शादी/विवाह के लिए कौन से देवता की पूजा करनी चाहिए?

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क्या आप जानते हें की शादी/विवाह
के लिए कौन से देवता की पूजा करनी
चाहिए?
समय पर अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने
की इच्छा के कारण माता-पिता व भावी वर-
वधू भी चाहते है कि अनुकुल समय पर
ही विवाह हो जायें. कुण्डली में विवाह
विलम्ब से होने के योग होने पर विवाह की बात बार-
बार प्रयास करने पर भी कहीं
बनती नहीं है. इस प्रकार
की स्थिति होने पर शीघ्र विवाह के उपाय
करने हितकारी रहते है. उपाय करने से
शीघ्र विवाह के मार्ग बनते है. तथा विवाह के मार्ग
की बाधाएं दूर होती है.
हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है
विवाह। सामान्यत: सभी लोगों का विवाह हो जाता है,
कुछ लोगों का जल्दी विवाह होता है तो कुछ लोगों
की शादी में विलंब होता है। यदि
किसी अविवाहित लड़के या लड़की
की सभी परिस्थितियां बहुत
अच्छी हैं और फिर भी विवाह
नहीं हो पा रहा है तो ऐसा संभव है कि
उनकी कुंडली में कोई ग्रह बाधा हो।
मानव जीवन में विवाह बहुत बड़ी विशेषता
मानी गई है। विवाह का वास्तविक अर्थ है- दो
आत्माओं का आत्मिक मिलन। एक हृदय चाहता है कि वह दूसरे
हृदय से सम्पर्क स्थापित करे, आपस में दोनों का आत्मिक प्रेम
हो और हृदय मधुर कल्पना से ओतप्रोत हो।
जब दोनों एक सूत्र में बँध जाते हैं, तब उसे समाज ‘विवाह’ का नाम
देता है। विवाह एक पवित्र रिश्ता है।
ज्योतिषीय दृष्टि से जब विवाह योग बनते हैं, तब
विवाह टलने से विवाह में बहुत देरी हो
जाती है। वे विवाह को लेकर अत्यंत चिंतित हो जाते
हैं। वैसे विवाह में देरी होने का एक कारण बच्चों का
मांगलिक होना भी होता है। इनके विवाह के योग 27,
29, 31, 33, 35 व 37वें वर्ष में बनते हैं। जिन युवक-युवतियों
के विवाह में विलंब हो जाता है, तो उनके ग्रहों की
दशा ज्ञात कर, विवाह के योग कब बनते हैं, जान सकते हैं।
जिस वर्ष शनि और गुरु दोनों सप्तम भाव या लग्न को देखते हों, तब
विवाह के योग बनते हैं। सप्तमेश की महादशा-
अंतर्दशा या शुक्र-गुरु की महादशा-अंतर्दशा में विवाह
का प्रबल योग बनता है। सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश
के साथ बैठे ग्रह की महादशा-अंतर्दशा में विवाह
संभव है।
अविवाहित युवाओं की कुंडली गुरु ग्रह से
संबंधित बाधा हो तो भी विवाह में विलंब होता है। गुरु
ग्रह को शादी का कारक ग्रह माना जाता है। इसके
अलावा जिन लोगों की कुंडली
मंगली होती है उनका विवाह या तो
जल्दी हो जाता है या काफी विलंब से होता
है। यदि किसी व्यक्ति की
कुंडली में गुरु ग्रह अशुभ स्थिति में है तो उसे
बृहस्पति ग्रह को मनाने के लिए ज्योतिषीय उपाय करने
चाहिए।
उपाय करते समय ध्यान में रखने योग्य बातें (Precautions
while doing Jyotish remedies)
1. किसी भी उपाय को करते समय, व्यक्ति
के मन में यही विचार होना चाहिए, कि वह जो
भी उपाय कर रहा है, वह ईश्वरीय कृ्पा
से अवश्य ही शुभ फल देगा.
2. सभी उपाय पूर्णत: सात्विक है तथा इनसे
किसी के अहित करने का विचार नहीं है.
3. उपाय करते समय उपाय पर होने वाले व्ययों को लेकर चिन्तित
नहीं होना चाहिए.
4. उपाय से संबन्धित गोपनीयता रखना
हितकारी होता है.
5. यह मान कर चलना चाहिए, कि श्रद्धा व विश्वास से
सभी कामनाएं पूर्ण होती है
.—आईये शीघ्र विवाह के उपायों को समझने का प्रयास
करें. ——
बृहस्पति को देवताओं का गुरु माना जाता है इनकी पूजा
से विवाह के मार्ग में आ रही सभी
अड़चनें स्वत: ही समाप्त हो जाती हैं।
इनकी पूजा के लिए गुरुवार का विशेष महत्व है। गुरुवार
को बृहस्पति देव को प्रसन्न करने के लिए पीले रंग
की वस्तुएं चढ़ानी चाहिए।
पीले रंग की वस्तुएं जैसे
हल्दी, पीला फल, पीले रंग
का वस्त्र, पीले फूल, केला, चने की दाल
आदि इसी तरह की वस्तुएं गुरु ग्रह को
चढ़ानी चाहिए।
साथ ही शीघ्र विवाह की
इच्छा रखने वाले युवाओं को गुरुवार के दिन व्रत रखना चाहिए। इस
व्रत में खाने में पीले रंग का खाना ही खाएं,
जैसे चने की दाल, पीले फल, केले खाने
चाहिए। इस दिन व्रत करने वाले को पीले रंग के वस्त्र
ही पहनने चाहिए। हालांकि इस व्रत के कई कठोर
नियम भी हैं। ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रों स: मंत्र का
पांच माला प्रति गुरुवार जप करें। गुरु ग्रह की पूजा के
अतिरिक्त शिव-पार्वती का पूजन करने से
भी विवाह की मनोकामना पूर्ण हो
जाती हैं। इसके लिए प्रतिदिन शिवलिंग पर कच्चा दूध,
बिल्व पत्र, अक्षत, कुमकुम आदि चढ़ाकर विधिवत पूजन करें।
—–लड़का हो या लड़की, सभी के लिए
जल्दी शादी कराने के 9 उपाय—-
विवाह योग्य लड़के-लड़की की
शादी समय पर हो जाए तो उनके माता-पिता और खुद
उनकी काफी चिंताएं समाप्त हो
जाती है। वैसे तो किसी का विवाह कब
होना है इस संबंध में कोई स्पष्ट तिथि नहीं बता
सकता। परंतु ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी ग्रह
बाधा की वजह से विवाह में विलंब हो रहा हो तो
निम्न उपाय करें, शीघ्र ही आपके घर
शहनाई बजेगी।
– यदि किसी लड़के या लड़की
की कुंडली में सूर्य की वजह
से विवाह होने में बाधा उत्पन्न हो रही हो तो
प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में सूर्य को जल चढ़ाएं और इस मंत्र का
जप करें। मंत्र: ऊँ सूर्याय: नम:।
– कुंडली में मंगल के कारण विवाह में विलंब होने पर
चांदी का चौकोर टुकड़ा सदैव अपने पास रखें। विवाह
शीघ्र होगा।
– सूर्य की बाधा होने पर विवाह प्रस्ताव के जाते
समय थोड़ा गुड़ खाकर और पानी पीकर जाना
चाहिए। साथ ही लड़के या लड़की
की माता को गुड़ खाना छोड़ देना चाहिए।
– यदि किसी लड़के या लड़की
की कुंडली में सूर्य की वजह
से विवाह होने में बाधा उत्पन्न हो रही हो तो
प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में सूर्य को जल चढ़ाएं और इस मंत्र का
जप करें। मंत्र: ऊँ सूर्याय: नम:।
– कुंडली में मंगल के कारण विवाह में विलंब होने पर
चांदी का चौकोर टुकड़ा सदैव अपने पास रखें। विवाह
शीघ्र होगा।
– तांबे का एक चौकोर टुकड़ा जमीन में दबा दें, इससे
सूर्य की बाधा समाप्त हो जाएगी।
शीघ्र विवाह होगा।
