान बना या खरीद नहीं लिया जाता तब तक धन खुब आता है परन्तु बनने पर जातक निर्धन हो जायेगा, जब शनि किसी कारण मन्दा हो रहा हो नही तो अधुरा रह जायेगा। यदि बनाना ही है तो 36 से 48 वर्ष की आयु में पुरा कर लें।

शनि न. 11 प्राय: 55 वष्र आयु के बाद ही मकान बनेगा, ध्यान रहे यदि दक्षिण द्वार बाले मकान के रियाइश करेगा तो बहुत लम्बे समय तक बीमार रह कर गल सड़ कर मरना पड़ेगा। यदि पहले बनाना है तो 36 वर्ष की आयु से पहले बना ले।

शनि न. 12 शनि सांप, सूर्य-बन्दर, कभी अपना मकान बिल, नहीं बनाते, परन्तु अब मकान बनाना सीख लेंगे अर्थात अब मकान अपने आप, बिना इच्छा से बनेंगे, और जातक के लिए शुभ होंगें। चाहे शनि के साथ सूर्य भी क्यों न पड़ा हो। जातक को चाहिए कि बनते मकान को रोके मत जैसा बन रहा है बनने दे। चौकोणा मकान जिसका प्रत्येक कोण 90 डिग्री के हो अति उत्तम होता है। ग्रह का असर मकान पर जन्म कुण्डली के अनुसार खाना न. 1 से 9 के ग्रह अपना अपना असर मकान में दाखिल होते समय दाये हाथ की दिशा का 10 से 12 खानों में बैठे ग्रह मकान के बाये तरफ अपना असर दिखाते हैं। खाना न. 2 मकान की हालत तथा खाना न. 7 मकान का सुख दुख बताता है।

उदाहरण – यदि शनि 4 और सूर्य 2 तो मकान में दखिल होतो हुए दाये हाथ की छतों के हिसाब से दूसरी कोठरी में सूर्य (अनाज, गुड या दिखावे की धूप) आदि तथा बायें हाथ के चौथे न. की कोठरी में शनि (सन्दूक, लोहा, लकड़ी) होगी। आगर जातक का कोई चाचा हो तो उस की मृत्यु शनि वाले कमरे में निश्चित। इसी प्रकार खाना न. 2 में सूर्य सम्बन्धित कार्य का, खाना 5 में खाली से बीमार का रात को पानी मांगते ही समय व्यतीत होगा।

वर्षफल के हिसाब से शनि अब राहु, केतु के सम्बन्ध से नेक स्वभाव का हो और दृष्टि के हिसाब से या वैसे ही राहु केतु के साथ बैठा हो तो मकान ही मकान बनवाये लेकिन जब केवल राहु, केतु के साथ हो तो मकान बर्बाद और गिरवा देगा। पुष्य नक्षत्र से शुरू कर इसी नक्षत्र में पूर्ण किया मकान अति उत्तम होता है तथा पूर्ण होने पर मकान की प्रतिष्ठाा पर खैरात करना अति आवश्यक है। विशेष : मकान की बुनियाद रखने से पहले तह जमीन के ईद गिर्द हाशिया डाल कर उस के बीचोबीच चन्द्र की चीजों से भरा बर्तन 40-43 दिन तक दबा कर खानदानी नेक परिणाम देख लेना आवश्यक क्योंकि बर्तन दबाने के दिन से शुरू करके जन्म कुण्डली में शनि होने के घर न. के दिन तक शनि अपना अच्छा या बुरा असर जरूर दिखाएगा। मंदा असर यानि बीमारी, मुकदमा, झगड़ा या कोई और लानत) जाहिर होते ही वह बर्तन निकाल कर चलते पानी (नदी या नाले) में गिरा दे या बहा दें। गंदा असर बन्द होगा। इस जगह मकान बनाना जातक के लिए उचित नहीं यानि खानदान की बर्बादी होगी। मकान की नींच डालने के दिन से 3 या 18 साल के समय में मकान अपना असर जरूर डलेगा। मकान कैसा हो

शुभ लग्न और नेक शगुन में शुरू किये मकान के लिए निम्न सावधानियां जरूरी हैं:—-

कोने —-

जमीन के टुकड़ों को एक गिन उस के कोने देखो। चार कोने वाला (90 डिगरी) का मकान सर्वोत्त्म है आठ कोनो वाला मातमी या बीमारी देने वाला, अठारह कोनो वाला तो बृहस्पति (सोना, चांदी) बरबाद), तीन या तेरह कोनो वाला तो मंगल बन्द, भाई बन्धुओं को आफते, मौतें आग, फांसी पांच कोनों वाला तो सन्तान का दुख वा बरबादी, मध्य से बाहर या मछली की पेट की तरह उठा हुआ मकान खानदान घटेगा यानी दादा तीन, बाप दो, स्वयं अकेला और नि:सन्तान तथा बाहू कटे मुर्दे की शक्ल का मकान में यदि में शादि हो तो मौते, स्त्री बेवा को छोड़ शेष मकान उत्तम होंगें।

