होली पर करे रामचरित मानस की चोपाई

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होली पर करे रामचरित मानस की चोपाई के यह उपाय होगा सारी समस्याओं का अंत
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हमारे देश में 'होलिकादहन' का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। मनाए जाने के कई कारण सर्वविदित हैं। तंत्र-मंत्र सिद्धि के लिए होलिकादहन की रात्रि दीपावली, जन्माष्टमी, शिवरात्रि की तरह ही महत्वपूर्ण है।

सुख-समृद्धि तथा कष्ट निवारण के लिए होली का महत्व किसी पर्व से कम नहीं है। इस दिन का लाभ हम निम्नलिखित विशेष तरीकों से उठा सकते हैं।

(1) होलिकादहन तथा उसके दर्शन से शनि-राहु-केतु के दोषों से शांति मिलती है।

(2) होली की भस्म का टीका लगाने से नजर दोष तथा प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है।

(3) होली की भस्म घर में चांदी की डिब्बी में रखने से कई बाधाएं स्वत: ही दूर हो जाती 
(4) कार्य में बाधाएं आने पर आटे का चौमुखा दीपक सरसों के तेल से भरकर कुछ दाने काले तिल के डालकर एक बताशा, सिन्दूर और एक तांबे का सिक्का डालें। होली की अग्नि से जलाकर घर पर से ये पीड़ित व्यक्ति पर से उतारकर सुनसान चौराहे पर रखकर बगैर पीछे मुड़े वापस आएं तथा हाथ-पैर धोकर घर में प्रवेश करें।
(5) जलती होली में तीन गोमती चक्र हाथ में लेकर अपने (अभीष्ट) कार्य को 21 बार मा‍नसिक रूप से कहकर गोमती चक्र अग्नि में डाल दें तथा प्रणाम कर वापस आएं।

(6) विपत्ति नाश के लिए निम्न मंत्र की 108 आहुति दें तथा नित्य यथाशक्ति जप करें।

मंत्र- 'राजीव नयन धरें धनु सायक।
भगति विपति भंजन सुखदायक।।
(7) विविध रोग तथा उपद्रव शांति के लिए मंत्र-

दैहिक दैविक भौतिक तापा,
राम राज नहिं काहुहिं व्यापा।। इस मंत्र का होली से जप आरंभ करें।

(8) नौकरी प्राप्ति के लिए-

बिस्व भरन पोषन कर जोई,
ताकर नाम भरत अस होई।।
(9) विद्या प्राप्ति तथा साक्षात्कार में सफलता हेतु मंत्र-

गुरु गृह गए पढ़न रघुराई।
अल्प काल विद्या सब पाई।।

(10) रोजी-रोजगार, प्रमोशन, बंद धंधा चलाने का मंत्र 1008 बार पढ़कर 108 आहुति डालें तथा नित्य चींटियों को आटा-शकर-घी मिलाकर सवेरे पढ़ते हुए चींटियों के बिल पर डालते जाएं। ऐसा 40 दिन करें, सफलता निश्चित मिलेगी।

मंत्र- 'ॐ नमो नगन चींटि महावीर हूं पूरों
तोरी आशा तूं पूरो मोरी आशा।।' 
(11) व्यापार में घाटा होने पर निम्न मंत्र होली की रात्रि में 1008 बार जपकर 108 आहुति दें तथा नित्य प्रात: एक माला जपें, निश्चित लाभ होगा।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीमेव कुरु-कुरु वांछितनेव ह्रीं ह्रीं नम:।।