– प्रति शनिवार को शिवजी पर काले तिल चढ़ाएं, इससे
शनि की बाधा समाप्त हो जाएगी और
शादी शीघ्र होगी।
– शनिवार को बहते पानी में नारियल बहाएं, इससे राहू
की बाधा दूर होगी।
– तांबे का एक चौकोर टुकड़ा जमीन में दबा दें, इससे
सूर्य की बाधा समाप्त हो जाएगी।
शीघ्र विवाह होगा।
– प्रति शनिवार को शिवजी पर काले तिल चढ़ाएं, इससे
शनि की बाधा समाप्त हो जाएगी और
शादी शीघ्र होगी।
– एक तरफ से सिकी हुईं आठ
मीठी रोटियां भूरे कुत्ते को खिलाएं।
– शनिवार को बहते पानी में नारियल बहाएं, इससे राहू
की बाधा दूर होगी।
– शनिवार को काले कपड़े में साबुत उड़द, लोहा, काला तिल और साबुन
बांधकर दान करें।
– काले घोड़े की नाल का छल्ला सीधे हाथ
की मध्यमा अंगुली (मीडिल
फिंगर) में पहनें।
—लड़की की शादी के लिए
परेशान हैं तो ये टोटका करें—–
यदि किसी कन्या का विवाह यदि सही समय
पर न हो तो माता-पिता का चिंतित होना जरुरी है।
वर्तमान समय में यह एक आम समस्या हो गई है। अगर आप
चाहते हैं कि आपकी लड़की
की शादी जल्दी
किसी अच्छे घर में हो जाएं तो नीचे लिखा
टोटका करने से आपकी यह समस्या दूर हो
जाएगी।
—ये करें उपाय/टोटका—
शुक्ल पक्ष के पहले गुरुवार को सात केले, सात गौ ग्राम गुड़ और
एक नारियल लेकर किसी नदी या सरोवर पर
जाएं। अब कन्या को वस्त्र सहित नदी के जल में
स्नान कराकर उसके ऊपर से जटा वाला नारियल ऊसारकर
नदी में प्रवाहित कर दें। इसके बाद थोड़ा गुड़ व एक
केला चंद्रदेव के नाम पर व इतनी ही
सामग्री सूर्यदेव के नाम पर नदी के किनारे
रखकर उन्हें प्रणाम कर लें। थोड़े से गुड़ को प्रसाद के रूप में
कन्या स्वयं खाएं और शेष सामग्री को गाय को खिला दें।
इस टोटके से कन्या का विवाह शीघ्र ही
हो जाएगा।
—-यदि आपके बच्चों की नहीं हो
रही शादी तो करें यह टोटका—–
हिंदू धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में सबसे प्रमुख माना गया
है। हर माता-पिता की इच्छा होता है कि उनके बेटे का
विवाह धूम-धाम से हो। लेकिन कभी-कभी
कुछ कारणों के चलते उचित समय पर उसका विवाह
नहीं हो पाता। यदि आपके साथ भी
यही समस्या है तो नीचे लिखे टोटके से
इस समस्या का निदान संभव है
—-यह टोटका/उपाय भी अपनाएं——–
कुम्हार अपने चाक को जिस डंडे से घुमाता है, उसे
किसी तरह किसी को बिना बताए प्राप्त कर
लें। इसके बाद घर के किसी कोने को रंग-रोगन कर साफ
कर लें। इस स्थान पर उस डंडे को लंहगा-चुनरी व
सुहाग का अन्य सामग्री से सजाकर दुल्हन का स्वरूप
देकर एक कोने में खड़ करके गुड़ और चावलों से इसकी
पूजा करें।
इस टोटके से लड़के का विवाह शीघ्र ही
हो जाता है। यदि चालीस दिनों में इच्छा पूरी
न हो तो फिर यही प्रक्रिया दोहराएं(डंडा प्राप्त करने
से लेकर पूजा तक)। यह प्रक्रिया सात बार कर सकते हैं।
—-शादी करने का एक अचूक अनुभूत उपाय—–
पुरुषों को विभिन्न रंगों से स्त्रियों की तस्वीरें
और महिलाओं को लाल रंग से पुरुषों की
तस्वीर सफ़ेद कागज पर रोजाना तीन महिने
तक एक एक बनानी चाहिये।
—–कुंवारी कन्या के विवाह हेतु अनुभूत/अचूक उपाय/
टोटके :—
१. यदि कन्या की शादी में कोई रूकावट
आ रही हो तो पूजा वाले 5 नारियल लें ! भगवान शिव
की मूर्ती या फोटो के आगे रख कर “ऊं
श्रीं वर प्रदाय श्री नामः” मंत्र का पांच माला
जाप करें फिर वो पांचों नारियल शिव जी के मंदिर में चढा
दें ! विवाह की बाधायें अपने आप दूर होती
जांयगी !
२. प्रत्येक सोमवार को कन्या सुबह नहा-धोकर शिवलिंग पर
“ऊं सोमेश्वराय नमः” का जाप करते हुए दूध मिले जल को चढाये
और वहीं मंदिर में बैठ कर रूद्राक्ष की
माला से इसी मंत्र का एक माला जप करे ! विवाह
की सम्भावना शीघ्र बनती
नज़र आयेगी
—–शादी विवाह में विघ्न न पडने देने के लिये टोटका—-
शादी वाले दिन से एक दिन पहले एक ईंट के ऊपर
कोयले से “बाधायें” लिखकर ईंट को उल्टा करके किसी
सुरक्षित स्थान पर रख दीजिये,और शादी
के बाद उस ईंट को उठाकर किसी पानी वाले
स्थान पर डाल कर ऊपर से कुछ खाने का सामान डाल
दीजिये,शादी विवाह के समय में बाधायें
नहीं आयेंगी।
—–प्रेम विवाह में सफलता प्राप्ति हेतु ये करें उपाय/टोटका :
—-
यदि आपको प्रेम विवाह में अडचने आ रही हैं तो :
—-
शुक्ल पक्ष के गुरूवार से शुरू करके विष्णु और
लक्ष्मी मां की मूर्ती या फोटो
के आगे “ऊं लक्ष्मी नारायणाय नमः” मंत्र का रोज़
तीन माला जाप स्फटिक माला पर करें ! इसे शुक्ल पक्ष
के गुरूवार से ही शुरू करें ! तीन
महीने तक हर गुरूवार को मंदिर में प्रशाद चढांए और
विवाह की सफलता के लिए प्रार्थना करें !
——विवाह सम्बन्धित कुछ उपयोगी बातें—-
1. विवाह मे आशौच आदि की सभावना हो तो 10 दिनो
पहले नान्दी मुख श्राद्ध करना चाहिये
नान्दी मुख श्राध्द के बाद विवाह सम्पन्न आशौच होने
पर भी वर-वघु को और करना चाहिये.
नान्दी मुख श्राद्ध के बाद विवाह संमाप्ति आशौच होने
पर वर-वधू को ओर उनके माता-पिता को आशौच नहीं
होता.
2. “कुष्माण्ड सूक्त” के अनुसार नान्दी् श्राध्द के
पहले भी विवाह के लिए सामग्री तैयार
होने पर आशौच प्राप्ति हो तो प्रायश्चित करके विवाह कार्यक्रम
होता है. प्रायश्चित के लिए हबन, गोदान और पञ्चगव्य प्राशन
करें.
3. विवाह के समय हवन में पू्र्व अथवा मध्य में या अन्त में
कन्या यदि रजस्वला हो जाने पर कन्या को स्नान करा कर
“युञ्जान“इस मंत्र से हवन करके अवशिष्ट कर्म करना चाहिये
4. वधु या वर के माता को रजोदर्शन की संभावना हो तो
नान्दी श्राद्ध दस दिनो के पुर्व कर लेना चाहिये.
नान्दी श्राद्ध के बाद रजोदर्शनजन्य दोष
नहीं होता.
5. नान्दी श्राद्ध के पहले रजोदर्शन होने पर
“श्रीशांति” करके विवाह करना चाहिये.
6. वर या वधू की माता के रजस्वला अथवा सन्तान
प्राप्ति होने पर “श्रीशांति” करके विवाह हो सकता है
7. विवाह में आशौच की संभावना हो तो, आशौच के
पूर्व अन्न का संकल्प कर देना चाहिये. फिर उस संकल्पित अन्न
का दोनों पक्षों के मनुष्य भोजन कर सकते हैं.उसमें कोई दोष
नहीं होता है. परिवेषण असगोत्र के मनुष्य को करना
चाहिये.
8. विवाह में वर-वधू को “ग्रन्थिबन्धन” कन्यादान के पूर्व शास्त्र
विहित है. कन्यादान के बाद नहीं. कन्यादाता को
अपनी स्त्री के साथ ग्रन्थिबन्धन
कन्यादान के पूर्व होना चाहिये.