दीवारें—

कोने देखने के बाद, मकान बनाने के पहले दीवारों का क्षेत्रफल और नींव छोड़कर हरेक हिस्सा या कमरे का अंदरूनी क्षेत्रफल अलग अलग देखा जाए तो जातक (मालिक मकान) के अपने हाथों का क्षेत्रफल भी देखा जाए। उस का हाथ चाहे 18,19 या 17 इंच का हो पैमाना उस के हाथ की लम्बाई का हो। तरीका : (लम्बाई चौड़ाई) 3) – 1 यदि लम्बाई 15, चौड़ाई 7 तो शेष बचा 1 परिणाम : यदि शेष 1, 3, 5, 7 तो नेक 0, 2, 4, 6, 8 तो मंदा

शेष—

1 (बृह., सुर्य, खाना न. 1) मकान, मकानों में राज महल जैसा होगा। 2. (बृहस्पति, शुक्र खाना न. 6) कुता, गरीब होगा (केतु ६ या बृहस्पति शुक्र (6) का उपाय करें। 3. (मंगल, बृ. खाना न० 3) शेर की भांति, उत्तम बैठक, दूकान व्यापार के लिए अति उत्तम, परन्तु स्त्रियों, बच्चों के लिए अशुभ। निसन्तान दम्पति के लिए उत्तम। बच्चों के साथ रहने की हालात में बृहस्पति के पीले फूल कायम करो। जहां तक हो सन्तानवान इस मकान से दूर रहे। अकेली स्त्री वा बच्चों से दूर स्त्री के लिए कोई कष्ट नहीं। 4. (शनि, चन्द्र खाना न. 4) गधे के समान मेहनत के बावजूद दो जून की रोटी दूर्भर । (चन्द्र शनि खाना न. 4 का उपाय करें।) 5. (बृहस्पति, सूर्य खाना न.5) गाय समान, स्त्री बच्चे सब सुख पायेंगे। 6. (सूर्य, शनि खाना न. 6) मुसाफिर यानि न माता रहे, न पिता सुख ले, न औलाद को आराम, न दोस्त का साथ, मारा मारा घूमें। (सूर्य शनि (6) का उपाय करे)। 7. (चन्द्र, शुक्र खाना न. 7) हाथी समान, उत्तम। 8 (मंगल शनि खाना न. 8) चील समान यानि मौत का मुख्यालय (मंगल शुक्र (8) का उपाय)।

मुख्य द्वार—

1 पूर्व में उत्तम, नेक व्यक्ति आए जाए, सुख हो। 2 पश्चिम में दूसरे दर्जे का उत्तम। 3 उत्तर में नेक, लम्बे सफर, पूजा पाठ नेक कार्य के लिए आने जाने का रास्ता जो परलोक सुधारे। 4 दक्षिण में मनहुस, औरत के लिए मौत का कारण, मौत की जगह, छड़ों (कुवारों) का तबैला या रंडवों के अफसोस की जगह। उपाय:- हर वर्ष या कभी कभार बकरी दान करे, बुध की चीजें कच्ची शाम को दें ताकि बीमारी, छेड़छाड़ी, धन हानि न हो।

कडिया—-

क्योंकि आजकल लैण्टर डाला जाता है अत: कड़ियों के स्थान पर सरियों की गिनती की जायेगी।

कु्ल कडियों (सरियों) का 4 से भाग देने पर जो शेष बचे यानि 1 राजा का स्वभाव; 2 यमदूत; 3 राजयोग।

विशेष: —

1. मकान में सीधे या आम रास्ते से सीधी हवा का आना बच्चों के लिए मुसीबत खड़ी करेगी या (गली का आखरी मकान जहां से आगे रास्ता न हो। बाल बच्चें, स्त्री बर्बाद, राहु केतु के मंदे असर से मकान का प्रभाव बुरा। मुसीबते ही मुसीबते केवल अन्धें या रन्डवी ही रहे तथा अपनी जोडो की मालिश करवाने के लिए।

2. रात को सोते वक्त सिरहाना पूर्व में होना उत्तम। क्योंकि दिन में दिमाग ने कार्य किया (सूर्य की मदद), रात को आत्मा ने कार्य सम्भाला (चन्द्र की मदद) इसलिये पाव का दक्षिण तथा पूर्व में सोते समय होना मनहुस है इस का उत्तर में होना नेक ही होगा। क्योंकि रूहानी काम चाहे सिर से करे या पैर से या हाथ से करें।