9. दो कन्या का विवाह एक समय हो सकता है परन्तु एक साथ
नहीं. लेकिन एक कन्या का वैवाहिक कृर्त्य समाप्त
होने पर द्वार-भेद और आचार्य भेद से भी हो सकता
है.
10. एक समय में दो शुभ क्रम करना उत्तम नहीं
है. उसमें भी कन्या के विवाह के अनन्तर पुत्र का
ववाह हो सकता है. परन्तु पुत्र विवाह के अनन्तर
पुत्री का विवाह छ: महिने तक नहीं हो
सकता.
11. एक वर्ष में सहोदर (जुड़वा) भाई अथवा बहनों का विवाह
शुभ नहीं है. वर्ष भेद में और संकट में कर सकतें
हैं.
12. समान गोत्र और समान प्रवर वाली कन्या के साथ
विवाह निषिध्द है.
13. विवाह के पश्चात एक वर्ष तक पिण्डदान, मृक्तिका स्नान,
तिलतर्पण, तीर्थयात्रा,मुण्डन, प्रेतानुगमन आदि
नहीं करना चाहिये.
14. विवाह में छिंक का दोष नहीं होता है.
15. वैवाहिक कार्यक्रम में स्पर्शास्पर्श का दोष नहीं
होता.
16. वैवाहिक कार्यक्रम में चतुर्थ, द्वादश, चन्द्रमा ग्राहय है.
17. विवाह में छट, अष्टमी, दशमी तथा
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा रिक्ता आदि तिथि निषिध्द है .
18. विवाह के दिन या पहले दिन अपने-अपने घरों में कन्या के पिता
और वर के पिता को स्त्री,कन्या-पुत्र सहित मंगल
स्नानकरना चाहिये. और शुध्द नवीन वस्त्र -तिलक-
आभूषण आदि से विभूषित होकर गणेश मातृका पूजन
(नान्दी श्राद्ध) करना चाहिये.
19. श्रेष्ठ दिन में सौलह या बारह या दस या आठ हाथ के परिमाण
का मण्डप चारौं द्वार सहित बनाकर उसमें एक हाथ की
चौकौर हवन-वेदी पूर्व को
नीची करती हुई बनावें उसे
हल्दी, गुलाल, गोघुम तथा चूने आदि से सुशोभित करें.
हवन-वेदी के चारों ओर काठ की चार
खुंठी निम्नप्रकार से रोपे, उन्हीं के बाहर
सूत लपेटे कन्या, सिंह और तुला राशियां संक्राति में तो ईशान कोण में
प्रथम वृश्चक, धनु, और मकर ये राशियां संक्राति में तो वायव्य कोण
में प्रथम मीन, मेष और कुम्भ ये राशियां संक्रांति में तो
नऋर्त्य कोण में प्रथम. वृष, मिथुन और कर्क ये राशियां संक्राति में
तो अग्निकोण में प्रथम.एक काठ में पाटे के उपर गणेश, षोडशमातृका,
नवग्रह आदि स्थापन करें. ईशान कोण में कलश स्थापन करें.
20. कन्या पिता / अभिभावक स्नान करके शुध्द नवीन
वस्त्र पबन कर उत्तराभिमुख होकर आसन पर बैठे तथा वर
पूर्वाभिमुख बैठें.
–—शादी के दिन अपनी राशि अनुसार करें
पूजन—-
जिनका विवाह होने वाला है, वह जातक क्या करें या किस
देवी-देवता का पूजन करें, ताकि उनके गृहस्थ
जीवन में सुख, शांति व वैभव बना रहे। आइए जानते
हैं : –
मेष- इस राशि वाले जातक भगवान गणेशजी के दर्शन
करें एवं ‘गं गणपतये नम:’ की 9 माला करें।
वृषभ- इस राशि वाले जातक कन्या का पूजन करें एवं दुर्गा
चालीसा का पाठ करें।
मिथुन- इस राशि वाले जातक शिवशक्ति की आराधना करें।
कर्क- इस राशि वाले जातक गुरु के दर्शन करें एवं शिवाष्टक या शिव
चालीसा करें।
सिंह- इस राशि वाले जातक प्रात: सूर्य दर्शन करें एवं
आदित्यह्रदयस्तोत्रम का पाठ करें।
कन्या- इस राशि वाले जातक माताजी (दुर्गा) के दर्शन
करें एव गणेश चालीसा करें।
तुला- इस राशि वाले जातक राधाकृष्ण के दर्शन करें एवं कृष्णाष्टक
या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ की माला करें।
वृश्चिक- इस राशि वाले जातक शिवजी के दर्शन करें एवं
शिव के द्वादश नाम का उच्चारण करें (बारह ज्योतिर्लिंग का नाम
उच्चारण करें)।
धनु- इस राशि वाले जातक दत्त भगवान के दर्शन करें एवं गुरु का
पाठ करें।
मकर- इस राशि वाले जातक हनुमानजी के दर्शन करें
एवं हनुमान चालीसा का पाठ करें।
कुंभ- इस राशि वाले जातक राम-सीता के दर्शन करें एवं
रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करें।
मीन- इस राशि वाले जातक श्री गणेश या
सांईं बाबा के दर्शन करें एवं ‘बृं बृहस्पते नम:’ की 9
माला करें।
उक्त उपाय करने से आपके दांपत्य जीवन में खुशियों
की बगिया खिली रहेगी।
—-क्या सप्तम भाव में शनि: विवाह के लिए शुभ नहीं
होता..????
सप्तम भाव लन्म कुण्डली में सबसे महत्वपूर्ण माना
जाता है। लग्न से सातवाँ भाव ही दाम्पत्य व विवाह-
कारक माना गया है। इस भाव एवं इस भाव के स्वामी के
साथ ग्रहों की स्थिति व दृष्टि संबंध के अनुसार उस
जातक पर शुभ-अशुभ प्रभाव पड़ता है।
सप्तम भाव विवाह एवं जीवनसाथी का घर
माना जाता है। इस भाव में शनि का होना विवाह और वैवाहिक
जीवन के लिए शुभ संकेत नहीं माना जाता
है। इस भाव में शनि स्थित होने पर व्यक्ति की
शादी सामान्य आयु से देरी से
होती है।
सप्तम भाव में शनि अगर नीच राशि मे हो तो तब यह
संभावना रहती है कि व्यक्ति काम पीड़ित
होकर किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करता है जो उम्र
में उससे अधिक बड़ा होता है। शनि के साथ सूर्य की
युति अगर सप्तम भाव में हो तो विवाह देर से होता है एवं कलह
से घर अशांत रहता है।
शनि जिस कन्या की कुण्डली में सूर्य या
चन्द्रमा से युत या दृष्ट होकर लग्न या सप्तम में होते हैं
उनकी शादी में भी बाधा
रहती है। शनि जिनकी
कुण्डली में छठे भाव में होता है एवं सूर्य अष्ठम में
और सप्तमेश कमजोर अथवा पाप पीड़ित होता है,उनके
विवाह में भी काफी बाधाएँ
आती हैं।
शनि और राहु की युति जब सप्तम भाव में
होती है तब विवाह सामान्य से अधिक आयु में होता
है, यह एक ग्रहण योग भी है। इस प्रकार
की स्थिति तब भी होती है
जब शनि और राहु की युति लग्न में होती
है और वह सप्तम भाव पर दृष्टि डालते हैं। जन्मपत्रिका में
शनि-राहु की युति होने पर या सप्तमेश शुक्र अगर
कमजोर हो तो विवाह अति विलम्ब से होता है। जिन कन्याओं के
विवाह में शनि के कारण देरी हो उन्हें हरितालिका व्रत
करना चाहिए या जन्म कुण्डली के अनुसार उपाय करना
लाभदायक रहता है।
चन्द्रमा के साथ शनि की युति होने पर व्यक्ति अपने
जीवनसाथी के प्रति प्रेम नहीं
रखता एवं किसी अन्य के प्रेम में गृह कलह को
जन्म देता है। सप्तम शनि एवं उससे युति बनाने वाले ग्रह विवाह
एवं गृहस्थी के लिए सुखकारक नहीं
होते हैं। नवमांश कुण्डली या जन्म
कुण्डली में जब शनि और चन्द्र की युति
हो तो शादी 30 वर्ष की आयु के बाद
ही करनी चाहिए क्योंकि इससे पहले
शादी की संभावना नहीं
बनती है।
जिनकी कुण्डली में चन्द्रमा सप्तम भाव में
होता है और शनि लग्न में,उनके साथ भी
यही स्थिति होती है। इनकी
शादी असफल होने की प्रबल संभावना
रहती है। जिनकी कुण्डली
में लग्न स्थान से शनि द्वादश होता है और सूर्य
द्वितीयेश होता है या लग्न कमजोर होने पर
शादी बहुत विलम्ब से होती है।
ऐसी स्थिति बनती है कि वह
शादी नहीं करते।
–——-जन्म- कुण्डली का क्यों करते
हें मिलान ???????