3. मकान के अन्दर की चीजे तभी शुभ असर देंगी जब बैठक पूर्व की दीवार में, रसोई (आग) दक्षिण या दक्षिण पूर्व में, पानी (गुसल), पूजा पाठ का कमरा उत्तर में या पूर्व में, खजाना, धन दौलत दक्षिण या दक्षिण पश्चिम में हो। मेहमानखानों पश्चिमी कोने में उत्तम होगा।

4. मकान से निकलते वक्त दाये हाथ का पानी, बायें हाथ या पीठ के पीछे आग उत्तम।

5. मकान के नजदीक पीपल का पेड़ हो तो उस की सेवा या जड़ों में जल देना जरूरी अन्यथा जहां तक उस का साया जाये वहां तक तबाही या बर्बादी मचा दे। नजदीकी कुएं में श्रद्धा भाव से थोड़ा दूध डाला तो ठीक अन्यथा मंदा किया तो तबाही। कीकर के पेड़ पर सुर्योदय से पूर्व तारों की छांव (अन्धेरे में) 40 दिन शनिवार को पानी देने से ही जातक का बचाव होगा।

मकान में ग्रह चाल से हर कोना व दिश। किसी न किसी ग्रह के लिए पक्की तरह से निश्चित हैं। इस में ग्रह से सम्बन्धित वस्तुएं भी है। यदि मकान में ग्रह के सम्बन्धित पक्की जगह पर शुक्र ग्रह की चीज कायम करें तो जातक को नुकसान होने की सम्भावना है। जैसे कि चन्द्र के लिए खाना न. 4 (उत्तर पूर्वी कोना) में लोहे का सन्दूक ला कर रख दे तो चन्द्र का फल मंदा होगा यानि जातक को चन्द्र आराम न देगा।

निम्न सावधानियां रखें नया भवन/घर/मकान बनवाते समय—

हमारे ग्रंथ पुराणों आदि में वास्तु एवं ज्योतिष से संबंधित गूढ़ रहस्यों तथा उसके सदुपयोग सम्बंधी ज्ञान का अथाह समुद्र व्याप्त है जिसके सिद्धान्तोंपर चलकर मनुष्य अपने जीवन को सुखी, समृद्ध, शक्तिशाली और निरोगी बना सकता है। प्रभु की भक्ति में लीन रहते हुए उसके बताये मार्ग पर चलकर वास्तुसम्मत निर्माण में रहकर और वास्तुविषयक जरूरी बातों को जीवन में अपनाकर मनुष्य अपने जीवन को सुखी व सम्पन्न बना सकता है। सुखी परिवार अभियान में वास्तु एक स्वतंत्र इकाई के रूप में गठित की गयी है और उस पर गहन अनुसंधान जारी है। असल में वास्तु से वस्तु विशेष की क्या स्थित होनी चाहिए। उसका विवरण प्राप्त होता है। श्रेष्ठ वातावरण और श्रेष्ठ परिणाम के लिए श्रेष्ठ वास्तु के अनुसार जीवनशैली और ग्रह का निर्माण अतिआवश्यक है। इस विद्या में विविधताओं के बावजूद वास्तु सम्यक उस भवन को बना सकते हैं। जिसमें कि कोई व्यक्ति पहले से निवास करता चला आ रहा है। वास्तु ज्ञान वस्तुतः भूमि व दिशाओं का ज्ञान है।

1. मकान मे प्रवेश करते समय, पहले ही छते हुए भाग में जमीन खोद कर भट्ठी बनाली जाये या व्याह, शादियों में उसका प्रयोग करके बन्द कर दी जाये तो जब भी उस घर में मंगल न. ८ वाला बच्चा उत्पन्न होगा तो अपने वंश की ऐसी बर्बादी शुरू करेगा कि लोग कहेंगें कि अचानक सबके साथ भट्ठी में पड़ गये हैं। अत: यदि ऐसी भट्ठी घर में है तो उसे खोदकर जली हुई मिट्टी को तालाब या नदी के गिरा दें।

2. यदि मकान मे मूर्तियां स्थापित करके मंदिर बना लिया जाये और चिमटे घटों या घंटियां बजाकर पूजा करनी शुरू कर दी जाये तो उस घर में निसन्तानी का घण्टा बज जायेगा। विशेष- जब बृहस्पति न. 7 में हों । कागज की फोटों का कोई वहम नहीं होगा। परन्तु धूप बत्ती नहीं करनी अर्थात उनकी पूजा निशिद्ध है।