प्राचीन भारतीय संस्कृति में युवक-युवतियों
को विवाह पूर्व मिलने-जुलने की अनुमति
नहीं थी. माता- पिता अच्छा वर और
खानदान देखकर उसका विवाह कर देते थे, लेकिन वर और कन्या
की जन्म-कुण्डलियों का मिलान करवाना अत्यावश्यक
समझा जाता था. समय के साथ स्थिति बदली है. आज
हर क्षेत्र में युवक-युवती कंधे से कंधा मिलाकर कार्य
करते हैं. यही कारण है कि प्रेम-विवाह आम हो
गए हैं और जन्म-कुण्डली के मिलान की
आवश्यकता लगभग गौण होती जा रही
है.
परन्तु आज भी अनेक लोग विवाह पूर्व
भावी दंपती की जन्म-
कुण्डली मिलवाना आवश्यक समझते है. ताकि
विवाहोपरांत वर कन्या अपना गृहस्थ जीवन निर्विध्न
गुजार सके.
—क्या मिलाया जाता है ?????
वैवाहिक सम्बन्धों ती अनुकूलता के परिक्षण के लिए
ऋषि-मुनियों ने अनेक ग्रन्थ की रचना
की,जिनमें वशिष्ठ,नारद,गर्ग आदि की
सन्हीताएं,मुहुर्तमार्तण्ड,मुहुर्तचिन्तामणि और
कुण्डलियों में वर्ण,वश्य,तारा,योनि,राशि,गण,भकूट एवं
नाडी़ आदि अष्टकूट दोष अर्थात् आठ प्रकार के दोषों का
परिहार अत्यन्त आवश्यक है.वर-कन्या की राशियों
अथवा नवमांशेशों की मैक्त्री तथा राशियों
नवमांशेशियों की एकता द्वारा नाडी़ दोष के
अलावा शेष सभी दोषों का परिहार हो जाता है.इन
सभी दोषों में नाडी़ दोष प्रमुख है,जिसके
परिहार के लिए आवश्यक है कि वर-कन्या की राशि
एक ओर नक्षत्र भिन्न-भिन्न हो अथवा नक्षत्र एक ओर राशियां
भिन्न हो.
——कितने गुण मिलने चाहिए ????
शास्त्रानुसार वर-कन्या के विवाह के लिए 36 गुणों में से कम से कम
सा़ढ़े सोलह गुण अवश्य मिलने चाहिए, लेकिन उपरोक्त
नाडी़ दोष का परिहार बहुत जरुरी है.
अगर नाडी़ दोष का परीहार ना हो, तो
अठाईस गुणों के मिलने पर भी शास्त्र विवाह
की अनुमति नहीं देते हैं. बहुत
आवश्यक हो, तो सोलह से कम गुणों और अष्टकूट दोषों के
अपरिहार की स्थिति में भी कुछ उपायों से
शान्ति करके विवाह किया जा सकता है. इस स्थिति में कन्या का नाम
बदल कर मिलान को अनुकूल बनाना अशास्त्रीय है.
——क्या होता मांगलिक दोष ?????
शास्त्रानुसार कुज या मंगल दोष दाम्पत्य जीवन के लिए
विशेष रुप से अनिष्टकारी माना गया है. अगर कन्या
की जन्म-कुण्डली में मंगल ग्रह लग्न,
चन्द्र अथवा शुक्र से 1, 2, 12, 4, 7 आठवें भाव में विराजमान
हो, तो वर की आयु को खतरा होता है. वर
की जन्म-कुण्डली में यही
स्थिति होने पर कन्या की आयु को खतरा होता है.
मंगल की यह स्थिति पति-पत्नी के
बीच वाद-विवाद और कलह का कारण भी
बनती है. जन्म-कुण्डली में वृहस्पति
एवं मंगल की युति अथवा मंगल एवं चन्द्र
की युति से मंगल दोष समाप्त हो जाता है. इसके
अतिरिक्त कुछ विशेष भावों में भी मंगल की
स्थिति के कुज दोष का कुफल लगभग समाप्त हो जाता है. यह
अत्यन्त आवश्यक है कि कुजदोषी वर का विवाह
कुजदोषी कन्या से ही किया जाए, इससे दोनों
के कुजदोष समाप्त हो जाते हैं और उनका दाम्पत्य
जीवन सुखी रहता है.
किन बातों का ध्यान रखें कन्या से विवाह करते समय..????
कन्या ग्रहण के विषय में मनु ने कहा है कि वह कन्या अधिक
अंग वाली, वाचाल, पिंगल, वर्णवाली
रोगिणी नहीं होनी चाहिए।
विवाह में सपिण्ड, विचार, गोत्र, प्रवर विचार करना चाहिए। विवाह
में स्त्रियों के लिए गुरुबल तथा पुरुषों के लिए रविबल देख लेना चाहिए।
कन्या एवं वर को चन्द्रबल श्रेष्ठ अर्थात् चौथा, आठवां, बारहवां,
चन्द्रमा नहीं लेना चाहिए। गुरु तथा रवि भी
चौथे, आठवें एवं बारहवें नहीं लेने चाहिए।
विवाह में मास ग्रहण के लिए व्यास ने कहा है कि माघ, फाल्गुन,
वैशाख, मार्गशीर्ष, ज्येष्ठ, अषाढ़ महिनों में विवाह
करने से कन्या सौभाग्यवती होती है।
रोहिणी, तीनों उत्तरा, रेवती,
मूल, स्वाति, मृगशिरा, मघा, अनुराधा, हस्त ये नक्षत्र विवाह में
शुभ हैं। विवाह में सौरमास ग्रहण करना चाहिए। जैसे
ज्योतिषशास्त्र में कहा है–
सौरो मासो विवाहादौ यज्ञादौ सावनः स्मतः।
आब्दिके पितृकार्ये च चान्द्रो मासः प्रशस्यते।।
बृहस्पति, शुक्र, बुद्ध और सोम इन वारों में विवाह करने से कन्या
सौभाग्यवती होती है। विवाह में
चतुर्दशी, नवमी इन तिथियों को त्याग देना
चाहिए।
इस प्रकार आपको भी धार्मिक रीति से
ही विवाह संस्कार को पूर्ण करना चाहिये।
—-जानिए सभी ग्रहों के दोष निवारण/शांति के सामान्य
उपाय/टोटके—-
—सूर्य के उपाय—-
दान—
गाय का दान अगर बछड़े समेत
गुड़, सोना, तांबा और गेहूं
सूर्य से सम्बन्धित रत्न का दान
दान के विषय में शास्त्र कहता है कि दान का फल उत्तम
तभी होता है जब यह शुभ समय में सुपात्र को दिया
जाए। सूर्य से सम्बन्धित वस्तुओं का दान रविवार के दिन दोपहर में
४० से ५० वर्ष के व्यक्ति को देना चाहिए. सूर्य ग्रह
की शांति के लिए रविवार के दिन व्रत करना चाहिए. गाय
को गेहुं और गुड़ मिलाकर खिलाना चाहिए. किसी
ब्राह्मण अथवा गरीब व्यक्ति को गुड़ का
खीर खिलाने से भी सूर्य ग्रह के
विपरीत प्रभाव में कमी आती
है. अगर आपकी कुण्डली में सूर्य
कमज़ोर है तो आपको अपने पिता एवं अन्य बुजुर्गों की
सेवा करनी चाहिए इससे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं.
प्रात: उठकर सूर्य नमस्कार करने से भी सूर्य
की विपरीत दशा से आपको राहत मिल
सकती है.