3. मकान में प्रवेश करते, समय दायें हाथ पर मकान के अन्त में एक अन्धेरी कोठरी प्राय: हुआ करती है जिसमें एक दरवाजा ही होता है प्रकाश/हवा जाने का कोई रास्ता नहीं (रोशनदान) नहीं होता। यदि उस काठरी में प्रकाश के लिए रोशनदान या छत्त में रोशन दान निकाल लिया जावे तो व वंश बरबाद हो जायेगा क्योंकि अंधेरी कोठरी शनि है और प्रकाश सूर्य है अत: दोनो टकरवा से स्त्री सुख नष्ट धन सम्पति नष्ट हो जाती है। यदि किसी कारण उसकी छत बदलनी पड़ जाये तो पहले उस पर छत डाल दे (ऊंची छत) फिर वह छत बदल लें।

4. मकान में प्राय: कई बार दीवारों में आले (गुप्त स्थान) रख लिया करते थे, उन्हे खाली न रखें। यदि घर में जेवरों, नकदी के लिए छुपे हुए गड्डे बने हो तथा अब उन में कीमती चीजे न रखी हों तो ‘खाली बुध` बोलेगा यानि मालिक या जातक केवल खाली बात करेगा या तो उन्हें बन्द कर दें या उनमें बादाम, छुआरे आदि रख दें, चाहे दूध ही हो।

5 मकान के फर्श में यदि कच्चा हिस्सा बिल्कुल न हो तो शुक्र का फल नीच होता है। स्त्रियों की सेहत ठीक नहीं रहती, धन सम्पत्ति भी नहीं टिकेगी। यदि किसी कारण फर्श कच्चा न रखा जा सके तो उस घर में शुक्र की चीजें, खेती बाड़ी या बसाती का सामान, लाल ज्वार, दही या हीरा आदि रख ले अथवा किसी मिट्टी के गमले में मिट्टी ही डालकर रख लें। इस ग्रहस्थ स्त्रियों का मान, सेहत तथा धन सुरक्षित होगा।

6 दक्षिण में मुख्य द्वारा वाला मकान स्त्रियों के लिए विशेष रूप से मनहुस होता है, उसमें पुरूष (रन्डवों को छोड़कर) भी कोई विशेष सुख नहीं भोगते। अत: मुख्य द्वार दक्षिण से हटाकर किसी और दिशा में पूर्व, पश्चिम में कर लें। यदि न हटा सके तो उसके उपर के भाग में ताम्बें का पतरा, ताम्बे की कीलों से गड़वा दें।

विशेष – मद्रास ( जो दक्षिण भारत का हिस्सा है) इस से वहम न करें मगर नेक हालत कम ही होगी।

कब प्रारंभ घर/मकान बनवाना ?

शुक्ल पक्ष में करें गृह निर्माण—–

वास्तु शास्त्र में प्राचीन मनीषियों ने सूर्य के विविध राशियों पर भ्रमण के आधार पर उस माह में घर निर्माण प्रारंभ करने के फलों की ‍विवेचना की है।

1. मेष राशि में सूर्य होने पर घर बनाना प्रारंभ करना अति लाभदायक होता है।

2. वृषभ र‍ाशि में सूर्य : संपत्ति बढ़ना, आर्थिक लाभ

3. मिथुन राशि में सूर्य : गृह स्वामी को कष्ट

4. कर्क राशि में सूर्य : धन-धान्य में वृद्धि

5. सिंह राशि का सूर्य : यश, सेवकों का सुख

6. कन्या राशि का सूर्य : रोग, बीमारी आना

7. तुला राशि का सूर्य : सौख्य्, सुखदायक

8. वृश्चिक राशि का सूर्य : धन लाभ

9. धनु राशि का सूर्य : भरपूर हानि, विनाश

10. मकर राशि का सूर्य : धन, संपत्ति वृद्धि

11. कुंभ राशि का सूर्य : रत्न, धातु लाभ

12. मीन राशि का सूर्य : चौतरफा नुकसान

घर बनाने का प्रारंभ हमेशा शुक्ल पक्ष में करना चाहिए। फाल्गुन, वैशाख, माघ, श्रवण और ‍कार्तिक माहों में शुरू किया गया गृह निर्माण उत्तम फल देता है।

 

वर्जित क्या करें ..????

मंगलवार व रविवार, प्रतिपदा, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या तिथियाँ, जेष्ठा रेवती, मूल नक्षत्र, वज्र, व्याघात, शूल, व्यतिपात, गंड, विषकुंभ, परिध, अतिगंड, योग – इनमें घर का निर्माण या कोई जीर्णोद्धार भूलकर भी नहीं करना चाहिए अन्यथा घर फलदायक नहीं होता।

 

अति शुभ योग :—

शनिवार, स्वाति, नक्षत्र सिंह लग्न, शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि, शुभ योग और श्रावण मास ये सभी यदि एक ही दिन उपलब्ध हो सके, तो ऐसा घर दैवी आनंद व सुखों की अनुभूति कराने वाला होता है।