सूर्य को बली बनाने के लिए व्यक्ति को प्रातःकाल
सूर्योदय के समय उठकर लाल पुष्प वाले पौधों एवं वृक्षों को जल से
सींचना चाहिए।
रात्रि में ताँबे के पात्र में जल भरकर सिरहाने रख दें तथा दूसरे दिन
प्रातःकाल उसे पीना चाहिए।
ताँबे का कड़ा दाहिने हाथ में धारण किया जा सकता है।
लाल गाय को रविवार के दिन दोपहर के समय दोनों हाथों में गेहूँ
भरकर खिलाने चाहिए। गेहूँ को जमीन पर
नहीं डालना चाहिए।
किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य पर जाते
समय घर से मीठी वस्तु खाकर निकलना
चाहिए।
हाथ में मोली (कलावा) छः बार लपेटकर बाँधना चाहिए।
लाल चन्दन को घिसकर स्नान के जल में डालना चाहिए।
सूर्य के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु रविवार
का दिन, सूर्य के नक्षत्र (कृत्तिका, उत्तरा-फाल्गुनी
तथा उत्तराषाढ़ा) तथा सूर्य की होरा में अधिक शुभ होते
हैं।
—-क्या न करें—
आपका सूर्य कमज़ोर अथवा नीच का होकर आपको
परेशान कर रहा है अथवा किसी कारण सूर्य
की दशा सही नहीं चल
रही है तो आपको गेहूं और गुड़ का सेवन
नहीं करना चाहिए. इसके अलावा आपको इस समय तांबा
धारण नहीं करना चाहिए अन्यथा इससे सम्बन्धित
क्षेत्र में आपको और भी परेशानी महसूस
हो सकती है.
—चन्द्रमा के उपाय—
—दान—-
चन्द्रमा के नीच अथवा मंद होने पर शंख का दान करना
उत्तम होता है. इसके अलावा सफेद वस्त्र, चांदी,
चावल, भात एवं दूध का दान भी पीड़ित
चन्द्रमा वाले व्यक्ति के लिए लाभदायक होता है. जल दान अर्थात
प्यासे व्यक्ति को पानी पिलाना से भी चन्द्रमा
की विपरीत दशा में सुधार होता है. अगर
आपका चन्द्रमा पीड़ित है तो आपको चन्द्रमा से
सम्बन्धित रत्न दान करना चाहिए. चन्दमा से सम्बन्धित वस्तुओं
का दान करते समय ध्यान रखें कि दिन सोमवार हो और संध्या काल
हो. ज्योतिषशास्त्र में चन्द्रमा से सम्बन्धित वस्तुओं के दान के
लिए महिलाओं को सुपात्र बताया गया है अत: दान किसी
महिला को दें. आपका चन्द्रमा कमज़ोर है तो आपको सोमवार के दिन
व्रत करना चाहिए. गाय को गूंथा हुआ आटा खिलाना चाहिए तथा कौए
को भात और चीनी मिलाकर देना चाहिए.
किसी ब्राह्मण अथवा गरीब व्यक्ति को
दूध में बना हुआ खीर खिलाना चाहिए. सेवा धर्म से
भी चन्द्रमा की दशा में सुधार संभव है.
सेवा धर्म से आप चन्द्रमा की दशा में सुधार करना
चाहते है तो इसके लिए आपको माता और माता समान महिला एवं
वृद्ध महिलाओं की सेवा करनी चाहिए.कुछ
मुख्य बिन्दु निम्न है-
व्यक्ति को देर रात्रि तक नहीं जागना चाहिए। रात्रि के
समय घूमने-फिरने तथा यात्रा से बचना चाहिए। रात्रि में ऐसे स्थान
पर सोना चाहिए जहाँ पर चन्द्रमा की
रोशनी आती हो।
ऐसे व्यक्ति के घर में दूषित जल का संग्रह नहीं
होना चाहिए।
वर्षा का पानी काँच की बोतल में भरकर घर
में रखना चाहिए।
वर्ष में एक बार किसी पवित्र नदी या सरोवर
में स्नान अवश्य करना चाहिए।
सोमवार के दिन मीठा दूध नहीं
पीना चाहिए।
सफेद सुगंधित पुष्प वाले पौधे घर में लगाकर उनकी
देखभाल करनी चाहिए।
—क्या न करें—-
ज्योतिषशास्त्र में जो उपाय बताए गये हैं उसके अनुसार चन्द्रमा
कमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर व्यक्ति को प्रतिदिन दूध
नहीं पीना चाहिए. स्वेत वस्त्र धारण
नहीं करना चाहिए. सुगंध नहीं लगाना
चाहिए और चन्द्रमा से सम्बन्धित रत्न नहीं पहनना
चाहिए.
—मंगल के उपाय—-
पीड़ित व्यक्ति को लाल रंग का बैल दान करना चाहिए.
लाल रंग का वस्त्र, सोना, तांबा, मसूर दाल, बताशा,
मीठी रोटी का दान देना चाहिए.
मंगल से सम्बन्धित रत्न दान देने से भी
पीड़ित मंगल के दुष्प्रभाव में कमी
आती है. मंगल ग्रह की दशा में सुधार
हेतु दान देने के लिए मंगलवार का दिन और दोपहर का समय सबसे
उपयुक्त होता है. जिनका मंगल पीड़ित है उन्हें
मंगलवार के दिन व्रत करना चाहिए और ब्राह्मण अथवा
किसी गरीब व्यक्ति को भर पेट भोजन
कराना चाहिए. मंगल पीड़ित व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 10
से 15 मिनट ध्यान करना उत्तम रहता है. मंगल
पीड़ित व्यक्ति में धैर्य की
कमी होती है अत: धैर्य बनाये रखने का
अभ्यास करना चाहिए एवं छोटे भाई बहनों का ख्याल रखना चाहिए.
लाल कपड़े में सौंफ बाँधकर अपने शयनकक्ष में रखनी
चाहिए।
ऐसा व्यक्ति जब भी अपना घर बनवाये तो उसे घर में
लाल पत्थर अवश्य लगवाना चाहिए।
बन्धुजनों को मिष्ठान्न का सेवन कराने से भी मंगल शुभ
बनता है।
लाल वस्त्र ले कर उसमें दो मुठ्ठी मसूर
की दाल बाँधकर मंगलवार के दिन किसी
भिखारी को दान करनी चाहिए।
मंगलवार के दिन हनुमानजी के चरण से सिन्दूर ले कर
उसका टीका माथे पर लगाना चाहिए।
बंदरों को गुड़ और चने खिलाने चाहिए।
अपने घर में लाल पुष्प वाले पौधे या वृक्ष लगाकर
उनकी देखभाल करनी चाहिए।
मंगल के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु
मंगलवार का दिन, मंगल के नक्षत्र (मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा) तथा
मंगल की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
—क्या न करें—-
आपका मंगल अगर पीड़ित है तो आपको अपने क्रोध
नहीं करना चाहिए. अपने आप पर नियंत्रण
नहीं खोना चाहिए. किसी भी
चीज़ में जल्दबाजी नहीं
दिखानी चाहिए और भौतिकता में लिप्त नहीं
होना चाहिए
—बुध के उपाय—-
बुध की शांति के लिए स्वर्ण का दान करना चाहिए. हरा
वस्त्र, हरी सब्जी, मूंग का दाल एवं हरे
रंग के वस्तुओं का दान उत्तम कहा जाता है. हरे रंग
की चूड़ी और वस्त्र का दान किन्नरो को देना
भी इस ग्रह दशा में श्रेष्ठ होता है. बुध ग्रह से
सम्बन्धित वस्तुओं का दान भी ग्रह की
पीड़ा में कमी ला सकती है.
इन वस्तुओं के दान के लिए ज्योतिषशास्त्र में बुधवार के दिन दोपहर
का समय उपयुक्त माना गया है.बुध की दशा में सुधार
हेतु बुधवार के दिन व्रत रखना चाहिए. गाय को हरी
घास और हरी पत्तियां खिलानी चाहिए.
ब्राह्मणों को दूध में पकाकर खीर भोजन करना चाहिए.
बुध की दशा में सुधार के लिए विष्णु सहस्रनाम का जाप
भी कल्याणकारी कहा गया है. रविवार को
छोड़कर अन्य दिन नियमित तुलसी में जल देने से बुध
की दशा में सुधार होता है. अनाथों एवं
गरीब छात्रों की सहायता करने से बुध
ग्रह से पीड़ित व्यक्तियों को लाभ मिलता है.
मौसी, बहन, चाची बेटी के
प्रति अच्छा व्यवहार बुध ग्रह की दशा से
पीड़ित व्यक्ति के लिए कल्याणकारी होता
है.
अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए तथा
निरन्तर उसकी देखभाल करनी चाहिए।
बुधवार के दिन तुलसी पत्र का सेवन करना चाहिए।
बुधवार के दिन हरे रंग की चूड़ियाँ हिजड़े को दान
करनी चाहिए।
हरी सब्जियाँ एवं हरा चारा गाय को खिलाना चाहिए।
बुधवार के दिन गणेशजी के मंदिर में मूँग के लड्डुओं का
भोग लगाएँ तथा बच्चों को बाँटें।
घर में खंडित एवं फटी हुई धार्मिक पुस्तकें एवं ग्रंथ
नहीं रखने चाहिए।
अपने घर में कंटीले पौधे, झाड़ियाँ एवं वृक्ष
नहीं लगाने चाहिए। फलदार पौधे लगाने से बुध ग्रह
की अनुकूलता बढ़ती है।
तोता पालने से भी बुध ग्रह की अनुकूलता
बढ़ती है।
बुध के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु बुधवार का
दिन, बुध के नक्षत्र (आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) तथा
बुध की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
—बृहस्पति के उपाय—-
बृहस्पति के उपाय हेतु जिन वस्तुओं का दान करना चाहिए उनमें
चीनी, केला, पीला वस्त्र,
केशर, नमक, मिठाईयां, हल्दी, पीला फूल
और भोजन उत्तम कहा गया है. इस ग्रह की शांति
के लए बृहस्पति से सम्बन्धित रत्न का दान करना भी
श्रेष्ठ होता है. दान करते समय आपको ध्यान रखना चाहिए कि
दिन बृहस्पतिवार हो और सुबह का समय हो. दान
किसी ब्राह्मण, गुरू अथवा पुरोहित को देना विशेष
फलदायक होता है.बृहस्पतिवार के दिन व्रत रखना चाहिए.
कमज़ोर बृहस्पति वाले व्यक्तियों को केला और पीले रंग
की मिठाईयां गरीबों, पंक्षियों विशेषकर कौओं
को देना चाहिए. ब्राह्मणों एवं गरीबों को
दही चावल खिलाना चाहिए. रविवार और बृहस्पतिवार को
छोड़कर अन्य सभी दिन पीपल के जड़ को
जल से सिंचना चाहिए. गुरू, पुरोहित और शिक्षकों में बृहस्पति का
निवास होता है अत: इनकी सेवा से भी
बृहस्पति के दुष्प्रभाव में कमी आती है.
केला का सेवन और सोने वाले कमड़े में केला रखने से बृहस्पति से
पीड़ित व्यक्तियों की कठिनाई बढ़
जाती है अत: इनसे बचना चाहिए।
ऐसे व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य
पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा
महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना
चाहिए।
सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर
घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या
टीका लगाना चाहिए।
ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर
निःशुल्क सेवा करनी चाहिए।
किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख
से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।
ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / परपुरुष से संबंध
नहीं रखने चाहिए।
गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का
दीपक जलाना चाहिए।
गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की
दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी
डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु गुरुवार का
दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु
की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
—-शुक्र के उपाय—
शुक्र ग्रहों में सबसे चमकीला है और प्रेम का
प्रतीक है. इस ग्रह के पीड़ित होने पर
आपको ग्रह शांति हेतु सफेद रंग का घोड़ा दान देना चाहिए.
रंगीन वस्त्र, रेशमी कपड़े,
घी, सुगंध, चीनी, खाद्य तेल,
चंदन, कपूर का दान शुक्र ग्रह की
विपरीत दशा में सुधार लाता है. शुक्र से सम्बन्धित रत्न
का दान भी लाभप्रद होता है. इन वस्तुओं का दान
शुक्रवार के दिन संध्या काल में किसी युवती
को देना उत्तम रहता है.शुक्र ग्रह से सम्बन्धित क्षेत्र में
आपको परेशानी आ रही है तो इसके लिए
आप शुक्रवार के दिन व्रत रखें. मिठाईयां एवं खीर कौओं
और गरीबों को दें. ब्राह्मणों एवं गरीबों को
घी भात खिलाएं. अपने भोजन में से एक हिस्सा
निकालकर गाय को खिलाएं. शुक्र से सम्बन्धित वस्तुओं जैसे सुगंध,
घी और सुगंधित तेल का प्रयोग नहीं करना
चाहिए. वस्त्रों के चुनाव में अधिक विचार नहीं करें.
काली चींटियों को
चीनी खिलानी चाहिए।
शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।
किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न
का दान करना चाहिए।
किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए जाते समय १० वर्ष
से कम आयु की कन्या का चरण स्पर्श करके
आशीर्वाद लेना चाहिए।
अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।
किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो
अवश्य स्वीकारना चाहिए।
शुक्रवार के दिन गौ-दुग्ध से स्नान करना चाहिए।
शुक्र के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु
शुक्रवार का दिन, शुक्र के नक्षत्र (भरणी, पूर्वा-
फाल्गुनी, पुर्वाषाढ़ा) तथा शुक्र की होरा में
अधिक शुभ होते हैं।
—-शनि के उपाय—
जिनकी कुण्डली में शनि कमज़ोर हैं या शनि
पीड़ित है उन्हें काली गाय का दान करना
चाहिए. काला वस्त्र, उड़द दाल, काला तिल, चमड़े का जूता, नमक,
सरसों तेल, लोहा, खेती योग्य भूमि, बर्तन व अनाज का
दान करना चाहिए. शनि से सम्बन्धित रत्न का दान भी
उत्तम होता है. शनि ग्रह की शांति के लिए दान देते
समय ध्यान रखें कि संध्या काल हो और शनिवार का दिन हो तथा दान
प्राप्त करने वाला व्यक्ति ग़रीब और वृद्ध हो.शनि के
कोप से बचने हेतु व्यक्ति को शनिवार के दिन एवं शुक्रवार के दिन
व्रत रखना चाहिए. लोहे के बर्तन में दही चावल और
नमक मिलाकर भिखारियों और कौओं को देना चाहिए. रोटी
पर नमक और सरसों तेल लगाकर कौआ को देना चाहिए. तिल और
चावल पकाकर ब्राह्मण को खिलाना चाहिए. अपने भोजन में से कौए
के लिए एक हिस्सा निकालकर उसे दें. शनि ग्रह से
पीड़ित व्यक्ति के लिए हनुमान चालीसा का
पाठ, महामृत्युंजय मंत्र का जाप एवं शनिस्तोत्रम का पाठ
भी बहुत लाभदायक होता है. शनि ग्रह के
दुष्प्रभाव से बचाव हेतु गरीब, वृद्ध एवं कर्मचारियो के
प्रति अच्छा व्यवहार रखें. मोर पंख धारण करने से भी
शनि के दुष्प्रभाव में कमी आती है.
शनिवार के दिन पीपल वृक्ष की जड़ पर
तिल्ली के तेल का दीपक जलाएँ।
शनिवार के दिन लोहे, चमड़े, लकड़ी की
वस्तुएँ एवं किसी भी प्रकार का तेल
नहीं खरीदना चाहिए।
शनिवार के दिन बाल एवं दाढ़ी-मूँछ नही
कटवाने चाहिए।
भड्डरी को कड़वे तेल का दान करना चाहिए।
भिखारी को उड़द की दाल की
कचोरी खिलानी चाहिए।
किसी दुःखी व्यक्ति के आँसू अपने हाथों से
पोंछने चाहिए।
घर में काला पत्थर लगवाना चाहिए।
शनि के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का
दिन, शनि के नक्षत्र (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा-भाद्रपद) तथा शनि
की होरा में अधिक शुभ फल देता है।
—-क्या न करें—
जो व्यक्ति शनि ग्रह से पीड़ित हैं उन्हें
गरीबों, वृद्धों एवं नौकरों के प्रति अपमान जनक
व्यवहार नहीं करना चाहिए. नमक और
नमकीन पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए, सरसों तेल से
बनें पदार्थ, तिल और मदिरा का सेवन नहीं करना
चाहिए. शनिवार के दिन सेविंग नहीं करना चाहिए और
जमीन पर नहीं सोना चाहिए.शनि से
पीड़ित व्यक्ति के लिए काले घोड़े की नाल
और नाव की कांटी से बनी
अंगूठी भी काफी लाभप्रद
होती है परंतु इसे किसी अच्छे पंडित से
सलाह और पूजा के पश्चात ही धारण करना चाहिए.
साढ़े साती से पीड़ित व्यक्तियों के लिए
भी शनि का यह उपाय लाभप्रद है. शनि का यह उपाय
शनि की सभी दशा में कारगर और लाभप्रद
है.
—राहु के उपाय—
अपनी शक्ति के अनुसार संध्या को काले-
नीले फूल, गोमेद, नारियल, मूली, सरसों,
नीलम, कोयले, खोटे सिक्के, नीला वस्त्र
किसी कोढ़ी को दान में देना चाहिए। राहु
की शांति के लिए लोहे के हथियार, नीला
वस्त्र, कम्बल, लोहे की चादर, तिल, सरसों तेल,
विद्युत उपकरण, नारियल एवं मूली दान करना चाहिए.
सफाई कर्मियों को लाल अनाज देने से भी राहु
की शांति होती है. राहु से
पीड़ित व्यक्ति को इस ग्रह से सम्बन्धित रत्न का दान
करना चाहिए. राहु से पीड़ित व्यक्ति को शनिवार का व्रत
करना चाहिए इससे राहु ग्रह का दुष्प्रभाव कम होता है.
मीठी रोटी कौए को दें और
ब्राह्मणों अथवा गरीबों को चावल और मांसहार करायें.
राहु की दशा होने पर कुष्ट से पीड़ित
व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए.
गरीब व्यक्ति की कन्या की
शादी करनी चाहिए. राहु की
दशा से आप पीड़ित हैं तो अपने सिरहाने जौ रखकर
सोयें और सुबह उनका दान कर दें इससे राहु की दशा
शांत होगी.
ऐसे व्यक्ति को अष्टधातु का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करना
चाहिए।
हाथी दाँत का लाकेट गले में धारण करना चाहिए।
अपने पास सफेद चन्दन अवश्य रखना चाहिए। सफेद चन्दन
की माला भी धारण की जा
सकती है।
जमादार को तम्बाकू का दान करना चाहिए।
दिन के संधिकाल में अर्थात् सूर्योदय या सूर्यास्त के समय कोई
महत्त्वपूर्ण कार्य नही करना चाहिए।
यदि किसी अन्य व्यक्ति के पास रुपया अटक गया हो,
तो प्रातःकाल पक्षियों को दाना चुगाना चाहिए।
झुठी कसम नही खानी
चाहिए।
राहु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार
का दिन, राहु के नक्षत्र (आर्द्रा, स्वाती, शतभिषा)
तथा शनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
—-क्या न करें—
मदिरा और तम्बाकू के सेवन से राहु की दशा में
विपरीत परिणाम मिलता है अत: इनसे दूरी
बनाये रखना चाहिए. आप राहु की दशा से परेशान हैं
तो संयुक्त परिवार से अलग होकर अपना जीवन यापन
करें.
—–केतु के उपाय—-
किसी युवा व्यक्ति को केतु कपिला गाय, दुरंगा, कंबल,
लहसुनिया, लोहा, तिल, तेल, सप्तधान्य शस्त्र, बकरा, नारियल,
उड़द आदि का दान करने से केतु ग्रह की शांति
होती है। ज्योतिषशास्त्र इसे अशुभ ग्रह मानता है
अत: जिनकी कुण्डली में केतु
की दशा चलती है उसे अशुभ परिणाम
प्राप्त होते हैं. इसकी दशा होने पर शांति हेतु जो
उपाय आप कर सकते हैं उनमें दान का स्थान प्रथम है.
ज्योतिषशास्त्र कहता है केतु से पीड़ित व्यक्ति को
बकरे का दान करना चाहिए. कम्बल, लोहे के बने हथियार, तिल,
भूरे रंग की वस्तु केतु की दशा में दान करने
से केतु का दुष्प्रभाव कम होता है. गाय की बछिया,
केतु से सम्बन्धित रत्न का दान भी उत्तम होता है.
अगर केतु की दशा का फल संतान को भुगतना पड़ रहा
है तो मंदिर में कम्बल का दान करना चाहिए. केतु की
दशा को शांत करने के लिए व्रत भी काफी
लाभप्रद होता है. शनिवार एवं मंगलवार के दिन व्रत रखने से केतु
की दशा शांत होती है. कुत्ते को आहार
दें एवं ब्राह्मणों को भात खिलायें इससे भी केतु
की दशा शांत होगी. किसी को
अपने मन की बात नहीं बताएं एवं बुजुर्गों
एवं संतों की सेवा करें यह केतु की दशा में
राहत प्रदान करता है।
——विवाह योग के मुख्य कारक—-
—–विवाह योग के लिये जो कारक मुख्य है वे इस प्रकार हैं——-
सप्तम भाव का स्वामी खराब है या सही
है वह अपने भाव में बैठ कर या किसी अन्य स्थान
पर बैठ कर अपने भाव को देख रहा है।
सप्तम भाव पर किसी अन्य पाप ग्रह की
द्रिष्टि नही है।
कोई पाप ग्रह सप्तम में बैठा नही है।
यदि सप्तम भाव में सम राशि है।
सप्तमेश और शुक्र सम राशि में है।
सप्तमेश बली है।
सप्तम में कोई ग्रह नही है।
किसी पाप ग्रह की द्रिष्टि सप्तम भाव
और सप्तमेश पर नही है।
दूसरे सातवें बारहवें भाव के स्वामी केन्द्र या त्रिकोण में
हैं,और गुरु से द्रिष्ट है।
सप्तमेश की स्थिति के आगे के भाव में या सातवें भाव में
कोई क्रूर ग्रह नही है।
विवाह नही होगा अगर—????
सप्तमेश शुभ स्थान पर नही है।
सप्तमेश छ: आठ या बारहवें स्थान पर अस्त होकर बैठा है।
सप्तमेश नीच राशि में है।
सप्तमेश बारहवें भाव में है,और लगनेश या राशिपति सप्तम में बैठा
है।
चन्द्र शुक्र साथ हों,उनसे सप्तम में मंगल और शनि विराजमान
हों।
शुक्र और मंगल दोनों सप्तम में हों।
शुक्र मंगल दोनो पंचम या नवें भाव में हों।
शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ हो और पंचम या नवें
भाव में हो।
शुक्र बुध शनि तीनो ही नीच
हों।
पंचम में चन्द्र हो,सातवें या बारहवें भाव में दो या दो से अधिक
पापग्रह हों।
सूर्य स्पष्ट और सप्तम स्पष्ट बराबर का हो।
—–क्यों होती हें विवाह में देरी—????
सप्तम में बुध और शुक्र दोनो के होने पर विवाह वादे चलते रहते
है,विवाह आधी उम्र में होता है।
चौथा या लगन भाव मंगल (बाल्यावस्था) से युक्त हो,सप्तम में शनि
हो तो कन्या की रुचि शादी में
नही होती है।
सप्तम में शनि और गुरु शादी देर से करवाते हैं।
चन्द्रमा से सप्तम में गुरु शादी देर से करवाता
है,यही बात चन्द्रमा की राशि कर्क से
भी माना जाता है।
सप्तम में त्रिक भाव का स्वामी हो,कोई शुभ ग्रह
योगकारक नही हो,तो पुरुष विवाह में देरी
होती है।
सूर्य मंगल बुध लगन या राशिपति को देखता हो,और गुरु बारहवें भाव
में बैठा हो तो आध्यात्मिकता अधिक होने से विवाह में
देरी होती है।
लगन में सप्तम में और बारहवें भाव में गुरु या शुभ ग्रह योग
कारक नही हों,परिवार भाव में चन्द्रमा कमजोर हो तो
विवाह नही होता है,अगर हो भी जावे
तो संतान नही होती है।
महिला की कुन्डली में सप्तमेश या सप्तम
शनि से पीडित हो तो विवाह देर से होता है।
राहु की दशा में शादी हो,या राहु सप्तम को
पीडित कर रहा हो,तो शादी होकर टूट
जाती है,यह सब दिमागी भ्रम के कारण
होता है।
–—क्या होगा विवाह का समय–?????
सप्तम या सप्तम से सम्बन्ध रखने वाले ग्रह की
महादशा या अन्तर्दशा में विवाह होता है।
कन्या की कुन्डली में शुक्र से सप्तम और
पुरुष की कुन्डली में गुरु से सप्तम
की दशा में या अन्तर्दशा में विवाह होता है।
सप्तमेश की महादशा में पुरुष के प्रति शुक्र या चन्द्र
की अन्तर्दशा में और स्त्री के प्रति गुरु या
मंगल की अन्तर्दशा में विवाह होता है।
सप्तमेश जिस राशि में हो,उस राशि के स्वामी के त्रिकोण
में गुरु के आने पर विवाह होता है।
गुरु गोचर से सप्तम में या लगन में या चन्द्र राशि में या चन्द्र राशि के
सप्तम में आये तो विवाह होता है।
गुरु का गोचर जब सप्तमेश और लगनेश की स्पष्ट राशि
के जोड में आये तो विवाह होता है।
सप्तमेश जब गोचर से शुक्र की राशि में आये और गुरु
से सम्बन्ध बना ले तो विवाह या शारीरिक सम्बन्ध
बनता है।
सप्तमेश और गुरु का त्रिकोणात्मक सम्पर्क गोचर से
शादी करवा देता है,या प्यार प्रेम चालू हो जाता है।
चन्द्रमा मन का कारक है,और वह जब बलवान होकर सप्तम
भाव या सप्तमेश से सम्बन्ध रखता हो तो चौबीसवें साल
तक विवाह करवा ही देता है।
—–शीघ्र विवाह के लिए ये करें वास्तु के अचूक उपाय
—-
विवाह जीवन का सबसे अहम पल होता है। कई बार
विवाह में अड़चने आती हैं। इसके कई कारण हो
सकते हैं। वास्तु दोष भी उन्हीं में से एक
है। यदि इन वास्तु दोषों को दूर कर दिया जाए तो जिसके विवाह में
अड़चने आ रही होती है उसका विवाह
अतिशीघ्र हो जाता है। नीचे ऐसे
ही कुछ वास्तु नियमों के बारे में जानकारी
दी गई है-
1- यदि विवाह प्रस्ताव में व्यवधान आ रहे हों तो विवाह वार्ता के
लिए घर आए अतिथियों को इस प्रकार बैठाएं कि उनका मुख घर में
अंदर की ओर हो। उन्हें द्वार दिखाई न दे।
2- यदि मंगल दोष के कारण विवाह में विलंब हो रहा हो तो उसके
कमरे के दरवाजे का रंग लाल अथवा गुलाबी रखना
चाहिए।
3- विवाह योग्य युवक-युवती के कक्ष में कोई
खाली टंकी, बड़ा बर्तन बंद करके
नहीं रखें। अगर कोई भारी वस्तु हो तो
उसे भी हटा दें।
4- विवाह योग्य युवक-युवती जिस पलंग पर सोते हों
उसके नीचे लोहे की वस्तुएं या व्यर्थ का
सामान नहीं रखना चाहिए।
5- यदि विवाह के पूर्व लड़का-लड़की घर वालों
की रजामंदी से मिलना चाहें तो बैठक
व्यवस्था इस प्रकार करें कि उनका मुख दक्षिण दिशा की
ओर न हो।
6- यदि घर के मुख्य द्वार के समीप ही
वास्तु दोष हो तो विवाह की बात अन्य स्थान पर करें।
7-घर में बेटी जवान है, उसकी
शादी नहीं हो पा रही है, तो
एक उपाय करें- कन्या के पलंग पर पीले रंग
की चादर बिछाएं, उस पर कन्या को सोने के लिए कहें।
इसके साथ ही बेडरूम की
दीवारों पर हल्का रंग करें। ध्यान रहे कि कन्या का
शयन कक्ष वायव्य कोण में स्थित होना चाहिए।जीवन
में पीले रंग को सफलता का सूचक कहा जाता है।
पीला रंग भाग्य में वृद्धि लाता है। कन्या की
शादी में पीले रंग का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग
किया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि कन्या ससुराल में
सुखी रहेगी। विवाह निर्विघ्न होने
की शुभ सूचना वस्तुतः हल्दी से सम्पन्न
होती है, क्योंकि हल्दी को
गणेशजी की उपस्थिति माना जाता है। और
जिस कार्य में गणेश जी स्वयं उपस्थित हों, उस कार्य
को पूरा करने में विघ्न कैसे आ सकता है। हल्दी
की गांठों में कभी-कभी गणेश
जी की मूर्ति का चित्र मिलता है।
लक्ष्मी अन्नपूर्णा भी हरिद्रा
कहलाती हैं। श्री सूक्त में वर्णन किया
गया है कि लक्ष्मी जी पीत
वस्त्र धारण किए है। अतः आप समझ सकते हैं कि
हल्दी का कितना महत्व है। इतना ही
नहीं, बृहस्पति का रंग भी
पीत वर्ण का है, तभी तो
पीत रंग का पुखराज पहनकर बृहस्पति
की कृपा प्राप्त होती है।
—-क्यों नहीं करना चाहिए एक ही गौत्र
में विवाह ??????
ब्राह्मणों के विवाह में गौत्र-प्रवर का बड़ा महत्व है। पुराणों व
स्मृति ग्रंथों में बताया गया है कि यदि कोई कन्या संगौत्र हो, किंतु
सप्रवर न हो अथवा सप्रवर हो किंतु संगौत्र न हो, तो
ऐसी कन्या के विवाह को अनुमति नहीं
दी जाना चाहिए।
विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप-
इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्ति की संतान
‘गौत्र” कहलाती है। यानी जिस व्यक्ति
का गौत्र भारद्वाज है, उसके पूर्वज ऋषि भारद्वाज थे और वह
व्यक्ति इस ऋषि का वंशज है। आगे चलकर गौत्र का संबंध धार्मिक
परंपरा से जुड़ गया और विवाह करते समय इसका उपयोग किया जाने
लगा।
ऋषियों की संख्या लाख-करोड़ होने के कारण गौत्रों
की संख्या भी लाख-करोड़ मानी
जाती है, परंतु सामान्यत: आठ ऋषियों के नाम पर मूल
आठ गौत्र ऋषि माने जाते हैं, जिनके वंश के पुरुषों के नाम पर अन्य
गौत्र बनाए गए। ‘महाभारत” के शांतिपर्व (297/17-18) मेंमूल
चार गौत्र बताए गए हैं- अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु, जबकि
जैन ग्रंथों में 7 गौत्रों का उल्लेख है- कश्यप, गौतम, वत्स्य,
कुत्स, कौशिक, मंडव्य और वशिष्ठ। इनमें हर एक के अलग-
अलग भेद बताए गए हैं- जैसे कौशिक-कौशिक कात्यायन, दर्भ
कात्यायन, वल्कलिन, पाक्षिण, लोधाक्ष, लोहितायन
(दिव्यावदन-331-12,14) विवाह निश्चित करते समय गौत्र के
साथ-साथ प्रवर का भी ख्याल रखना जरूरी
है। प्रवर भी प्राचीन ऋषियों के नाम है
तथापि अंतर यह है कि गौत्र का संबंध रक्त से है, जबकि प्रवर
से आध्यात्मिक संबंध है। प्रवर की गणना गौत्रों के
अंतर्गत की जाने से जाति से संगौत्र
बहिर्विवाहकी धारणा प्रवरों के लिए भी
लागू होने लगी।
ब्राह्मणों के विवाह में गौत्र-प्रवर का बड़ा महत्व है। पुराणों व
स्मृति ग्रंथों में बताया गया है कि यदि कोई कन्या संगौत्र हो, किंतु
सप्रवर न हो अथवा सप्रवर हो किंतु संगौत्र न हो, तो
ऐसी कन्या के विवाह को अनुमति नहीं
दी जाना चाहिए। वर-वधू का एक वर्ष होतेहुए
भी उनके भिन्ना-भिन्ना गौत्र और प्रवर होना
आवश्यक है (मनुस्मृति- 3/5)। मत्स्यपुराण (4/2) में
ब्राह्मण के साथ संगौत्रीय शतरूपा के विवाह पर
आश्चर्य और खेद प्रकट किया गया है। गौतमधर्म सूत्र (4/2) में
भी असमान प्रवर विवाह का निर्देश दिया गया है।
(असमान प्रवरैर्विगत) आपस्तम्ब धर्मसूत्र कहता है-
‘संगौत्राय दुहितरेव प्रयच्छेत्” (समान गौत्र के पुरुष को कन्या
नहीं देना चाहिए)।
असमान गौत्रीय के साथ विवाह न करने पर भूल पुरुष
के ब्राह्मणत्व से च्युत हो जाने तथा चांडाल पुत्र-
पुत्री के उत्पन्ना होने की बात
कही गई। अपर्राक कहता है कि जान-बूझकर
संगौत्रीय कन्या से विवाह करने वाला जातिच्युत हो जाता
है, जबकि बोधायन का मत है कि यदि कोई व्यक्ति भूल से
भी संगौत्रीय कन्या से विवाह करता है, तो
उसे उस कन्या का मातृत्वत् पालन करना चाहिए
(संगौत्रचेदमत्योपयच्छते मातृपयेनां विमृयात्)।
गौत्र जन्मना प्राप्त नहीं होता, इसलिए विवाह के
पश्चात कन्या का गौत्र बदल जाता है और उसके लिए उसके पति का
गौत्र लागू हो जाता है।